यूपी में बेसहारा पशुओं की समस्या जस की तस बनी हुई है!
हाल ही में उ0प्र0 की योगी सरकार ने चार साल पूरे किए हैं। इस मौक़े पर स्वयं सीएम योगी ने एक "विकास पुस्तिका" भी जारी की थी। इसमें कोई शक़ नहीं है कि यूपी में पिछले चार सालों में कई उल्लेखनीय काम हुए हैं। जाहिर है प्रदेश सरकार अपनी उन उपलब्धियों को लोगों को बताएगी। वहीं विपक्षी पार्टियाँ सरकार की उपलब्धियों को लेकर उस पर हमला करेंगी। सोशल मीडिया पर भी योगी सरकार की प्रमुख उपलब्धियों की चर्चा हो रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बहुत से लोगों की बातें मैंने सुनी। उनका मानना है कि योगी सरकार के चार साल के कार्यकाल की तुलना अगर पूर्ववर्ती सपा और बसपा सरकारों के कार्यकाल से की जाए तो योगी सरकार में क़ानून व्यवस्था बहुत सही रही है। वहीं नौकरी देने के मामले में भी योगी सरकार ने बाजी मारी है। योगी सरकार के चार साल पूरे होने पर एक सर्वे भी आया था। सर्वे में लोगों की राय थी कि क़ानून व्यवस्था के मामले में सीएम योगी नंबर वन हैं। वहीं नौकरी देने के मामले में भी राज्य सरकार ने बेहतर प्रदर्शन किया है। सर्वे के मुताबिक अगर यूपी में आज चुनाव हो तो सूबे में बीजेपी की सरकार की वापसी होगी। स्पष्ट है सर्वे के निष्कर्षों से बीजेपी गदगद होगी। यहाँ सर्वे की विश्वसनीयता पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता।
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ |
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योगी सरकार के चार साल के कार्यकाल पर आख़िरी फ़ैसला जनता को करना है। लेकिन लगता जरूर है कि इस सर्वे में यूपी के ग्रामीणों और विशेषकर किसानों की राय शायद शामिल नहीं हो! ऐसा इसलिए क्योंकि सूबे के किसान बेसहारा जानवरों विशेषकर गो-वंश से परेशान हैं। राज्य सरकार भी इस तथ्य से भली भाँति परिचित है कि तमान पशुपालकों ने अनुपयोगी गो-वंश को बड़े पैमाने पर बेसहारा छोड़ दिया है। यह बेसहारा छोड़ गए जानवर किसानों को चैन की नींद नहीं लेने दे रहे हैं। हालाँकि राज्य सरकार ने इस समस्या से निजात पाने के लिए प्रयास किए लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।
गो-वध करने वालों के लिए सख्त सज़ा का प्रावधान
आपको याद होगा कि 2017 में योगी सरकार ने गो-वध पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। वर्तमान में उ0प्र0 में गो-वध करने वालों पर कड़ी सजा और आर्थिक जुर्माने का भी प्रावधान है। गो-वध में लिप्त लोगों को 10 साल की सजा और 5 लाख तक का जुर्माना हो सकता है। अंग-भंग करने पर 7 साल की सज़ा और 3 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। गो-वध के मामलों में संलिप्त व्यक्ति अगर दूसरी बार भी गो-वध करते पकड़ा जाता है तो उस पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई हो सकती है।
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गाय को मिला है गोमाता का दर्जा
हम जानते हैं कि गाय के साथ हिंदुओं की गहरी आस्था जुड़ी है। गाय को गोमाता का दर्जा दिया गया है। प्राचीन काल से ही गाय हमारे लिए पूज्य है। गाँवों में आज भी पहली रोटी गाय को खिलाई जाती है। पूजा इत्यादि में पूजे हुए भोज्य पदार्थ या खाद्य वस्तुएँ गाय को ही खिलाई जाती है। नवजात शिशुओं के लिए उनकी माँ के बाद गाय के दूध को ही सर्वोत्तम आहार माना गया है। यह भी माना जाता है कि गाय के दूध से बने घी के सेवन से इंसान की आँखों की रोशनी बढ़ती है। और यह भी माना जाता है कि गाय के दूध में हल्दी मिलाकर पीने से कैंसर जैसी भयानक बीमारी पास नहीं फटकती है। उप्र की आबादी हिंदू बहुल है। सूबे में गो-वध पर प्रतिबंध लगते ही ज्यादातर लोगों विशेषकर हिंदुओँ ने योगी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया था। देखा जाए तो इस फैसले में कुछ गलत भी नहीं था। उप्र के राजनीतिक और सामाजिक हालातों को देखते हुए गो-वध पर प्रतिबंध का फैसला एक सही कदम माना गया था।
खेतों में बेसहारा गायें |
गायों की दुर्दशा और किसानों को हो रही समस्या
दरअसल जब गो-वध पर प्रतिबंध लगा है तब से सीधे तौर पर मांस के लिए गायों की खरीदारी करने वालों लोगों ने गाय खरीदना बंद कर दिया है। ऐसे में जिन पशु-पालकों के पास दूध न देने वाली या बूढ़ी गायें हैं, वे इऩ गायों को उनकी देखभाल से बचने के लिए उन्हें खेतों में बेसहारा छोड़ देते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि ये गायें किसानों की फसल और खा जाती हैं और जहाँ से गुजरती हैं उस जगह की फसल ख़राब हो जाती है। हालात यहाँ तक पहुंच चुके हैं कि किसानों को अपनी फसलों के चारों तरफ रस्सी बाँधनी पड़ रही है। लेकिन यह काम चलाऊ तरीका काम नहीं कर रहा है। दिन-रात कभी भी यह खबर आ जाती है कि भैया तुम्हारे खेतों में गाय घुस आयी हैं। जाकर उऩ्हें बाहर निकाल दो। किसान को उसी वक्त अपने खेत की तरफ दौड़ लगानी पड़ती है।रात के वक्त गली-मुहल्लों में चारे में तलाश में इधर-उधर मारी फिरती हैं। गायों की वजह से होने वाली इस परेशानी से बहुत से किसान बहुत नाराज हैं। ये किसान अगले साल होने वाले यूपी विधानसभी चुनाव में योगी सरकार विरोधी रवैया अपना सकते हैं।
खेत के चारों और बंधी रस्सियाँ |
समस्या के समाधान के प्रयास नाकाफी सिद्ध हुए !
यहाँ यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि 2019 में योगी सरकार ने स्वीकार किया था कि प्रदेश में 10-12 लाख आवारा पशु हैं और बेसहारा गायों की देखभाल एक बड़ी समस्या है जिसके समाधान के लिए "मुख्यमंत्री बेसहारा गौवंश सहभागिता योजना" को मंजूरी दी गई थी। योजना के तहत बेरोजगार लोग बेसहारा गायों की देखभाल का जिम्मा उठा सकते हैं। इसके बदले में उन्हें एक गाय के लिए रोजाना 30 रुपये के हिसाब से महीने में 900 रुपये यूपी सरकार देगी। इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई व्यक्ति 5 बेसहारा गायों की देखभाल करता है तो उसे महीने में 4500 रुपये सरकार से मिलेंगे। यूपी सरकार को लगा था कि इस योजना से आवारा पशुओं की समस्या का समाधान भी होगा और रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। लेकिन इस योजना का असर जमीन पर अभी तक तो दिखाई नहीं दिया है।
क्यों कारगर नहीं रहा यह उपाय?
मैंने जब किसानों से बेसहारा गौ-वंश के लिए किए जा रहे योगी सरकार के उपायों के बारे में पूछा तो एक भी किसान ऐसा नहीं था जिसे इस योजना के बारे में जानकारी हो। इसका मतलब यह है कि योजना के क्रियान्वयन का जिम्मा जिन लोगों पर है उन्होंने इस योजना का व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं किया। जब लोगों को पता ही नहीं तो कोई इस योजना का लाभ उठाए भी तो कैसे?
उपर्युक्त योजना के अतिरिक्त बेसहारा गौवंशों की देखभाल और उनके संरक्षण के लिए और भी बहुत से "कान्हा उपवन" जैसी योजनाएँ लाई गई हैं लेकिन कोई भी उपाय इस समस्या का समाधान नहीं कर सका है।
क्या वाकई योगी सरकार ग़लत है?
इस लेख का इरादा योगी सरकार पर निशाना साधना नहीं है। दरअसल योगी सरकार ने तो लोगों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए गो-वध पर प्रतिबंध लगाया था। समस्या की जड़ वे लोग हैं जिन्होंने गायों का दूध पीकर उन्हें बेसहारा छोड़ दिया। जब गायों की देखभाल का समय आया तो इऩ लोगों ने उन्हें जंगलों में छोड़ दिया। अच्छी बात यह है कि सभी लोग अपनी गायों को लावारिस नहीं छोड़ते लेकिन ऐसे लोगों की संखया भी कम नहीं है जो बूढ़ी और दूध न देने वाली गायों को जंगलों में छोड़ रहे हैं। ऐसे लोगों की करतूतों का खामियाजा सूबे की वर्तमान योगी सरकार को भुगतना पड़ सकता है। मुझे पूरा विश्वास है कि गो-वध पर प्रतिबंध लगाते वक्त यूपी सरकार को ऐसे हालात उत्पन्न होने का अंदाज़ा नहीं होगा। उल्टे सरकार को विश्वास रहा होगा कि लोग इस फैसले का स्वागत करेंगे। लोगों ने स्वागत किया भी लेकिन सभी लोगों ने पूरा सहयोग नहीं किया।
क्या कहते हैं किसान?
मैंने स्वयं ऐसे किसानों से बात की है। लगभग सभी किसानों का एक स्वर में यह मानना था कि लावारिस गायों की वजह से वे वाकई बहुत परेशान हैं। कुछ किसानों ने इसके लिए योगी सरकार को जिम्मेदार ठहराया। योगी सरकार से नाराज़ किसानों का मानना है कि गो-वध पर रोक से गायों की हत्या पर तो रोक नहीं लगी है उल्टे गाय पालने वालों का भी नुकसान हुआ है क्योंकि वे अब दूध नहीं देने वाली बूढ़ी. कमज़ोर और बीमार गायों को बेच नहीं सकते जिसके चलते ये किसान गायों को जंगलों में छोड़ने के लिए विवश हैं। वहीं जो लोग पहले बेरोक-टोक गो-हत्या करते थे आजकल वे चोरी -छिपे गो-वध करते हैं। अब उन्हें मुफ्त में गाय का मांस उपलब्ध हो रहा है। इसकी वजह यह है कि जंगल में घूम रही गायें आसानी से गो-हत्या करने वालों के हाथ लग जाती हैं। जो नहीं लगती वे किसानों की मार खाती हैं। ज्यादातर गायों की हालत "न घर की न घाट की" वाली हो चुकी हैं। हालाँकि सभी किसान ऐसा नहीं सोचते। बहुत से किसानों ने इसके लिए उन लोगों को दोषी ठहराया जो अपनी गायों की देखभाल से बचने के लिए उऩ्हें जंगलों में छोड़ आते हैं। अब संपूर्ण यूपी के किसान इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं यह जानना भी काफी महत्वपूर्ण है। लेकिन इतना स्पष्ट है कि गोवध पर रोक लगाने के बाद अपनी गायों को बेसहारा जंगल में छोड़ने वालों लोगों को ऐसा करने से रोकने के लिए पर्याप्त सरकारी प्रयास नहीं हुए हैं। इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है।
क्या किया जा सकता है?
सबसे पहले तो राज्य सरकार को यह देखना चाहिए कि उसके प्रयासों से पर्याप्त सफलता क्यों नहीं मिल रही है। उनकी कमियों को खोजकर उन कमियों को दूर करे। दूसरी बात यह है कि जो भी प्रयास हों वो व्यावहारिक होने चाहिए। मसलन सरकार आर्थिक सहायता देकर पशुपालकों को प्रेरित कर सकती है कि वो अपने गौवंश को बेसहारा न छोड़े। मैंने जितने किसानों से बात की लगभग सभी ने यह स्वीकार किया कि सरकार सीधे पशुपालकों को प्रोत्साहित करे और जरूरत पड़े तो दंडित भी करे। यह समस्या ऐसी नहीं है जिसका कोई समाधान हो ही न सके। बाकायदा बेसहारा गौवंशों की संख्या का पता लगाया जाए। समस्या से जुड़े सभी पहलुओं पर व्यापक चर्चा और विचार-विमर्श किया जाए और इसके बाद व्यवहारिक रणनीति बनाकर उसका व्यापक प्रचार प्रसार कर उस पर अमल किया जाए। रणनीति में पशुपालकों को जोड़ने की संभावना पर भी विचार किया जाए।
2022 के विधानसभा चुनावों पर पड़ सकता है असर!
यह तो स्पष्ट है कि बेसहारा गायों की दुर्दशा योगी सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। वहीं किसानों को हो रही परेशानियों का समाधान भी जरूरी है। इस समस्या के प्रभावी समाधान न होने का थोड़ा-बहुत असर यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी हो सकता है। सरकार के कामकाज को लेकर सर्वे करने वालों को किसानों को भी अपने सर्वे में शामिल करना चाहिए। फिलहाल तो यही उम्मीद की जा सकती है कि योगी सरकार बेसहारा गायों की दुर्दशा को रोकने के लिए और भी ज्यादा प्रभावकारी उपाय अपनाएंगी जिससे किसान भी राहत की साँस ले सकें।
विशेष: आलेख के सभी चित्रों का संकलने मैंने स्वयं ग्रामीण इलाकों से किया है। सभी चित्र पिछले 15 दिनों के दौरान लिये गए हैं। योगी जी का चित्र एक सरकारी विज्ञापन से स्क्रीनशॉट के माध्यम से लिया गया है।
-वीरेंद्र सिंह
ऐसी समस्याओं के समाधान विस्तृत अध्ययन तथा गहन विश्लेषण से ही किए जा सकते हैं । किसी भी स्तर पर किसी भी प्रकार की सतही या उथली सोच ऐसी समस्याओं को और जटिल ही बना सकती है, उन्हें सुलझा नहीं सकती । आपका आलेख तथ्यपरक है तथा गहन चिंतन की मांग करता है जो केवल चुनावी विजय के दृष्टिकोण से संभव नहीं ।
ReplyDeleteबहुत ही सारगर्भित लेखन ।
ReplyDeleteआपने जिन समस्याओं पर ध्यान आकर्षित किया है काश वो मुख्यमंत्री तक पहुँच सके ... हो सकता है कोई उपाय निकालने का प्रयास किया जा सके .... सार्थक लेख
ReplyDeleteसर्वप्रथम आपके द्वारा खींचा गया चित्र विशेष ध्यानाकर्षण कर रहा है जो स्वयं कथा कह रहे हैं जिसके लिए हार्दिक बधाई और चिंतनीय विमर्श तो सोचने पर बाध्य कर रहा है ।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर लेख ।
ReplyDeleteआप सभी का बहुत-बहुत आभार।
ReplyDeleteसभ्य और शालीन प्रतिक्रियाओं का हमेशा स्वागत है। आलोचना करने का आपका अधिकार भी यहाँ सुरक्षित है। आपकी सलाह पर भी विचार किया जाएगा। इस वेबसाइट पर आपको क्या अच्छा या बुरा लगा और क्या पढ़ना चाहते हैं बता सकते हैं। इस वेबसाइट को और बेहतर बनाने के लिए बेहिचक अपने सुझाव दे सकते हैं। आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आपको अग्रिम धन्यवाद और शुभकामनाएँ।