शाकाहार-मांसाहार हमेशा एक बहस का विषय रहा है। अपने खानपान की आदतों के पक्ष में शाकाहारियों के अपने तर्क हैं और मांसाहारियों के अपने तर्क। दोनों अपनी-अपनी खानपान की आदतों का तर्कों के साथ बचाव करते हैं। माँसाहारी लोग अपने पक्ष में अक्सर एक सवाल उछालते हैं कि अगर हम सब शाकाहारी हो जाए तो क्या होगा? थोड़ी रिसर्च करने पर इस सवाल का जो जवाब मिला है जिस संतोषजनक और विश्वसनीय माना जा सकता है। मतलब अगर धरती पर सारे लोग शाकाहारी हो जाए तो क्या होगा। इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
- एक रिसर्च के मुताबिक अगर 2050 तक सभी लोग शाकाहारी हो जाए तो हर वर्ष होने वाली मौतों में 7 मिलियन मौते कम होंगी। यानि शाकाहार अपनाने से 7 मिलियन लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है।
- खाने से संबंधित होने वाली ग्रीन हाउस गैसों के उत्पादन में तकरीबन 60 फीसदी तक कमी आ सकती है।
- जानवरों के चारे के लिए बनाए गए चरागाहों को प्राकृतिक आवास और जंगलों में बदलकर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है और हमारी खोई हुई जैव विविधता (Biodiversity) भी वापस आ सकती है।
- पूर्णत: शाकाहार अपनाने से कोरोनरी हार्ट बीमारियोंं, डायबीटीज, स्ट्रोक और कुछ कैंसरों के होने की संभावनाओं को कम किया जा सकता है। इस वजह से दुनिया भर में दबाईयों पर होने वाला खर्च बहुत कम हो जाएगा।
- जानवरों के चरागाहों के लिए इस्तेमाल होने वाली उपजाऊ भूमि पर अतिरिक्त अनाज या अन्प खाद्य वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकता था जिससे कुपोषण और भूखमरी से निपटने में मदद मलेगी। जानकर हैरानी होगी कि विश्व की तकरीबन पाँच बिलियन हेक्टेयर(12Billion acres) कृषि योग्य भूमि का 68% फीसदी, जानवरों के लिए इस्तेमाल होती है।
थोड़े से संयम और प्रयास से और क्या बदलाव आ सकते हैं आइए देखते हैं:-
- एक अध्ययन में पाया गया है कि केवल विश्व स्वास्थ्य संगठन की भोजन संबंधी सलाह को अपनाने भर के यूके(United Kingdom) के ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 17 फीसदी तक की कमी आ सकती है।
- मीट के दाम बढ़ाने और ताजे फल और सब्जियों का उत्पादन बढ़ाकर इन्हें सस्ते दाम पर उपलब्ध कराकर लोगों को शाकाहार की ओर आकर्षित किया जा सकता है।
कुछ परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है-
1- जो लोग मुख्यतया: पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हैं उन्हें जीविका उपार्जन के लिए कोई दूसरा साधन खोजना होगा। कुछ स्थान ऐसे होते हैं जहाँ केवल पशुपालन ही हो सकता है। ऐसे स्थानों के निवासियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
2- कई त्योहार ऐसे होते हैं जिनमें परंपरागत तौर पर मांस का इस्तेमाल होता आया है। कई बार किसी उत्सव या शादियों के मौके़ पर पशुओं को उपहार में देने का चलन है। शाकाहार अपनाने पर इस तरह की परंपराएँ खत्म हो जाएंगी।
3- मांस में पाए जाने वाले पोषको तत्वों की भरपाई अन्य पोषणयुक्त खाद्य पदार्थों से करनी होगी जोकि काफी चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि माना जाता है कि मांस में शाकाहार की तुलना में अधिक पोषक तत्व होते हैं।
कुलमिलाकर शाकाहार अपनाकर होने वाली दिक्कतें ऐसी नहीं हैं जिनका समाधान न निकाला जा सके। वैसे भी शाकाहार अपनाने से होने वाले लाभ ऐसा करने से होने वाली दिक्कतों से कहीं अधिक है। उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि शाकाहार अपनाने में ही भलाई है।
शाकाहार एक सुन्दर संस्कार है।इसे अपनाने के लिए दृढ संकल्प की जरुरत है।हम देव भूमि पर रहने वाले भारतीय ही सौ प्रतिशत शाकाहार की शर्त पूरी नहीं करते तो असंवेदनशील लोगों से इसकी आशा ही रखना व्यर्थ है।पर यदि सभी माँसाहार त्याग दें तो कम से कम निरीह मूक अनबोल प्राणी मानव के कहर से बच सकते हैं।पर बहुत सुन्दर है ये सोच वीरेंद्र जी 🙏
ReplyDeleteआपकी विनम्रता और सदबु्द्धि के आगे नतमस्तक हूँ। माँ सरस्वती की ला़डली हैं आप। बहुत सुंदर टिप्पणी की है। शाकाहार के संबंध में आपसे पूरी तरह सहमत। बहुत-बहुत आभार आपका।
Deleteसभ्य और शालीन प्रतिक्रियाओं का हमेशा स्वागत है। आलोचना करने का आपका अधिकार भी यहाँ सुरक्षित है। आपकी सलाह पर भी विचार किया जाएगा। इस वेबसाइट पर आपको क्या अच्छा या बुरा लगा और क्या पढ़ना चाहते हैं बता सकते हैं। इस वेबसाइट को और बेहतर बनाने के लिए बेहिचक अपने सुझाव दे सकते हैं। आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आपको अग्रिम धन्यवाद और शुभकामनाएँ।