दुर्बलता को दूर भगाकर शक्तिशाली बनिए!
दुर्बलता का नाम मृत्यु!
स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि "कमज़ोरी कभी न हटने वाला बोझ और यंत्रणा है। दुर्बलता का नाम ही मृत्यु है।" कई तरह के दुष्कर्मों को पाप कहा जाता है। हत्या, चोरी, डकैती और दुराचार जैसे कृत्यों की निंदा सारा संसार करता है लेकिन एक और पाप है जिसकी तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता है।उस पाप का नाम है दुर्बलता अर्थात कमज़ोरी। दुर्बलता किसी भी प्रकार की हो सकती है। शारीरिक, मानसिक और सामाजिक। किसी भी तरह की दुर्बलता हानिकारक होती है, क्योंकि ये दुर्बलता ही व्यक्ति की तमाम परेशानियों और दु:खों का कारण है। दुर्बल या कमज़ोर व्यक्ति शीघ्र ही पाप की दलदल में फँस जाता है। उसे आसानी से पथभ्रष्ट किया जा सकता है। शक्तिशाली हर तरह से उसका शोषण करता है। इसलिए कहा गया है कि दुर्बलता मनुष्य के लिए अभिशाप है। दुनिया, दुर्बल व्यक्ति को वो सम्मान कभी नहीं देती जिसका वो हकदार होता है। आमतौर पर दुर्बल व्यक्ति उसे माना जाता है जो शारीरिक रूप से कमज़ोर हो। ऐसा व्यक्ति मानसिक और सामाजिक रूप से भी कमज़ोर होता है और आसानी से बुराईयों में लिप्त हो जाता है। आप कह सकते हैं कि तमाम बुराईयों और ज़ुल्म की जड़ में यह दुर्बलता या कमज़ोरी ही है।
दुनिया कमज़ोर को दबाती है!
दुनियाभर के लोगों की जिन विषयों में सबसे ज्यादा दिलचस्पी होती है उनमें से से एक विषय यह भी है कि विश्व का कौनसा देश सबसे ज्यादा ताकतवर है? "किस देश की सेना कितनी शक्तशाली है" पर चर्चा करना न्यूज़ चैनलों के पसंदीदा मुद्दों में से एक है! अपने देश में जो लोग चीन की आक्रमकता पर बात करते हैं तो वहीं ताकत के मामले में भारत के चीन से थोड़ा पीछे होने की बात पर मन मसोस कर रहे जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि कमज़ोर देश को दुनिया में कोई भी ताकतवर देश दबा लेता है। उसका अपमान करता है। उस पर अपनी नीतियाँ थोपता है।
रामायण और महाभारत से लें सीख!
रामायण और महाभारत की जो बातें हमें सबसे ज्यादा आकर्षित करती हैं उनमें एक से बढ़कर एक महायोद्धा और महाबली की वीरता की बातें भी शामिल हैं। रामायण में भगवान श्रीराम की सहायता के लिए परमशूरवीर लक्ष्मण, सुग्रीव, अंगद, और महाबली हनुमान तो महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण की छत्रछाया और धर्मराज युधिष्ठिर के नेतृत्व में महारथी अर्जुन और भीम, अभिमन्यु और घटोत्कच जैसे महायोद्धाओं के पराक्रम की कहानियाँ हमें आज भी रोमांचित करती हैं। बुराई के प्रतीक रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण जैसे बलशाली योद्धाओं के कारनामे दाँतों तले उँगली दबाने पर मजबूर कर देते हैं। पितामह भीष्म, आचार्य द्रोण, दुर्योधन, दु:शासन, अश्वत्थामा और कर्ण जैसे महारथियों की वीर गाथाएँ हम आज भी बड़े शौक से सुनते भी हैं और सुनाते भी हैं। जानना चाहते हैं कि ऐसा क्यों हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि ये सब शक्तिमान थे। बलशाली थे। महावीर थे। परमशूरवीर थे। एक से बढ़कर एक महायोद्धा थे। ये असाधारण पराक्रमी थे। मानसिक रूप से भी और शारीरिक रूप से भी। संसाररूपी कर्मभूमि में अपने बल और पराक्रम से इन्होंने जो इतिहास लिखा उसकी मिसाल नहीं मिलती। इन सब ने सिद्ध किया है कि अगर आप शक्तिशाली हैं तो आप वो कर सकते हैं कि आपके मरने के हज़़ारों साल बाद भी दुनिया आपको याद करती है। दूसरे शब्दों में कहें तो शक्तिशाली होना किसी वरदान से कम नहीं है।
जंगल में विभिन्न प्रकार के जानवर रहते हैं। लेकिन जंगल का राजा शेर को माना जाता है क्योंकि शेर ने सिद्ध किया है कि शारीरिक और बौद्धिक बल में बाकी जानवर उससे कमतर हैं। शेर की दहाड़ मात्र से बाकी जानवर नो-दो ग्यारह हो जाते हैं। आप अपने आस-पास नज़र उठाकर देख लीजिए जो लोग शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से मज़बूत होते हैं वे अपनी मर्जी से जीते हैं। बलहीन और दुर्बल को अपनी मुट्ठी में रखते हैं। मतलब साफ है कि शक्तिशाली होना अगर वरदान है तो बलहीन या दुर्बल होना किसी अभिशाप से कम नहीं है।
मुख्य रूप से तीन तरह की दुर्बलताएँ होती हैं!
दुर्बलताओं को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं। शारीरिक दुर्बलता। मानसिक दुर्बलता। मानसिक रूप से कमज़ोर व्यक्ति की कोई स्वतंत्र सोच नहीं होती। ये तमाम तरह की बुराईयों को जन्म देने वाले होते हैं। तीसरे तरह की दुर्बलता सामाजिक होती है। सामाजिक दुर्बलता में एकता का अभाव और आत्मनिर्भर न होना शामिल है। उन्नति के लिए समाज का संगठित होना जरूरी है और संगठित होने के लिए आपस में एकता जरूरी है। हम संगठित नहीं थे इसलिए पहले मुगलों ने और फिर अँग्रेज़ों ने हम पर सैकड़ों वर्षों तक राज किया। आत्मनिर्भर न होना भी अपने आप में एक बड़ी कमज़ोरी है। दूसरों पर निर्भर रहने वाले व्यक्ति की बात क्या और औकात क्या?
दुर्बलताओं से छुटकारा पाने का नहीं करते प्रयास!
इतना सब जानने और समझने के बावजूद भी हमने अपनी दुर्बलताओँ से छुटकारा पाने के लिए अपेक्षित प्रयास कभी नहीं किया। इसलिए स्वामी विवेकानंद ने भारतीयों से शक्तिशाली बनने के लिए कहा था। स्वामी विवेकानंद ने कहा था, " हमारे शास्त्र कितने ही बड़े क्यों न हो, हमारे पूर्वज कितने ही महान क्यों न हों लेकिन मैं स्पष्ट कह देना चाहता हूँ कि हम बड़े दुर्बल हैं। शरीर से भी और मस्तिष्क से भी। हम एक साथ मिल नहीं सकते। एक दूसरे से प्रेम नहीं कर सकते। हम तीन मनुष्य एकत्र हो एक दूसरे घृणा करते हैं, इर्ष्या करते हैं, लड़ते-झगड़ते हैं। हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, सोचते-विचारते हैं, लेकिन करते कुछ नहीं।"
यह भी याद रखिए कि शक्ति को हम देख नहीं सकते लेकिन इसे बढ़ा सकते हैं। इसका प्रभाव देख सकते हैं। इसकी मदद से महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा कर सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे हम बिजली को देख नहीं सकते लेकिन उसकी मदद से अपने काम कर लेते हैं। लेकिन सावधानी से करते हैं वरना दुर्घटना होने में देर नहीं लगती। वैसे ही शक्ति के मामले में सावधानी बरतना जरूरी है। शक्ति पर नियंत्रण और शक्ति का दुरुपयोग रोकना जरूरी है। शक्ति का अपव्यय और दुरुपयोग रोकने वाले लोगों की शक्ति के नष्ट होने में देर नहीं लगती।
शक्ति का अपव्यय रोकना जरूरी!
शक्ति की बरबादी रोकेंगे तो उनका संग्रह होगा। ठीक उसी तरह जैसे धन की बर्बादी रोकने से धन बढ़ता है। याद रखिए संसार में कमज़ोर व्यक्ति शायद ही कुछ हासिल कर सके लेकिन शक्तिशाली व्यक्ति बहुत कुछ हासिल कर सकता है। हम जानते हैं कि हमारे देश की कमज़ोरी का फायदा चीन और बाकी ताकतवर मुल्कों ने बहुत उठाया। इसलिए भारत सरकार कमज़ोर देश की छवि को बदलते हुए उसे एक ताकतवर मुल्क की श्रेणी लाने का भरपूर प्रयास कर रही है। जिसमें कुछ हद तक सफलता भी मिल रही रहै। साफ है कि जिस दिन हमारा देश एक ताकतवर मुल्क बन जाएगा तो दुनिया का कोई देश भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 15 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
बहुत ही गूढ़,सराहनीय और चिंतनपूर्ण आलेख, बहुत बहुत शुभकामनाएं वीरेन्द्र जी ।
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार। सादर धन्यवाद।
Deleteसराहनीय लेख आदरणीय ।
ReplyDeleteब्लॉग पर आने और अपने विचारों से अवगत कराने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! सादर आभार।
Deleteप्रेरक व सार्थक लेखन
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय अनीता जी। सादर।
Deleteतन से या मन से दुर्बलता सचमुच अभिशाप है, सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद। ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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