किसी गाँव में एक वृद्ध व्यक्ति रहा करता था। वृद्ध होने के चलते उसे कम दिखाई देता था। उसकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। वृद्ध के कोई सन्तान भी नहीं थी। गाँव के लोग अक्सर उसकी मदद किया करते थे। लेकिन लोगों की मदद के बाद भी उसका गुजारा मुश्किल से होता था। लोग कितने भी दयालु क्यों न हो लेकिन किसी बेसहारा वृद्ध का हर दिन ख्याल रखना आसान नहीं होता। किसी तरह वृद्ध व्यक्ति के जीवन की गाड़ी चल रही थी।
अक्सर उसके पास खाने को कुछ नहीं होता था। ऐसे में वो किसी पास के घर से खाना मांग लाता या आटा ही ले आता। आटा मिलता तो वृद्ध व्यक्ति स्वयं आटा गूंथता और जैसे-तैसे रोटियाँ बनाकर खा लेता। उसके पड़ोस में एक महिला रहती थी। महिला अक्सर वृद्ध से कहा करती थी कि जिस दिन उसे आटा मिला करे तो वो उस आटे को लेकर उसके पास आ जाया करे ताकि वो उसकी रोटियाँ बनाकर वृद्ध को खिला सके।
वृद्ध को रोटियाँ बनाने में बहुत परेशानी होती थी। इसलिए वो भी यही चाहता था कि कोई मांगे हुए आटे की रोटियाँ बनाकर उसे दे दिया करे। लेकिन उस महिला के पास जाने में वो हिचकता था। इसका कारण यह था कि जो भी महिला वृद्ध को आटा दिया करती तो उससे एक बात जरूर कहती कि देखो अपनी पड़ोसी महिला से रोटियाँ मत बनवाना नहीं तो वो तुम्हारे आटे से बनी सभी रोटियाँ तुम्हें नहीं देगी!
इस डर के कारण वृद्ध व्यक्ति पड़ोसी महिला से रोटियाँ बनवाने कतराता था। लेकिन रोटियाँ बनाने में होने वाली कठिनाई ने उसकी हिचक जल्दी ही ख़त्म कर दी। एक दिन वृद्ध व्यक्ति के पास थोड़ा सा आटा रखा था। रोटियाँ सेकने का उसका बिल्कुल मन नहीं था। वृद्ध ने सोचा कि मेरे पास लगभग चार-पाँच रोटियों का आटा है। इस आटे से वो महिला चाहकर भी रोटियाँ अपने पास नहीं रख पाएगी। क्यों न पड़ोस वाली महिला से रोटियाँ सिकवा ले?
यह सोचकर वृद्ध व्यक्ति आटा लेकर उस महिला के पास जा पहुंचा।
उसे देखकर महिला समझ गयी कि वो रोटियाँ सिकवाने के लिए आटा लाया है। महिला ने वृद्ध से आटा लेते हुए कहा ," जब तक मैं इस आटे की रोटियाँ बनाऊँ तुम वहाँ खाट पर जाकर बैठ जाओ।" वृद्ध व्यक्ति पास ही पड़ी एक खाट पर बैठ गया।
महिला ने आटा गूँथ कर पाँच रोटियों के हिसाब से गुँथे हुए आटे के पाँच गोले बनाएँ। महिला ने उस आटे से पाँच रोटियाँ बनाईं। उधर वृद्ध देख तो नहीं पाया था लेकिन जब महिला ने आटे के गोलों को पाँच बार थपका था तो आवाज सुनकर वृद्ध ने अनुमान लगा लिया था कि उसके आटे से पाँच रोटियाँ बनीं है।
लेकिन उस महिला ने वृद्ध को केवल चार रोटियाँ ही दीं। चार रोटियाँ पाकर वृद्ध निराश हो गया। उसे पूरा विश्वास था कि उसके आटे से पाँच रोटियाँ बनी थीं। वृद्ध व्यक्ति ने उस महिला से पूछा -
"पटाखे पाँच रोटी चार क्यों हुई?" अर्थात तुमने तो पाँच-पाँच बार आटे के गोलों को थपका था। लेकिन रोटी बस चार ही बनीं!
इस पर उस महिला ने जवाब दिया -
"एक बर टूटी, दो बर पुयी! बुड्ढे रोटी चार ही हुई!"
मतलब एक रोटी टूट गई थी तो उसे दोबारा थपकना पड़ा! इसलिए रोटियाँ चार ही बनीं!
वृद्ध चुपचाप चार रोटियाँ लेकर अपने घर आ गया।
- वीरेंद्र सिंह
एक बर टूटी, दो बर पुयी! बुड्ढे रोटी तीन ही हुई!" वाह ,समझाया बड़े अनूठे ढंग से ..
ReplyDeleteचालाक इंसानों से बचना सरल इंसानों के लिए आसान नहीं
जी..सही कहा आपने। चालक से बचना बहुत मुश्किल है। कविता जी आपका ब्लॉग पर आने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
Deleteवाह..!
ReplyDeleteधन्यवाद शिवम जी।
Deleteसही बात...वृद्ध व्यक्ति की मजबूरी थी और कमजोरी का फायदा उठाने वालों की कमी कहाँ है इस जहान में ।
ReplyDeleteजी..आपने सही कहा!ब्लॉग पर आने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteलोककथाएं सदैव प्रसांगिक रहती हैं..आपकी कहानी बहुत अच्छी लगी..
ReplyDeleteमजबूरी का फायदा हर कोई उठाता है। लेकिन वैसे देखा जाए तो रोटी बनाने का मेहताना भी तो होना चाहिए।
ReplyDeleteजी.. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका। आपने सही कहा। मुझे लगता है कि उसने मेहनताना चाहिए था तो वृद्ध से चालाकी नहीं करती बल्कि पहली बता देती। सादर।
Deleteबड़ी रोचक लोककथा है यह तो वीरेन्द्र जी । पढ़कर आनंद आ गया ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद जितेंद्र जी। सादर।
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