एक बार एक गाँव में एक व्यक्ति रहता था जिसका नाम महीनिया था। महीनिया का अपना घर तो था लेकिन घरवाली और बच्चे नहीं थे। हर जगह ऐसे लोग होते हैं जो शादी नहीं करते या किसी वजह से उनकी शादी नहीं हो पाती है। महीनिया की भी शादी नहीं हो पाई थी। अकेला होने की वजह से जब मन किया किसी दूसरे गाँव या स्थान पर घूमने निकल गया। इस दौरान वो किसी ऐसे घर की तलाश में रहता जहाँ वो ठहर सके। उसकी एक खासियत यह भी थी कि वो जिसके घर में रुकता उसके घर से एक महीने से पहले नहीं जाता था। इसलिए आस-पास के गाँव के लोगों ने उसका नाम महीनिया रख दिया। दूर-दूर तक लोग उसकी इस खासियत से परिचित थे। महीनिया अव्वल दर्जे का बातूनी और हाजिर जवाब था। अपने इसी गुण के कारण वो कोई न कोई ऐसा घर तलाश ही लेता जो उसे एक महीने तक रुकने दे। जिस-जिस गाँव में भी वो जाता था उस गाँव के निवासी उसे कभी भूलते नहीं थे।
सांकेतिक लोगो |
आदत के अनुसार महीनिया ने एक बार फिर से अन्य गाँव में जाकर किसी के घर एक माह रहने की योजना बनाई। उसने तय किया कि इस बार अपने गाँव से 6-7 कोस की दूरी पर स्थित उस गाँव में जाएगा जहां गए हुए उसे काफी लंबा समय हो गया है। पिछली बार जब वहाँ रहा था तो उसे कोई दिक्कत भी नहीं हुई थी। सोच-विचार कर अगले दिन महीनिया मुर्गे की बांग सुनते ही उठ बैठा। जल्दी से तैयार होकर एक थैले में अपने कपड़े रखकर उस गाँव के लिए निकल पड़ा।
महीनिया तड़के यानी सूरज निकलने के कुछ देर बाद ही गाँव के पास पहुँच गया। गाँव से कुछ दूर पहले एक पेड़ खड़ा था। वो उस पेड़ के नीचे बैठकर सोचने लगा कि किस घर या किसकी बैठक (बड़े-बुजुर्गों का रहने का स्थान जहां वे रात को सो सके और दिन में अपने अन्य साथियों के साथ बातचीत भी कर सके) में जाकर उसे टिकना चाहिए। गाँव के वे लोग जो सुबह-सुबह अपने खेतों पर घूमकर आते हैं उन्होंने महीनिया को देख लिया। उसका हाल-चाल पूछा लेकिन किसी ने भी उससे यह न कहा कि आओ हमारे घर चलो।
थोड़ी देर में महीनिया के आने की ख़बर अन्य लोगों को भी होने लगी। जिन लोगों ने महीनिया को देखा था उन्होंने बाकी लोगों से बताना शुरु कर दिया कि आज तो महीनिया आ रहा है। मजाक-मजाक में सब एक दूसरे से कहने लगे कि जिसे भी उसकी सेवा करनी है उसे अपने घर ले आओ वरना फिर मत कहना की उसकी सेवा का मौक़ा न मिला। क्या पता फिर कब आए या आए ही ना? एक अन्य आदमी न कहा कि वो किसी के कहने से ना आता। अपनी मर्जी का मालिक है जिसके घर भी बैठ गया तो एक महीने बाद ही जाएगा।
उसी गाँव में एक बुढ़िया रहती थी। उसने भैंस भी पाल रखी थी ताकि उसका दूध बेचकर कुछ पैसे जोड़ने के साथ-2 अपना घर भी चला सके। उसकी भैंस दूध भी अच्छा देती थी। बुढ़िया की एक बेटी थी जिसकी शादी हो गई थी। एक बेटा था जो दूसरे गाँव में किसी के घर काम करता था और वहीं रहता था। समय-समय पर वो अपनी माँ से मिलने आता था। बुढ़िया सोचती थी कि वो जल्दी से जल्दी पैसा इकट्ठा कर अपने बेटे की शादी कर देगी और अपने बेटे और बहू के साथ रहेगी। घर में बहू लाने का सपना पाले बुढ़िया रोज़ घर का काम निपटाकर घास लेने के लिए जंगल के लिए निकल जाती और शाम को ही वापस आती। बुढ़िया अपने जीवन से संतुष्ट थी।
लेकिन उस दिन जैसे ही उसे महीनिया के आने की ख़बर हुई तो एक बार को उसे लगा कि कहीं ये महीनिया उसके घर आकर ही न मर जाए? बुढ़िया का मतलब था कहीं उसी के घर न टिक जाए। एक-दो दिन की बात हो तो कोई रख भी ले। ये तो पूरे महीने यहीं रहेगा। रोटी खाने के साथ-साथ दूध भी पीएगा जिसके लिए बुढ़िया बिल्कुल तैयार नहीं थी। उसने उस सुबह खीर बनाई थी। लेकिन अभी खाई नहीं थी। बुढ़िया ने सोचा खीर तो बाद में खा लूँगी। पहले घर से निकल जाऊँ और जंगल से थोड़ी सी घास ले आऊँ। घर का दरवाजा बंद रहेगा तो महीनिया आएगा भी नहीं। ऐसा सोचकर बुढ़िया जल्दी से घास छीलने वाला खुरपा और घास लाने वाली जाली लेकर निकल पड़ी।
बुढ़िया ने जंगल में जाकर इत्मीनान की सांस ली। सोचने लगी भूख तो लगेगी लेकिन उस महीनिया से पीछा छूट जाएगा। जब तक वापस जाऊंगी किसी न किसी के घर वो रुक ही जाएगा। बुढ़िया ने घास छीलना शुरु किया और दोपहर तक इतना घास छील लिया कि उसकी जाली भर गई। बुढ़िया ने जाली उठाई और अपने घर की ओर चल पड़ी। घर पहुंचकर उसने देखा कि उसका दरवाजा खुला हुआ है। बुढ़िया के मन में थोड़ा खटका हुआ लेकिन जब घर के आँगन में देखा और कोई दिखाई न दिया तो उसने चैन की सांस ली।
बुढ़िया ने घास की जाली एक तरफ रख दी। वो थकी हुई थी। उसने पास में रखे जग से थोड़ा सा पानी पिया। बुढ़िया ने अपने आप से कहा कि पहले आराम करूँगी फिर खीर खाऊँगी और वहीं पास में पड़ी एक खाट पर पसर गई। वो अपनी चतुराई पर बहुत खुश थी। पड़ोस की एक महिला ने बाहर से ही पूछा," आज सवेरे-सवेरे ही जंगल चली गई थीं क्या?" बुढ़िया को लगा कि अपनी अक्ल का डंका बजाने का इससे बढ़िया मौक़ा न मिलेगा। ऐसा सोचकर बुढ़िया ने उस महिला से महीनिया के आने और उससे बचने की अपनी तरकीब के बारे में कुछ यूं बताया,
" मैं बड़ी चतुर, बड़ी चालाक बड़ी कड़के की, लेके खुरपा-जाली निकल पड़ी तड़के की"
ऐसा कहते ही बुढ़िया हँसने लगी। उसकी हँसी देखकर महिला के चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आ गई।
तभी बुढ़िया के मकान के अंदर से एक आवाज आई,
"मैं बड़ा चतुर, बड़ा चालाक, बड़ा कड़के का, गुड़ से निगल गया मैं खीर पड़ा तड़के का"
अपने घर के अंदर से आई महीनिया की आवाज सुनकर बुढ़िया जल्दी से पीछे मुड़ी और तेज-तेज कदमों से अपनी रसोई में गई तो देखा कि महीनिया सारी खीर खा गया था। बुढ़िया सिर पकड़कर वहीं बैठ गई।
-वीरेंद्र सिंह
बहुत बढ़िया वीरेंद्र जी। पढ़कर मज़ा आ गया😅😂
ReplyDeleteउत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका बहुत-बहुत आभार शिवम जी। सादर।
ReplyDeleteऐसी मजेदार कहानी बड़े दिन बाद पढ़ने को मिली..बहुत अच्छा हाजिर जवाब दिया..
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी। सादर ।
Deleteअच्छी लोककथा साझा की वीरेन्द्र जी आपने । आभार ।
ReplyDeleteधन्यवाद जितेंद्र जी। सादर आभार।
Deleteपम्मी सिह (तृप्ति) जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। जो शुभ समाचार आपने दिया है उसके लिये भी बहुत-बहुत आभार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कथा।
ReplyDeleteआपको बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
Deleteवाह आनंद आ गया ।
ReplyDeleteमनोरंजक कथा।
सुंदर कहानी
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी। सादर।
Deleteआनंद साझा करने के लिए हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अमृता जी। सादर।
Deleteबहुत सुंदर और मोहक कहानी!!!
ReplyDeleteआपको बहुत-बहुत धन्यवाद विश्वमोहन जी। सादर।
Deleteबहुत सुन्दर लोककथा ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद मीना जी। सादर।
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