एक बार एक गुरु और उनका शिष्य घूमते-घमते बस्ती से बहुत दूर ऐसे स्थान पर निकल आए जहां जंगल ही जंगल थे। दोनों को प्यास लगने लगी थी। लेकिन कहीं पानी का कोई स्रोत दिखाई नहीं दे रहा था। गुरु ने शिष्य से कहा कि अगर ज्यादा आगे जाएंगे तो हिंसक जानवरों से सामना हो सकता है। इसलिए अब लौट चलते हैं। प्यास तो लग रही है लेकिन और आगे जाना सही नहीं होगा। फिर कहीं पानी दिखाई भी तो नहीं दे रहा। गुरु की बात सुनकर शिष्य ने हाँ में गर्दन हिलाई और निवेदन किया कि गुरुजी मैं बहुत थक गया हूं। थोड़ी देर कहीं बैठ जाते हैं फिर वापस चलते हैं।
दिन ढल रहा था। थोड़ी देर आराम करने के बाद दोनों वापस जाने लगे। अचानक उन्होंने देखा कि एक स्थान पर कुछ कौवे और चील इकटठा हो रहें हैं। शिष्य ने अपने गुरु से कहा कि अभी कुछ देर पहले तो यहां कुछ नहीं था। अब अचानक से ये चील-कौवे क्यों उड़ने लगे। गुरु ने कहा यह जंगल है । जरूर कोई जानवर मरा पड़ा होगा! शिष्य ने कहा कि गुरुजी चलकर देखते हैं कि जानवर ही है? या कहीं ऐसा तो नहीं कोई मनुष्य ही पानी के अभाव में मर गया हो?
गुरु ने कहा ऐसा लगता तो नहीं। फिर भी तुम्हारी उत्कंठा को शांत करने के लिए उधर ही चलते हैं। ऐसा कहकर गुरु अपने चेले के साथ उसी दिशा में चल पड़े जिधर चील-कौवे उड़ रहे थे। पास जाकर देखा तो एक हिरन और एक हिरनी वहां मरे पड़े थे। दोनों का देखने से ऐसा लगता था कि दोनों के प्राण कुछ देर पहले ही निकले थे। दोनों को देखकर ऐसा लगता था कि अभी उठकर भाग जाएंगे। दोनों की उम्र मरने वाली नहीं लगती थी। आश्चर्य की बात यह थी कि दोनों हिरनों के पास ही एक गड्ढा था जिसमें थोड़ा सा पानी था। गुरु ने दोनों हिरनों को देखा और सोच में पड़ गए।
वहीं शिष्य के मन में सवाल आता है कि न तो इनके शरीर पर कोई घाव है यानी किसी शिकारी ने तो इन्हें मारा नहीं। और न ही ऐसा लगता कि दोनों किसी बीमारी से मरे हैं! प्यास से मरे हो ऐसा भी नहीं लगता क्योंकि गड्ढे में पानी है। किसी हिंसक जानवर भी नहीं मारा। हिंसक जानवर मारता तो खा जाता या कम से कम इनके शरीर पर कोई निशान तो होता। तो फिर ये मरे तो मरे कैसे? अपनी इस उत्सुकता को शिष्य ने अपने गुरु से कुछ इस तरह पूछा,.
व्याधि कोई लगती नहीं, न ही लगा है कोई बाण,
पानी भी है पास में फिर किस विधि निकले प्राण?
शिष्य का प्रश्न सुनकर गुरु जी थोड़ी देर के लिए शांत हो गए। फिर उन्होंने शिष्य के प्रश्न का उत्तर कुछ इस प्रकार दिया,
पानी थोड़ा हित घना, लगे प्रेम के बाण,
तू पी- तू पी कहे मरे, बस इस विधि निकले प्राण!
गुरु ने शिष्य को समझाते हुए कहा कि ये दोनों हिरन और हिरनी आपस में पति-पत्नी थे। दोनों को प्यास लगी तो पानी की तलाश में भटककर यहां तक आ पहुँचे। यहां आकर दोनों ने देखा कि केवल एक हिरन के लिए तो पर्याप्त पानी है लेकिन दोनों के लिए नहीं है। अगर एक हिरन पानी पीता तो वो आराम से ऐसी जगह जा सकता था जहां उसे और पानी मिल जाता। वहीं अगर दोनों ने पानी पिया तो दोनों का जीवित बचना मुश्किल था क्योंकि बाद में पानी कहां जाकर मिलता उन्हें नहीं पता था। इसलिए हिरन ने हिरनी की ओर प्यार से देखा और कहा कि देखो अगर मुझे पानी नहीं मिला तो मैं कहीं और तलाश लूंगा इसलिए यह पानी तुम पी लो। हिरनी बोली,"नहीं स्वामी! यह पानी आप पी लो। अगर मुझे पानी नहीं मिला और मैं मर भी गई तो कुछ नहीं होगा लेकिन अगर आप को कुछ हो गया तो हमारे बच्चों को कौन पालेगा। इसलिए यह पानी आप पी लो और यहाँ से जितनी जल्दी हो सके निकल जाओ।" हिरनी की बात सुनकर हिरन बोला , " नहीं प्रिय , बच्चों को मुझसे ज्यादा तुम्हारी आवश्यकता है इसलिए यह पानी तुम पी लो।"
बहुत देर तक हिरन और हिरनी एक-दूसरे से विनती करते रहे कि पानी तुम पी लो--तुम पी लो। इस तरह दोनों में से किसी ने भी पानी नहीं पिया और अंत में प्यास की वजह से दोनों के ही प्राण पखेरु उड़ गए। आपस में अत्यधिक प्रेम होने के चलते दोनों ने एक दूसरे के लिए पानी नहीं पिया और अंत में दोनों ही प्यास से मर गये।
-वीरेंद्र सिंह
बहुत बढ़िया लगा पढ़कर। दिल को छू लेनी वाली लोक कथा...🌻
ReplyDeleteआप से निवेदन है,कि हमारी कविता भी एक बार देख लीजिए और अपनी राय व्यक्त करने का कष्ट कीजिए आप की अति महान कृपया होगी
DeleteReply
बहुत-बहुत धन्यवाद शिवम जी। सादर।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 25 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteat 8:42 PM
Deleteआप से निवेदन है,कि हमारी कविता भी एक बार देख लीजिए और अपनी राय व्यक्त करने का कष्ट कीजिए आप की अति महान कृपया होगी
Reply
Delete
ऐसा प्रेम कहानी बन जाता है..अफसोस है कि अब ऐसा प्रेम मानव में यदा कदा ही दिखता है..यह कथा बहुत अच्छी लगी..सादर प्रणाम
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यावाद आपका। सादर।
Deleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-02-2021) को
"कली कुसुम की बांध कलंगी रंग कसुमल भर लाई है" (चर्चा अंक- 3989) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार। सादर।
Deleteबहुत सुंदर कहानी।
ReplyDeleteसादर।
श्वेता जी.. बहुत-बहुत आभार आपका। सादर।
Deleteat 8:42 PM
Deleteआप से निवेदन है,कि हमारी कविता भी एक बार देख लीजिए और अपनी राय व्यक्त करने का कष्ट कीजिए आप की अति महान कृपया होगी
Reply
Delete
उम्दा कहानी बधाई आपको
ReplyDeleteस्वागत है आपका ब्लॉग पर। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteसच्चा प्यार इसे ही तो कहते है। बहुत सुंदर कथा, वीरेंद्र भाई।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका। सादर।
Deleteबहुत सुंदर कथा ।
ReplyDeleteस्वागत है आपका ब्लॉग पर। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteआत्मीयता और प्रेम को दर्शाती अर्थपूर्ण कहानी..सादर शुभकामनाएं वीरेन्द्र जी..
ReplyDeleteआत्मिक प्रेम को दर्शाता सुंदर कथा,सादर नमन
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को फॉलो कैसे करूँ ? गैज़ेट नहीं दिख रहा ।
ReplyDeleteआप इस ब्लॉग को लैपटॉप या कम्प्यूटर पर देखेंगी तो आपको दाहिनी तरफ़ थोड़ा नीचे गैजेट दिख जाएगा। मोबाइल पर ब्लॉग देखेंगी तो सबसे नीचे आपको web versions लिखा दिखाई देगा। उस पर क्लिक कर आपके smart phone पर web version खुल जाएगा. जिस पर आसानी से दाहिनी ओर थोड़ा नीचे गैजेट देख सकती हैं।
DeleteAmazing story
ReplyDeleteधन्यवाद मनीषा जी। आभार।
Deleteबहुत अच्छी कहानी
ReplyDeleteवाह
ब्लॉग पर आपका स्वागत है! आपपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteप्रेम को दर्शाती अर्थपूर्ण कहानी वीरेंद्र भाई।
ReplyDeleteसंजय जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
Deleteप्रेम का अतिरेक लिए हृदय स्पर्शी कथा।
ReplyDeleteआप का बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर।
Deleteसभ्य और शालीन प्रतिक्रियाओं का हमेशा स्वागत है। आलोचना करने का आपका अधिकार भी यहाँ सुरक्षित है। आपकी सलाह पर भी विचार किया जाएगा। इस वेबसाइट पर आपको क्या अच्छा या बुरा लगा और क्या पढ़ना चाहते हैं बता सकते हैं। इस वेबसाइट को और बेहतर बनाने के लिए बेहिचक अपने सुझाव दे सकते हैं। आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आपको अग्रिम धन्यवाद और शुभकामनाएँ।