सांकेतिक चित्र |
(1)
एक बार एक गाँव में एक पंडितजी रहते थे। पंडितजी, पंडिताई करते और अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। वो लोगों के घर जाकर कथा भी किया करते थे। धर्मग्रंथों के बारे में उनके ज्ञान का लोहा सभी मानते थे। इसलिए आस-पास के गाँवों में पंडितजी का बहुत मान-सम्मान था। वो जिसके घर भी जाते वहाँ उनका खूब आदर-सत्कार होता। पंडितजी की बौद्धिकता के दम पर उनके जीवन की गाड़ी ठीक-ठाक चल रही थी। पंडितजी की पत्नी यानी पंडिताइन घर पर ही रहती थी। स्वभाव से वो काफी तेज महिला और थोड़ी जिद्दी महिला थी।
एक बार जब पंडितजी कहीं जाने को तैयार हो रहे थे तो पंडिताइन ने कहा कि पड़ोस के गाँव में एक महाराज जी श्रीमद् भगवद कथा कर रहे हैं । उनकी विशेष बात यह है कि वो सभी को बड़े अच्छे ढंग से गीता समझाते हैं और समझाने के बाद सबसे पूछते हैं कि अर्थ समझ आया। जिन्हें समझ आ जाता है वे हाथ खड़ा कर देते हैं और बाद में महाराज जी को दक्षिणा भी देते हैं। जिनकी समझ में कथा नहीं आई उनसे दक्षिणा नहीं ली जाती । पंडिताइन ने आगे कहा कि आज मेरा भी मन वहाँ जाकर श्रीमद् भगवद कथा सुनने का है।
पंडितजी बोले कि अगर ऐसी बात है तो वापस आकर मैं तुम्हें भगवदगीता समझा दूँगा। तुम्हें दूसरे गाँव जाने की आवश्यकता नहीं है। फिर वहँ तुम्हें दक्षिणा भी देनी पड़ेगी। इसलिए अगर मुझ से भगवद कथा सुनोगी तो कथा भी बढ़िया समझ आएगी और पैसे भी बचेंगे। दूसरे गाँव जाने से भी बचोगी। लेकिन पंडिताइन जिद पर अड़ गई कि मुझे तो महाराज जी से ही कथा समझनी है।
पंडितजी ने पंडिताइन को बहुत समझाया लेकिन पंडिताइन ने अपना निर्णय नहीं बदला। पंडितजी को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा कि मूर्ख स्त्री बाहर के महाराज को पैसा देकर कथा सुनने के लिए तैयार है लेकिन अपने स्वयं के पति से कथा सुनने को तैयार नहीं। जबकि मुझसे कथा सुनने में पैसे बचेंगे और अपना घर छोड़कर कहीं आना-जाना भी नहीं पड़ेगा।
पंडितजी की बात सुनकर अब पंडिताइन को क्रोध आ गया। पंडिताइन ने क्रोधित होकर कहा कि मूर्ख मैं नहीं बल्कि मूर्ख हो आप! दक्षिणा तो तभी देनी पड़ेगी न जब मैं मान लूंगी कि मुझे कथा समझ आ गई। और जब मैं मानूँगी ही नहीं कि मुझे कथा समझ आ गई है तो दक्षिणा क्यों देनी पड़ेगी? अपनी पत्नी की बात सुनकर पंडितजी सकते में आ गए मगर पंडिताइन के तेवर देखकर उन्होंने चुप रहने में ही भलाई समझी।
(2)
एक गाँव में एक महिला और उसके पति के बीच अक्सर झगड़ा होता था। उनके पड़ोसियों को लगता कि इस औरत के तो नसीब फूट गए। पता नहीं कैसा पति मिला है जो बेचारी को इतना परेशान करता है। एक दिन उन दोनों के बीच फिर से झगड़ा हुआ । जब उसका पति बाहर गया तो जाने से पहले अपनी पत्नी को हिदायत दी कि किसी से बताना मत कि हमारे बीच किस बात पर झगड़ा हुआ है। पत्नी क्रोधित थी इसलिए कुछ नही बोला। थोड़ी देर बाद पास के घरों की महिलाएं उसके पास आई और उससे पूछा कि तुम दोनों झगड़ क्यों रहे थे?
वो चुप रही। दूसरी महिलाओं ने पूछा अच्छा यह तो बता दो किस बात पर तुम इतना क्रोधित हो?
अब वो महिला बोल उठी। उसने कहा कि खाने को लेकर हमारे बीच झगड़ा हुआ था। मैंने 10 रोटियाँ बनाई थी जिसमें से 9 मेरा पति खा गया। मेरे लिए केवल एक ही छोड़ी थी। उन महिलाओं को उसके पति पर बड़ा क्रोध आया। एक पड़ोसी महिला ने कहा कि तुम और रोटियाँ बना लो। एक अन्य महिला ने पूछा कि क्या वाकई तुम्हारा पति नौ रोटियाँ खा जाता है? एक और महिला ने उससे पूछा कि तुम कितने आटे की रोटियाँ तैयार करती हो जो तुम्हें कम पड़ जाती है?
इस पर उस महिला ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया,
नौ सेर की मैंने नौ बनाई , नौ सेर का एक चंदा,
वो मोटुआ नौ खा गया मैंने खाया एक चंदा।
अर्थात नौ सेर आटे से मैने 9 रोटियाँ बनाई और नौ सेर आटे से ही मैंने एक बड़ी रोटी(चंदा) बनाई। इनमें से मेरे पति ने 9 रोटियाँ खाई जबकि मुझे केवल एक रोटी(चंदा) ही छोड़ी।
पूरी बात समझते ही पड़ोसी महिलाएँ एक दूसरे का मुंह को ताकने लगी और चुपचाप अपने-अपने घरों को चली गईं।
-वीरेंद सिंह
दोनों ही लोक कथाएं अत्यंत रोचक हैं । साझा करने के लिए आभार आपका वीरेन्द्र जी ।
ReplyDelete...रोचक कथाएं कथाएं !
ReplyDeleteनौ सेर की मैंने नौ बनाई , नौ सेर का एक चंदा,
ReplyDeleteवो मोटुआ नौ खा गया मैंने खाया एक चंदा।
😀😀😀😀
रोचक
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