देश, स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस महोत्सव के तहत 13 से 15 अगस्त 2022 को 'हर घर तिरंगा' अभियान भी चल रहा है। हर घर तिरंगा अभियान में भारतीय बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। लेना भी चाहिए। तमाम मतभेदों को दरकिनार करते हुए आज़ादी के अमृत महोत्सव पर कमोवेश पूरा देश एक साथ आ खड़ा हुआ है। जिस आज़ादी को मिले 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं वो आज़ादी ऐसे ही नहीं मिली है। जिस आज़ादी के जश्न का डंका आज पूरे विश्व में गूंज रहा है उसे पाने के लिए न जाने कितने ही आज़ादी के दीवानों ने हँसते-हँसते अपने प्राणों का बलिदान कर दिया! स्वतंत्रता संग्राम की सभी कहानियाँ आधुनिक भारत के इतिहास में दर्ज हैं। लेकिन यह भी सच है कि इतिहास में सबकुछ दर्ज नहीं है। कितने ही गुमनाम नायक ऐसे हैं जिनका बलिदान के बारे में आज भी कोई नहीं जानता। इतिहास में कितने लोगों ने कब और कैसे अपने प्राणों का बलिदान कर दिया, सब दर्ज हो सकता है। जलियाँवाला बाग में कितने लोग भून दिए गए दर्ज है! अंग्रेज़ों के जुल्म की न जाने कितनी कहानियाँ दर्ज है। लेकिन जो लोग देश पर मर मिटे उनके परिजन का दर्द इतिहास में दर्ज नहीं होगा! जलियाँवाल बाग में भून दिए निर्दोषों के परिजन पर क्या बीती होगी कोई क्या जानता है? हँसते-हँसते फाँसी पर झूलने वाले आज़ादी के मतवालों के बाद उनके परिजन ने कैसे अपनी ज़िंदगियाँ काटी होंगी कौन जानता है? न जाने कितने बच्चे बिना पिता के जवान हुए होंगे। न जाने कितनी महिलाओं ने अकेले ज़िंदगी बिताई होंगी! उनके दर्द को हम नहीं जानते हैं!
आज़ादी की वास्तविक कीमत तभी समझ आ सकती है जब हर भारतीय देश पर मर-मिटने वालों और उनके परिजन के दर्द को जाने और महसूस करे! इसके लिए आधुनिक भारत के इतिहास के साथ-2 उस दौर का साहित्य भी पढ़ा जाना चाहिए। उस वक्त प्रकाशित समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और साहित्य को पढ़ा जाए। उस काल का समुचित अध्य्यन किया जाए तो काफी हद तक अंग्रेज़ी जुल्मों की दास्तान और उसके असर की तस्वीर स्पष्ट हो जाएगी और यह अहसास होगा कि क्यों अंग्रेज़ों से आज़ादी मिलने की घटना कोई सामान्य घटना नहीं थी? अंग्रेज़ों भारतीयों पर बेइंतहा जुल्म ढाते थे! हमारे देश को आर्थिक रूप से कमज़ोर कर रहे थे। अंग्रेज़ी की शोषणकारी और दमनकारी नीतियों से करोड़ों भारतीयों का जीवन नरक बन गया था। उस नरक को भोगने वाले भारतीयों ने कितना दर्द सहा होगा इसका अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है!
आज की पीढ़ी केवल यह जानती है कि हमने कठिन संघर्षों के बाद आज़ादी पायी है जिसमें महात्मा गांधी जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह और अशफाक उल्ला खां जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने हँसते-हँसते मौत को गले से लगा लिया था। नयी पीढ़ी का केवल इतना ही जानना काफी नहीं है। उन्हें अंग्रेज़ों के हर जुल्म की कहानी मुंह जबानी याद होनी चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि वे स्वतंत्रता सेनानी कौन थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया? उन पर क्या बीती होगी जब अपने प्राणों का बलिदान किया होगा? अपने माँ-बाप, भाई-बहन और बीबी-बच्चों को किसी के सहारे छोड़ा था या उन्हें इसका मौक़ा ही नहीं मिला? फाँसी पर झूलने या अंग्रेज़ों की गोली खाने से पहले अपने प्रियजन से आख़िरी बात कब हुई होगी? उनके परिवार वालों कैसी-कैसी मुसीबतें झेली होंगी? उनके दर्द की दास्तान जिन किताबों में है उन्हें पढ़ना होगा! अगर इतना भी न कर सको तो कम से कम अंग्रेज़ी शासन के अत्याचारों और उनके असर को महसूस तो कर ही लेना। अंग्रेज़ो के अत्याचारों का दायरा बहुत विशाल था। धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक - हर तरह से जुल्म करते थे। स्वतंत्रता के वास्तविक मोल को जानने के लिए हर युवा अंग्रेज़ी शासन के बारे विश्वसनीय स्रोतों से जो जानकारी मिले जितनी जानकारी मिले. ग्रहण करनी चाहिए। ताकि सबक मिले कि जो ग़लतियाँ हमारे पूर्वजों ने की है वे ग़लतियाँ हम न दोहराएँ।
अंग्रेज जब भारत आए थे तब यहाँ के राजा आपस में लड़ते रहते थे। बेहतर हथियारों के बल पर और यहाँ के ही कुछ लोगों के समर्थन से अंग्रेजों ने यहाँ के राजाओं को हराकर धीरे-धीरे अपने पैर जमाना शुरू कर दिए। अंग्रेज़ी की इस हरकत का जहाँ अधिकतर भारतवासी अच्छा नहीं मानते थे तो वहीं ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी जो अंग्रेज़ों को भगवान द्वारा भेजा हुआ मानते थे। उनके मुताबिक अंग्रेज़ शांति स्थापित करने वाले थे। वहीं भारतीय समाज अंधविश्वास, बाल विवाह, सती प्रथा और छुआछूत जैसी कुरितियाँ में जकड़ा हुआ था। राम मोहन राय जैसे विद्धान समाज सुधारकों ने समाज से इन बुराईयों को दूर करने का और समाज को सुधारने का बीड़ा उठाया।
अंग्रेज़ लोग भारतीयों पर विश्वास नहीं करते थे। भारतीयों किसानों से हर हाल में लगान वसूल करते थे। भले ही बारिश न होने की वजह से किसान भूखे मर रहे हो। अंग्रेज़ों ने भारतीयों को लूटने के लिए और भी तरीके अपनाएँ। अंग्रेज़ ब्रिटेन में बना माल भारत बेचते लेकिन उस पर कोई शुल्क नहीं देते थे। अंग्रेज़ों की लूट नीति ने भारत के कारीगरों को बर्बाद कर दिया था।
1818 में अंग्रेज़ों ने एक ऐसा क़ानून पास किया जिसमें भारतीयों को बिना किसी ट्रायल के जेल भेजा जा सकता था। दूसरी तरफ अंग्रेज़अपना सामान भारत में बेचते थे। 1829 तक अंग्रेज़ों ने भारत में 7 करोड़ रुपये का सामान भेज दिया था। अंग्रेज़ ऑफिसर मोटा वेतन लेते और प्राइवेट बिजनस से भी पैसा कमाते थे। वहीं क्लार्क तैयार करने के उद्धेश्य से अंग्रेजी भाषा में पढ़ाई जाने लगी। अंग्रेज़ी सीखे लोगो को बेहद मामूली सैलरी में क्लार्क बनाते थे।
1857 के गदर को तो हम सब जानते ही हैं। यह गदर भारतीयों में अंग्रेज़ों के जुल्म से उत्पन्न घृणा और क्रोध से हुआ जिसने ब्रिटिश शासन की नींव हिला थी।
प्रयागराज (उस वक्त इलाहाबाद) के 'जयभारती प्रकाशन' ने सन 2000 में डॉ अर्जुन तिवारी लिखित 'पत्रकारिता एवं राष्ट्रीय चेतना का विकास' पुस्तक का पहला संस्करण प्रकाशित किया था। कहीं से यह संस्करण मेरे हाथ लग गया। इस पुस्तक में पृष्ठ 67 पर लिखा गया है; -
हिंदू-मुसलमानों को लड़ाने के लिए अंग्रेज़ गौ-हत्या को बढ़ावा देते थे जिस पर रॉयल शीट पर छपने वाले एक पैसे के 'पत्र' की टिप्पणी थी_
" हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं का जरा भी ख्याल न कर हिन्दुओं के मोहल्ले में गौ-मांस की बिक्री की जाती है। कोई भी अपने धर्म पर आघात सहन कैसे कर सकता है? अगर कोई हिन्दू अंग्रेज़ों के गिरजे के बगल में देव-मूर्ति स्थापित करके उसकी पूजा के हेतु शंख, घंटा, घड़ियाल, नगाड़ा, आदि वाद्योद्यम करें तो क्या खृष्ठ धर्मोपासक गण कभी यह सह सकते हैं? कदापि नहीं। अतएव हिन्दू लोग यदि इस प्रकार के धर्म विरोधी कार्य को रोकने की चेष्ठा करते हैं तो इसमें अन्याय क्या है?"
एक जगह आगे यह लिखा गया है...
ब्रिटिश प्रशासन के आर्थिक शोषण की चर्चा 'अल्मोड़ा अखबार' ने की है_
"अंगरेजी अफसर भारत में बहुत भारी वेतन लेते हैं। यहाँ तक कि योरोपिय अफसर अपने देश में कठिनता से प्रतिवर्ष 5 या 6 हजार रुपये ही कमा पाते हैं और वे भारत में 3 या 4 हजार रुपये प्रतिमाह लेते हैं। ऐसे बेमेल वातावरण में भारतीयों की आर्थिक स्थिति सुधारने का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता।"
30 अक्टूबर, 1882 ई.
20 जून 1884 ई के अंक में 'हिन्दोस्थान' ने भारतीयों को उत्प्रेरित किया_
" अंगरेज जो लन्दन में बैठे भारत में राज कर रहे हैं, भारत की आर्थिक दशा की दुर्दशा को नहीं समझ सकते। अत: आप स्वयं आंदोलन करो और ब्रिटिश संसद में प्रवेश लो।
पुस्तक में पृष्ठ 69 में बहादुर शाह 'जफर' का संदेश भी है।
"हिन्दुस्तान के हिन्दुओं और मुसलमानों! उठो, भाईयो उठो, खुदा ने इंसान को जितनी बरकतें अता की हैं, उनमें सबसे कीमती बरकत आज़ादी है।"
========
अंग्रेज़ों के जुल्मों की दास्तान को चंद पंक्तियों में नहीं समेटा जा सकता क्योंकि आज़ादी की लड़ाई की कहानी बहुत बड़ी है लिहाजा संक्षेप में यही कहूँगा कि हर हिंदुस्तानी को आजादी की लड़ाई के बारे में जानना चाहिए। आज जब देश आजादी के 75 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है, हर घर तिरंगा अभियान जोर-शोर से चल रहा है तो इस सुनहरे अवसर का लाभ उठाया जाना चाहिए औऱ अपने स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित सभी प्रासंगिक जानकारियों का सही और संपूर्ण विवरण अपनी आज की पीढ़ी को दिया जाना चाहिए। इससे वर्तमान पीढ़ी न केवल प्रेरित होगी बल्कि ऐसा कोई काम नहीं करेगी जिससे देश की स्वतंत्रता खतरे में पड़े। आज़ादी अमूल्य है। इसको हर हाल में बनाए रखने के सिवा कोई रास्ता नहीं है। आज की पीढ़ी को यह समझाना जरूरी है। धन्यवाद।
-वीरेंद सिंह
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार 15 अगस्त, 2022 को "स्वतन्तन्त्रा दिवस का अमृत महोत्सव" (चर्चा अंक-4522)
ReplyDeleteपर भी होगी।
--
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी, आपका बहुत-बहुत आभार। आपका पुन: सक्रिय देखकर बहुत खुशी हुई।
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 15 अगस्त 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सटीक सार्थक विचारणीय आलेख।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा . स्वतन्त्रता का सही अर्थ और मूल्य जानना सबके लिये ज़रूरी है
ReplyDeleteब्लॉग पर आपका स्वागत है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteसार्थक लेख स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपको भी स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। आपका बहुत-बहुत आभार।
Deleteबेहद महत्वपूर्ण संदेश ,जिसे हर अभिभावक को गंभीरता से समझना चाहिए।
ReplyDeleteसादर।
सही कहा आजादी का सही अर्थ समझने के लिए हमें पहले उनका दर्द समझना होगा जो हमें आजादी दिलाने हेतु स्वयं बलि वेदी पर चढ़ गये
ReplyDeleteबहुत ही विचारणीय एवं सारगर्भित लेख ।
सभ्य और शालीन प्रतिक्रियाओं का हमेशा स्वागत है। आलोचना करने का आपका अधिकार भी यहाँ सुरक्षित है। आपकी सलाह पर भी विचार किया जाएगा। इस वेबसाइट पर आपको क्या अच्छा या बुरा लगा और क्या पढ़ना चाहते हैं बता सकते हैं। इस वेबसाइट को और बेहतर बनाने के लिए बेहिचक अपने सुझाव दे सकते हैं। आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आपको अग्रिम धन्यवाद और शुभकामनाएँ।