एक शायर ने बहुत पहले बता दिया था कि हर आदमी में दस-बीस आदमी होते हैं! लेकिन आज तक किसी ने यह नहीं बताया कि आदमी के अंदर बहुत सारे 'जानवर' भी होते हैं! हालाँकि पता सबको है! लेकिन किसी बड़े लेखक ने यह बात ज़ोर देकर स्पष्टता से शायद नहीं कही है इसलिए इंसान की इस अद्भुत विशेषता को वो सम्मान नहीं मिल पाया जिसकी यह हकदार है! जबकि इस विशेषता का लाभ सदियों से उठाया जा रहा है! प्रकृति ने बड़े सोच-समझकर इंसान के अंदर 'जानवर रूपी गुण' का भंडार दिया है जिसका प्रयोग वो विभिन्न परिस्थितियों में करता है! गंभीरता से सोचे तो प्रकृति की यह व्यवस्था एकदम दुरुस्त है! असल जीवन में व्यक्ति कभी कुक बन जाता है तो कभी सफाईकर्मचारी या कुछ और! तब जाकर जीवन की गाड़ी चल पाती है! उसी प्रकार जरूरत के हिसाब से कोई आदमी आसानी से 'जानवर' विशेष बनकर अपना काम चलाता है! अपनी इस अद्भुत 'विशेषता' के लिए आदमी को प्रकृति का धन्यवाद देना चाहिए कि जरूरत पड़ने पर या मजबूरीवश वो अपने अंदर के प्रकृति प्रदत्त 'जानवर' विशेष के गुणों का प्रयोग कर वो कुत्ता, गधा, नाग, चूहा, शेर या कोई अन्य जानवर बन सकता है और आसानी से वह काम कर सकता है जिसे इंसान बने रहकर नहीं किया जा सकता!अगर ऐसा न होता तो कोई इंसान कभी 'कुत्ता' न बनता! और अगर 'कुत्ता' नहीं बनता तो धर्म जी को कभी यह न कहना पड़ता कि बसंती इन 'कुत्तों' के सामने मत नाचना क्योंकि वहाँ गब्बर ने अपने आदमियों को 'कुत्ते' बनाकर खड़ा कर रखा था! और कोई अपनी प्रेमिका को इन 'इंसानी कुत्तों' के सामने क्यों नाचने देगा? धर्म जी के लिए यह डायलॉग भी बदलना पड़ता कि 'कुत्ते-कमीने' मैं तेरा ख़ून पी जाएँगा क्योंकि असली कुत्तों के लिए वो ऐसा कभी नहीं कहते! वैसे असली कुत्तों ने धर्म जी को शायद ही कभी परेशान किया हो! वो तो अपने फिल्मी करियर में फिल्मी 'इंसानी कुत्तों' से ज्यादा परेशान रहे हैं!
इंसानों के अंदर के मौजूद विभिन्न 'जानवरों' के गुणों को उभार-उभार उन्हें कभी 'कुत्ता' 'शेर' रीछ, तो कभी 'भीगी बिल्ली' और 'गाय' बनाकर फिल्म मेकरों ने बहुत पैसे कमाएँ हैं! बाकी अमीर लोग अपने रुतबे को बनाए रखने के लिए 'इंसानी कुत्तों' और 'गधों' को पालते हैं क्योंकि कईं बार परिस्थितियाँ ऐसी बन या बना दी जाती हैं कि दूसरों को काटने को मन करता है लेकिन खुद कुत्ते बनकर काटने में बेइज्ज़ती और अपनी जान को ख़तरा दोनों होता है लिहाजा ऐसे इंसानों को किराये पर रखना पड़ता है जो 'कुत्ता' बनकर अपना फर्ज निभाएं! रीयल 'मोगैम्बो' और 'गब्बर' सरीखें लोगों और नेताओं का काम 'इसानी कुत्तों' के बगैर नहीं चलता! देखा जाए तो कभी न कभी हर इंसान को अपने अंदर के 'जानवर' को जगाना ही पड़ता है! कभी 'भीगी बिल्ली' बनना पड़ता है! कभी 'भेड़िया' और कभी 'गिद्ध' या कुछ और बनकर काम चलाना पड़ता है!
इंसान के अंदर मौजूद 'विभिन्न जानवर' रूपी गुणों का लाभ उठाया ही जाना चाहिए! शनिवार के दिन बहुत से लोग काले कुत्ते को रोटी खिलाते हैं! कभी-कभी काला कुत्ता नहीं मिलता तो प्रतीक रूप में 'इंसानी कुत्ते' को रोटी खिलायी जा सकती है! नागपंचमी के दिन नाग को दूध पिलाने में बहुत सी अड़चने आती हैं! सबसे पहले तो नाग ही नहीं मिलता! मिल जाए तो उसके सामने दूध रखे कौन? वैज्ञानिक यह भी कहते हैं कि नाग दूध पचा ही नहीं सकता! इन झंझटों के चलते नागपंचमी अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं मनायी जाती! इसका उपाय यह है कि 'इंसानी नाग' को पकड़ा जाए! ढूँढने की जरूरत ही नहीं! बस पकड़ लीजिए! जरा सी चतुराई से यह 'नाग' सारा दूध पी जाएगा! छोटे बच्चों को गिरगिट के रंग बदलने को समझाने के लिए गिरगिट नहीं मिले तो 'इंसानी गिरगिट' के उदाहरण से समझाया जा सकता है वगैरा- वगैरा!
सभी बातों को ध्यान में रखने के बाद यह कहा जा सकता हैं कि एक इंसान चलता-फिरता 'चिड़ियाघर' है! हमारे संपर्क में आने वालों के बारे में देर-सवेर पता चल ही जाता है कि फलाँ इंसान ने अपने 'कुत्ते' के गुणों को प्रकट कर रखा है, फलाँ इंसान में 'नाग' की विशेषताएं भरी हुई हैं! दिन भर में ऐसे दो-चार 'कुत्तों', बहुत से 'साँपों', 'गधों' और सैकड़ों 'चूहों' और 'भीगी बिल्लियों' का आसानी से मिल जाना कोई बड़ी बात नहीं है! कभी-कभी ऐसे इंसान भी मिल जाते हैं जिन्होंने 'शेर' जैसे भयानक जानवर के गुणों का उभार रखा होता है! ऐसे लोगों से सबको सतर्क रहना चाहिए! वहीं अगर आपको किसी इंसान में किसी जानवर रूपी लक्षण न मिलें तो आप बड़भागी हैं क्योंकि इंसान बनकर रहने वाले आदमी आजकल कुछ कम ही मिलते हैं! धन्यवाद
- वीरेंद्र सिंह
इंसान बनकर रहने वाले आदमी आजकल कुछ कम ही मिलते हैं। ठीक कहा आपने। सच पूछिए तो विरले ही मिलते हैं। आपका व्यंग्य अच्छा है पर अनजाने में आपने जानवरों की बेइज़्ज़ती कर दी जो इंसानों से कहीं बेहतर नज़र आते हैं।
ReplyDeleteजानवरों पर आपकी बात से सहमत हूं सर। आपकी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए आपका बहुत-बहुत आभार सर।
Deleteवीरेंद्र भाई, सचमुच आजकल इंसान बहुत ही कम मिलते है। सुंदर और करारा व्यंग।
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत शुक्राय ज्योति जी। सादर।
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