ख़ूब पढ़ूंगी,
खूब लिखूंगी,
बाधाओं से नहीं डरूंगी,
जग में सबका नाम करूंगी।
अब कोई उलझन नहीं,
पापा... मैं भैया से कम नहीं।
अब कोई उलझन नहीं,
पापा... मैं भैया से कम नहीं।
मुझे मिले फटकार,
भैया को मिले दुलार,
दो मुझे मेरे हिस्से का प्यार,
जोड़ो फिर से ममता के टूटे तार।
करो अब कोई सितम नहीं,
पापा...मैं भैया से कम नहीं।
मम्मी-दादी को बता दो,
मम्मी-दादी को बता दो,
सारी दुनिया को जता दो,
अपने मन का मैल हटा दो,
लड़की-लड़के का भेद मिटा दो।
बेटी पर अब और ज़ुल्म नहीं
पापा .... मैं भैया से कम नहीं।
मेरे लड़की होने पर करो कोई भी ग़म नहीं,
पापा ....मैं भैया से कम नहीं।
पापा ....मैं भैया से कम नहीं।
यह कविता 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों में देश की बेटियों की शानदार कामयाबी के अवसर पर लिखी गई थी।
(नई दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों (2010) के सफ़लतापूर्वक सम्पन्न हो जाने के बाद आशानुरूप सभी लोग इन खेलों को लेकर अपने -२ मत व्यक्त कर रहे हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है और इससे कई तथ्य भी सामने आ रहे हैं। ऐसे ही एक महत्वपूर्ण तथ्य पर मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ । बात कुछ इस तरह से है कि इन खेलों में पहले स्थान पर रहने वाले ऑस्ट्रेलिया के लिए सबसे ज़्यादा पदक ऑस्ट्रेलिया की महिला खिलाड़ियों ने जीते हैं । चाहे वो सोने-चाँदी के पदक हों या कांस्य पदक. तीनो ही वर्गों में महिलाओं ने बाज़ी मारी है। जिसका मुख्य कारण ऑस्ट्रेलिया में महिला और पुरषों को बीच किसी भी स्तर पर कोई भी भेदभाव का न पाया जाना है। पदकों के मामले में ऑस्ट्रेलियन महिलाएँ वहाँ के पुरषों पर भारी पड़ी।
भारत के लिए महिला खिलाड़ियों ने भले ही पुरुष खिलाड़ियों से कम पदक जीते हों लेकिन पदक तालिका में भारत को दूसरे स्थान पर लाने का श्रेय महिला खिलाड़ियों को ही जाता है। ये बात जग जाहिर है। अगर भारत में भी सभी माता-पिता अपने बच्चों के साथ लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न करें...ख़ासकर उनकी परवरिश में, और हर क्षेत्र में दोनो को बराबर का मौक़ा दें तो वो दिन दूर नहीं जब भारतीय महिलाएँ भी जीवन के हर क्षेत्र में भारतीय पुरुषों को बराबर की टक्कर देंगी। उम्मीद है वो दिन ज़ल्द ही आएगा)
संघर्ष को नए अर्थों में बयान करने की कोशिश की गई है।
जवाब देंहटाएंज़माने को देख कर कई बार यकीन डगमगाता तो है
जवाब देंहटाएंपापा........मैं भैया से कम नहीं....
बहुत अच्छी रचना सन्देश देती हुई अब तो मुझे बचा लो बधाई
जवाब देंहटाएंक्या बात है यार
जवाब देंहटाएंसमाज को महिलायों के बड़ते प्रभाव का सन्देश देती कविता
बेहतरीन
बहुत ही ख़ूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंकोई किसी से कम नहीं है...
2/10
जवाब देंहटाएंसामान्य लेखन
भाव हैं किन्तु रचनात्मकता गायब है
बहुत सुंदर कविता ....
जवाब देंहटाएंइस कविता के माध्यम से आपने बहुत ही सुंदर संदेश दिया है। आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही लिखा है वीरेंद्र ........आज के दौर में बेटियां किसी तरह से कम नहीं है.....सुंदर
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण और सदेश्परक रचना के लिए बधाई
भारतीय समाज में लड़की से भेदभाव करने का जो संस्कार है, वो शर्मनाक है ...
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंफिर कन्या भूर्ण हत्यारों को आती क्यों शर्म नहीं?
पापा .... मैं भैया से कम नहीं....
मेरे लड़की होने पर करो कोई भी ग़म नहीं....
पापा ....मैं भैया से कम नहीं....
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इतनी सुन्दर सन्देश देती रचना को पढ़कर आँख में आंसू आ गए। काश हर व्यक्ति आपकी तरह सोचे। वीरेंदर जी, आपकी लेखनी को नमन !
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आपकी कविता पढ़ कुछ भूली बिसरी बातें याद आ गयी .....
जवाब देंहटाएंबस ठंडी आह है ....!!
भ्रूण हत्या पर चर्चा करके आपने समाज को अविस्मर्णीय योगदान दिया है.मुझे अपने शायर दोस्त,जनाब गुलरेज़ इलाहाबादी का बहुत बेहतरीन शेर याद आ रहा है,आप भी देखें:-
जवाब देंहटाएंदुआएं कौन राखी बाँध कर मांगेगा भाई की,
अगर माँ कोख में आई हुई बच्ची गिरा देगी.
कुँवर कुसुमेश
ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com
देश का समुचित विकास तब तक संभव नही है जब तक देश के लोग पुरुष और महिला को समान दृष्टि से ना देखने लगे..यदि ऐसा हुआ तो देखिएगा हम भी किसी आस्ट्रेलिया से कम नही होंगे..
जवाब देंहटाएंदूसरी बात कविता अत्यन्त भावपूर्ण और बढ़िया है..बधाई
मेरे ब्लॉग पर इस बार चर्चा है जरूर आएँ...लानत है ऐसे लोगों पर ....
जवाब देंहटाएंलड़की ज्यादा मेहनत कश और सहनशील होती है ... मानसिक रूप से भी ज्यादा उन्नत होती है ... कोई भी भेदभाव उचित नहीं
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और शानदार पोस्ट ! बधाई!
bahut hi samyik post .man khush ho gaya aapka lekh v itani badhiya kavita ko padh kar.
जवाब देंहटाएंaapne haqikat ko samne rakkha hai .isi vishwass par chal rahen ki yah antar jald hi dur hoga.
poonam
मेरे लड़की होने पर करो कोई भी ग़म नहीं....
जवाब देंहटाएंपापा ....मैं भैया से कम नहीं....
सुंदर सन्देश देती बेहतरीन रचना। बेटियां बेटो से कम तो नही होती लवक8नयहब्बत अभी तक हमारे समाज को समझ मे नही आई है।
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