जिस दिन से भारतीय कारोबारी गौतम अडानी के संबंध में अमेरिका की शॉर्ट सेलिंग रिसर्च कंपनी, हिंडनवर्ग, की रिपोर्ट आई है उसी दिन से भारत में विपक्षी दलों और सरकार विरोधी मीडिया के चर्चित चेहरे, पीएम मोदी पर अपने तीखे आरोपों के साथ टूट पड़े हैं। इस रिपोर्ट में हाल ही तक दुनिया के तीसरे और एशिया के सबसे अमीर कारोबारी रहे गौतम अडानी की कंपनियों के खातों में गड़बड़ी के आरोप लगाए गए हैं। रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि अडानी समूह के शेयर ओवरप्राइस्ड हैं। रिपोर्ट के आते ही अडानी कंपनियों के शेयर धड़ाम हो गए। उनमें बिकवाली हावी हो गयी। अडानी शेयरों का गिरना बीती 1 फरवरी 2023 तक जारी रहा। एक 6-7 साल पुरानी अमेरिकी कंपनी, संभावित अवैध ट्रेडिंग के मामले जिसकी छानबीन खुद अमेरिका में डिपार्टमंट ऑफ जस्टिस कर रहा है, ने भारत के लगभग 35 साल पुराने(अडानी ग्रुप की स्थापना 1988 में) औद्योगिक घराने की न केवल प्रतिष्ठा को धुमिल करने का प्रयास किया है बल्कि उसे आर्थिक रूप से भी चोट पहुँचाई है।
मीडिया का एक वर्ग गौतम अडानी को पीएम मोदी से नजदीकी रखने वाले बिज़निसमन के तौर पर प्रचारित करता है। अब क्यों करता है भगवान जाने। कयोंकि न तो कभी मोदी जी ने कहा कि फलाँ उद्योगपति मेरा दोस्त है। और न ही किसी उद्योगपति ने कभी कहा कि मोदी से उनकी दोस्ती है। न ही आज तक यह साबित हुआ कि किसी कारोबारी विशेष की पीएम मोदी ने सबसे ज्यादा मदद की है। अब एक ही बात रह जाती है कि आप किसी छुपे एजेंडे के तहत ऐसा कहते हो। कहीं ऐसा तो नहीं कि मुख्य विपक्षी दल, कांग्रेस के पीएम पद के उम्मीदवार, राहुल गांधी का एजेंडा पर काम किया जा रहा है? क्योंकि राहुल गाँधी ही अक्सर पीएम मोदी पर अपने दोस्तों के ए ही काम करने का आरोप लगाते रहते हैं। एजेंडा चाहे जो भी है लेकिन हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद बिना किसी छानबीन और सबूत के सत्ता विरोधी रुख रखने वाले मीडिया से जुड़े लोगों, कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों ने संसद के बजट सत्र में हंगामा खड़़ा कर दिया है। हंगामा कर रहे विपक्षी नेता और सरकार विरोधी मीडिया के चेहरे पीएम मोदी का नाम एक 'काल्पनिक घोटाले' में घसीटने का पुरज़ोर प्रयास कर रहे हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आते ही मोदी पर जिस तरह से चौतरफा हमला किया गया उस साफ़ ज़ाहिर होता है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट और अडानी तो एक बहाना है। दरअसल मोदी निशाना है!
ऐसा मानने के पर्याप्त कारण हैं!
जरा सोचिए... जिस दिन हिंड़नबर्ग की रिपोर्ट आई तो कुछ घंटों में पीएम मोदी के कट्टर आलोचक कथित पत्रकारों ने यह कहना शुरु कर दिया कि "अडानी के घोटाले में एसबाआई(SBI) और भारतीय जीवन बीमा निगम अर्थात (LIC) के साथ-साथ देश ही न डूब जाए!" इन आरोपों के आधार में भले ही कुछ न हो लेकिन नतीजा यह हुआ कि अडानी ग्रुप के शेयर डूब गए। हालाँकि जब एलआईसी और एसबीआई ने अडानी ग्रुप की कंपनियों में अपने निवेश और कर्ज के बारे में स्थिति स्पष्ट की और बाद में और आरबीआई ने भी स्थिति स्पष्ट की तो निवेशकों की जान में जान आई।
इन्होंने आरोप लगाया था कि पीएम मोदी ने एलआईसी का सारा पैसा अडानी ग्रुप में लगवा दिया जो डूब गया जबकि एलआईसी ने स्पष्ट किया है कि उसका 1 फीसदी से भी कम निवेश अडानी ग्रुप में है और वो भी प्रॉफिट में है।
दूसरा दावा यह किया गया थी कि पीएम मोदी ने बैंकों को सारा पैसा अडानी को कर्जे के तौर पर दिला दिया जो डूब गया है। जबकि आरबीआई ने कहा है कि बैंकों की स्थिति मजबूत और स्थिर है। आरबीआई ने बाकायदा बैंकों से अडानी को दिए कर्जे की स्थिति की रिपोर्ट मांगी थी।
एसबीआई ने जितना कर्ज दे रखा है उस कर्ज का 1 फीसदी से भी कम अडानी ग्रुप को दिया गया है। साथ ही अडानी ग्रुप की किसी कंपनी ने अभी तक एसबीआई की कोई भी किश्त को भरने से मना नहीं किया है यानी कभी लोन की किश्त भरने में डिफॉल्ट नहीं किया है।
यह तय है कि न तो एलआईसी और न ही एसबीआई डुबेगा। देश डूबने की तो बात ही न करें। हालाँकि कुछ लोग ऐसे हैं जो यह चाहते हैं कि ये कंपनयां डूबे और देश बर्बाद हो ताकि वे आने तमाम सालों तक जनता को बताते रहे कि देखा हमने तो पहले ही कहा था कि मोदी देश बर्बाद कर देगा।
आप देख सकते हैं कि इन सभी आरोपों के केंद्र में पीएम मोदी हैं जिससे ऐसा लगता है कि इनके पीछे कहीं पीएम मोदी की छवि खराब करने के उदेश्य तो नहीं है? पहले भी कभी राफेल के बहाने तो कभी पैगासस के बहाने पीएम मोदी को फँसाने की कोशिश की गयी थीं। लेकिन तमाम गंभीर कोशिशों के बाद भी मोदीजी की छवि को खराब नहीं किया जा सका। इस बार हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की आड़ में वही सब दोहराया जा रहा है।
कुछ बिंदु और हैं जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
भारत जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है उससे देश-विदेश में बहुत से ऐसे लोग और कंपनियां हैं जिनके पेट में आग लगी हुई है। भारत ने कोविड की भयानक लहर के बावजूद जिस तरह से देश की अर्थव्यवस्था को संभाला है। कोरोना का टीका विकसित कर लोगों को कोरोना के कहर से बचाया है वो लोगों से पच नहीं रहा है। युक्रेन -रूस युद्ध में भारत की तटस्थ नीति हो या चीन से टकराने का हौंसला। हर क्षेत्र में भारत ने अपनी सामर्थ्य का जो डंका बजाया है वो बहुतों को परेशान कर रहा है। आज भारत अपने हित के लिए अमेरिका के दबाव में भी नहीं आता। यह भी कारण हैं कि भारत के एक तकरीबन 35 साल पुराने टॉप के औद्योगिक घराने को एक ऐसी अमेरिकन कंपनी ने टार्गेट किया है जो महज 6-7 साल पुरानी है। कंपनी दावा करती है को उसने पिछले दो साल से ज्यादा समय से अडानी कंपनियों की छानबीन की है। लेकिन 2 साल पहले तो कोरोना ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी थी। तुमने कैसे छानबीन कर ली? चलो मान लेते हैं कि तुमने छानबीन कर ली! तो पहले तुम्हारे आरोपों की जाँच होती उसके बाद कोई टिप्पणी होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। रिपोर्ट के आते ही अडानी को देशद्रोही और लूटेरा कहा जा रहा है। पीएम मोदी के बारे में अनाप-शनाप बोला जा रहा है। सबकुछ बिना किसी जांच और सबूत के।
दिलचस्प तथ्य यह भी है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट की आड़ में इन्होंने पहले तो खुद ही प्रचार करना शुरू कर दिया कि कहीं अब देश ही न डूब जाए। लेकिन जब अडानी में हिंडनबर्ग के आरोपों पर सफाई देते हुए कहा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट, भारत के विकास की कहानी और उम्मीदों पर किया गया सुनियोजित हमला है तो सरकार विरोधी इस गुट ने पाला बदला और अडानी को घेरते हुए कहा कि अडानी तुम 'भारत' नहीं हो। इसलिए अपने आपको 'भारत' मत समझो। हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने तुम पर आरोप लगाए हैं।
अच्छी बात है। अब कट्टर मोदी-विरोधी पत्रकारों से कोई यह पूछे कि जब अडानी 'भारत' नहीं है तो अडानी की कंपनियों के डूबने से भारत देश कैसे डूब जाएगा? देश क्या कोई काग़ज की नाव है जो जरा सी बारिश में डूब जाएगा? चंद दिनों में ही क्रांतिकारी पत्रकारों के सनसनीखेज दावे कोरी लफ्फाजी साबित हुए!
आरोप लगाने वाले मोदी को दोषी ठहराने के लिए उतावलेपन में इतने भ्रमित हो गए हैं कि खुद ही कहते हैं कि अडानी की जाँच क्यों नहीं होती? अगले ही पल आरोप लगाते हैं कि सरकारी संस्थाओं की जाँच का कोई नतीजा नहीं निकलता। साथ ही एक तरफ जाँच की बात करते हैं कि ताकि पता चल सके कि घोटाला हुआ है कि नहीं हुआ है? दूसरी तरफ बिना किसी जाँच के इन्होंने यह भी तय कर लिया कि कारोबारी अडानी एक 'फ्रॉड' है! अब इनसे सवाल पूछा जाए जब आप ने अडानी को फ्रॉड घोषित कर ही दिया है तो सजा भी अपने आप ही तय कर दो। वैसे भी सरकारी जाँच एजेंसियों पर आपको भरोसा नहीं तो जाँच की माँग पर इतना हंगामा क्यों? सेबी और आरबीआई जैसी संस्थाओं पर आप आरोप लगा रहे हो। आपने ऐसा माहौल बना दिया है कि चित भी मेरी, पट भी मेरी और सिक्का मेरा बाप का? मतलब कि अडानी ने घोटाला किया हो या न किया हो। लेकिन पीएम मोदी दोषी हैं इस देश की जनता को मोदी को गद्दी से उतार देना चाहिए!
क्या हिंडनबर्ग रिसर्च ने साजिश की है?
बिना जाँच के यह कहना बहुत मुश्किल है कि हिंडनबर्ग ने साजिश की है या नहीं। लेकिन इतना जरूर है कि इस ग्रुप के बारे में कुख्यात है कि यह शेयर मार्केट में शोर्ट सेलिंग करता है। जो लोग शेयर बाजार में निवेश कर पैसा कमाते या गंवाते हैं वे जानते हैं कि शॉर्ट सेलिंग क्या है।
शोर्ट सेलिंग का मतलब है कि जब शेयर महंगा हो तो ब्रोकर से शेयर उधार लेकर उन्हें ऊँचे दाम पर बेच दो और जैसे ही शेयर के प्राइस गिर जाएं तो सस्ते शेयर खरीदकर ब्रोकर को वापस कर दो। सरल भाषा में कहें तो कोई भी डीमैट अकाउंट (शेयर खरीदने-बेचने और उन्हें रखने वाला अकाउंट) वाला व्यक्ति ऐसे शेयर को बेच सकता है जो उसके पास है ही नहीं। उदाहरण के तौर पर, अडानी ग्रीन का शेयर अगर 2500 रुपये पर हैं किसी व्यक्ति को यह विश्वास है कि मार्केट क्लोज होने तक यह शेयर 200 रुपये तक गिर सकता है तो वो अपने ब्रोकर से अडानी ग्रीन का एक शेयर 2500 रुपये पर बेच देता है। फिर जैसे ही शेयर की प्राइस कम होती है तो बाजार से वापस खरीदकर ब्रोकर को वापस कर देता है। मान लें कि शेयर 2300 रुपये पर आ गया तो इस व्यक्ति को 200 रुपये का मुनाफा होगा। अगर यह काम बड़े स्तर पर किया जाए तो मुनाफा कितना हो ज्यादा हो सकता है इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है। इसमें एक पहलू यह भी है कि अगर शेयर की प्राइस कम होने की बजाय चढ़ जाए तो उधार लेकर शेयर बेचने वाले को नुकसान होना तय है। हिंडनबर्ग ग्रुप यह सुनिश्चित करता है कि उससे संपर्क वाले शोर्ट सेलिंग करने वाले ट्रेडरों को नुकसान बिल्कुल न हो। अर्थात शेयर गिरे तो गिरता ही चला जाए।
हिंडनबर्ग पर आरोप यह है कि उसने शोर्ट-सेलिंग के लिए अडानी ग्रुप पर आधी-अधूरी जानकारी वाले बेबुनियाद आरोप लगाए हैं। इन आरोपों की आड़ में हिंडनबर्ग शोर्ट सेलिंग के जरिए आर्थिक लाभ उठाया है। दूसरे शब्दों में कहें तो आरोप लगाने वाली कंपनी खुद इस मामले में लाभार्थी है।
हिंडनबर्ग के आरोपों की बाकी सच्चाई भी धीरे-धीरे सामने आ ही जाएगी। यह सवाल उठ सकता है कि हिंडनबर्ग ने भारत के दिग्गज कारोबारी को ही क्यों चुना। इसका उत्तर यह है कि हिंडनबर्ग सभी उद्देश्य इस अडानी को टार्गेट करने से पूरे होते हैं। हिंडनबर्ग ने शोर्ट-सेलिंग कर कमाई की। हिंडनबर्ग को पता था कि उसे भारत में भरपूर समर्थन मिलेगा। उसे मिला। हम देख सकते हैं कि हिंडनबर्ग रिसर्च अब चुपचाप है लेकिन भारत में हंगाम बरपा है। संसद ठप पड़ी है। हालाँकि अब इस बात के संकेत भी मिल रहे हैं कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट कूड़े से ज्यादा कुछ नहीं है। लेकिन फिर भी जाँच होनी ही चाहिए। जाँच में जो भी निकले लेकिन दो बातें एकदम तय हैं।
पहली बात यह है कि अगर यह सिद्ध भी हो जाए कि अडानी निर्दोष हैं तो क्या मोदी विरीधी मीडिया और कांग्रेस यह मान लेंगे कि अडानी निर्दोष हैं? इतिहास को उठाकर देख लीजिए कि कांग्रेस और मोदी विरोधी मीडिया यह कभी नहीं मानेगा।
दूसरी बात, ऐसा लगता है कि हिंडनबर्ग और अडानी तो एक बहाना है, दरअसल असली निशाना पीएम मोदी हैं। हिंडनबर्ग रिपोर्ट की आड़ में पीएम मोदी पर हमलावर नेता, मीडिया का एक वर्ग और कांग्रेस व अन्य विपक्षियों के समर्थकों को अडानी को घोटालेबाज साबित करने से ज्यादा इस बात की जल्दबाज़ी है कि कैसे पीएम मोदी को कठघरे में घेरकर उनकी छवि धूमिल की जाएं?
जो नेता इस मामले में अत्यधिक मुखर हैं उनको लेकर भी जनता की अपनी राय है। मसलन कांग्रेस नेता राहुल गाँधी स्वयं नेशनल हेराल्ड केस में भ्रष्टाचार के मामले में जमानत पर बाहर हैं। इसलिए अडानी मामले पर कांग्रेस का अत्यधिक आक्रामक रुख इसी खीज का नतीजा तो नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि जब तक पीएम मोदी की छवि साफ है तब तक कांग्रेस का केंद्र की सत्ता में मुश्किल है। यह कारण भी हो सकता है कि पीएम मोदी की छवि खराब करने का कांग्रेस एक भी मौक़ा हाथ से जाने नहीं देना चाहती है।
दूसरी तरफ इस मामले में 'आप' के राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी काफी आक्रामक हैं। हालाँकि उनके इतिहास पर भी सवाल उठते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वो कथित तौर पर सिनेमाहॉल के बाहर टिकट ब्लैक किया करते थे। एक अन्य मामले में संजय सिंह को अखिल भारतीय परिषद के युवा नेता अंकित भारद्धाज से गलत आरोप लगाने के चलते माफी भी माँगनी पड़ी थी। संजय सिंह को देश के पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी नेता श्री अरुण जेटली से भी गलत आरोप लगाने के लिए माफी मांगनी पड़ी थी। झूठे आरोप लगाकर बाद में माफी मांगने वाले संजय सिंह जब आरोप लगाते हैं तो भले ही मोदी विरोधी लोग उन्हें सिर आँखों पर बैठाते हैं लेकिन संजय सिंह की राजनीति की विश्वसनीयता को लेकर हमेशा संदेह रहता है।
बाकी विपक्षी नेताओं के बारे में भी जो कहा जाए उतना ही कम है। ज्यादातर वे नेता हैं जिहोंने सेना से सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे। चीन के साथ हुई झड़प में अपने सैनिकों का मनोबल गिराने वाले बयान दिए। जो भारत के हर संस्थान पर आरोप लगाते हैं लेकिन एक विदेशी कंपनी के दावों पर आँख मूँदकर विश्वास करते हैं। जो पीएम मोदी को हर हाल में नीचा दिखाना चाहते हैं।
बाकी मोदी विरोधी पत्रकारों की सच्चाई भी देश की जनता जानती है। उनके नाम और काम सभी को पता है। लिहाजा फिलहाल तो यह नहीं कहा जा सकता है कि जनता इनके आरोपों पर आँख मूँदकर भरोसा कर लेगी।
अडानी मामले की उचित जाँच हो। इससे किसी को इंकार नहीं हो सकता। एलआईसी और एसबीआई जैसे संस्थानों की बागडोर जिम्मेदार लोगों पर है लिहाजा यह सवाल ही नहीं उठता कि ये लोग इन संस्थानो को डूबने देंगे। फिर आरबीआई और सेबी भी अपनी तरफ से मामले की छानबीन कर रहे हैं। फिर भी उचित तो यह हो कि हिंडनबर्ग के आरोपों की जाँच जल्द से जल्द हो, उस पर राजनीति न हो। अगर अडानी की कंपनियों में कुछ अनियमितता पायी जाती है तो उचित कार्रवाई होनी चाहिए।
लेकिन सरकार विरोधी लॉबी जाँच से ज्यादा उस आँच में दिलचस्पी रखती है जिसमें मोदी को तपाया जा सके। मोदी को नीचा दिखाया जा सके। सारी राजनीति इसी बात पर है। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या मोदी विपक्ष की हिंडन राजनीति के जाल में फँसेंगे या उनके विरोधी मुँह की खाएंगे?
- वीरेंद्र सिंह
समसामयिक मुद्दे पर सम्पूर्ण जानकारी वह भी रोचक शब्दों में ।
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय सुधा जी। सादर।
Deleteसभ्य और शालीन प्रतिक्रियाओं का हमेशा स्वागत है। आलोचना करने का आपका अधिकार भी यहाँ सुरक्षित है। आपकी सलाह पर भी विचार किया जाएगा। इस वेबसाइट पर आपको क्या अच्छा या बुरा लगा और क्या पढ़ना चाहते हैं बता सकते हैं। इस वेबसाइट को और बेहतर बनाने के लिए बेहिचक अपने सुझाव दे सकते हैं। आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आपको अग्रिम धन्यवाद और शुभकामनाएँ।