अयोध्या की रामलीला के लाइव प्रसारण का स्क्रीन शॉट |
नवरात्र में रामलीला मंचन की परंपरा
शारदीय नवरात्र शुरू होते ही रामलीलाओं का दौर भी शुरू हो जाता है और जब रामलीला की बात आती है तो बचपन के वे दिन भी बहुत याद आते हैं जब रामलीला का नाम सनते ही मन झूमने लगता था। पढ़ाई के दबाव के बाद भी रामलीला देखने की कोई मनाही नहीं थी। रामलीला का अलग ही आकर्षण था। ऊपर से उस दौर के कलाकार जिस परिश्रम के साथ रामलीला का मंचन करते थे वो भी अद्भुत था। हमारे यहाँ रामलीला के जो कलाकार आते थे वे जल्द ही लोगों के साथ घुल-मिल जाते थे। रात 9 बजे से शुरू हो कर सवेरे 4 बजे खत्म होती थी। फिर कलाकार सोते और दिन में 12 बजे के बाद गाँव में घूमने निकल आते। जाहिर है उनके पीछे-पीछे बच्चों का झुंड भी चलता था जो आपस में खूब खुसर-पुसर करते कि देखो यह तो 'हनुमान' जी जा रहे हैं या यह रावण है। कलाकार भी बच्चों की शरारतों का खूब मजा लेते।
मामूली खर्च में रामलीला मंचन का दौर
विशेष बात यह थी कि रामलीला मंचन का कुल खर्च भी कम आया करता था। हालांकि उस वक्त के हिसाब से यह रकम भी काफी थी। फिर भी गाँव वाले खुशी-खुशी रामलीला कराया करते थे। हालांकि इक्का-दुक्का लोग शराब पीकर हंगामा भी करते जिन्हें आसानी से काबू कर लिया जाता था। बाद में गांवों में धीरे-धीरे टेलीविजन का प्रसार बढ़ता गया। मनोरंजन का मुख्य माध्यम टेलीविजन हो गया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही है कि रामलीला मंचन के लिए उपलब्ध खाली स्थान कम होने लगे। वहीं रामलीला मंचन करने वाले कलाकार मुँह मांगी रकम पर भी मिलने मुश्किल हो गए। इसका असर यह हुआ कि बहुत से गाँवों में रामलीला मंचन धीरे-धीरे ंबद हो गया। इसका तोड़ यह निकाला गया कि जिन गांवों में रामलीला का मंचन होता था उन गाँवों में जाकर रामलीला देखना शुरू हुआ।
4जी के आने से बदली तस्वीर
हालाँकि जब से 4 जी आया है, तेज गति के सस्ते इंटरनेट के साथ स्मार्टफोन हमारे हाथों में आया है तब से सबकुछ बदल गया है। अब लोग अपने फोन में ही रामायण भी देख लेते हैं। अयोध्या और दिल्ली जैसे महानगरों में होने वाली रामलीलाओं का तो लाइव टेलीकास्ट भी होता है। आप अपने घर बैठे लाइव रामलीला का आनंद उठा सकते हैं। या वक्त मिलने पर देख सकते हैं क्योंकि वो YouTube पर उपलब्ध है। वहीं कहीं आस-पास ही रामलीला का मंचन हो रहा है तो वहीं जाकर भी देखा जा सकता है।
कम नहीं होता रामलीला का आकर्षण
रामानंद सागर की रामायण के लगभग सभी एपीसोड इंटरनेट पर उपलब्ध है। लोग आज भी बड़ी श्रद्धा से उस रामायण को देखते हैं। जब भी टीवी पर आती है तो बढ़िया टीआरी मिलती है। मनोरंजन के असीमित साधनों के बावजूद रामलीला का आकर्षण कभी कम नहीं होता। रामलीला कमेटियों ने भी समय के अनुसार रामलीला मंचन के के तरीकों को बदला है। उन्हें हाइ-टेक बनाया है। रामलीला देखने वाले दर्शकों का भरपूर मनोंरजन होता है। युद्ध के दृष्यों का मंचन बेहद रोमांचक तरीके से होता है। दिल्ली की बड़ी-बड़ी रामीला कमेटियाँ भगवान रा, लंकापति रावण जैसे पात्रों का निभाने के लिए बड़े-बड़े फिल्मी कलाकारों को बुलाते हैं। इससे भी रामलीला देखने वाले दर्शकों की संख्या बढ़ती है। वहीं छोटे-छोटे शहरों में होने वाली रामलीलाओं में कलाकार अपने अभिनय और रामचरित मानस की चौपाई के दिलचस्प पाठन के दम पर ही दर्शकों को बाँधे रखते हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि रामलीला देखने वाला दर्शक अन्य बातों से प्रभावित तो जरूर होते हैं लेकिन वे सबसे ज्यादा भगवान राम की लीला को देखने के लिए उत्साहित रहते हैं।
पीछे नहीं है नयी पीढ़ी
आमतौर पर होता यह है कि नयी पीढ़ी पुरानी परंपराओं को लेकर उतनी उत्साहित नहीं होती जितनी उनसे अपेक्षा होती है। लेकिन रामायण और महाभारत को लेकर ऐसा देखने में नहीं आता। रामलीलाओं में आने वाले युवाओं को देखकर को पता चलता है कि श्रीराम की लीला उन्हें भी उतना ही उत्साहित करती है जितना बाकी लोगों को। रामलीला का ऐसा अद्भुत आकर्षण हैं जो कभी कम नहीं होता, कभी फीका नहीं पड़ता। इसका जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता है। भगवान राम का चरित्र हमें आनंदित करता है। उनकी लीला का मंचन हमें आत्मिक शांति देता है। बुराई पर अच्छाई की जीत का मंचन आँखों को सुख देता है। हृदय को प्रफुल्लित करता है। जितनी बार देखो उतनी ही बार अच्छा लगता है। रामलीला का आकर्षण कुछ ऐसा है।
विशेष- इस आलेख के भाग-2 में गुजरे जमाने की 'रामलीला मंचन' की कुछ खास बातों की चर्चा होगी।
-वीरेंद्र सिंह
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 28 सितंबर 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
आदरणीय पम्मी सिंह 'तृप्ति' जी आपका बहुत-बहुत आभार। सादर धन्यवाद।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-09-2022) को "शीत का होने लगा अब आगमन" (चर्चा-अंक 4566) पर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय डॉ. रुपचंद्र शास्त्री 'मयंक' जी , आपका बहुत-बहुत आभार सर। सादर धन्यवाद।
Deleteप्रिय वीरेंद्र जी,आपके लेख ने मेरे गाँव की भूली-बिसरी यादों को जगा दिया।मुझे गर्व है कि मैने उस गाँव में जन्म लिया जहाँ शुरु से ही सांस्कृतिक कार्यक्रम खूब होते हैं।भगवान राम और कृष्ण अखंड भारतीय संस्कृति के प्राण हैं।यदि इन्हें संस्कृति से अलग करने की कोशिश की जाये तो वह शून्य में परिवर्तित हो जायेगी।रामलीला श्री राम जी के प्रति जनमानस की अतुलनीय आस्था और श्रद्धा की परिचायक हैं।रामलीला का मंचन करने वाले कलाकारों को सादर नमन जो 4और 5G के युग में भी नाट्य कला को जीवित रखने के लिए ध्वजा उठाये हुये हैं।निश्चित रूप से बचपन के रामलीलाके मैदान में शामको होने वाले रामकथा के विभिन्न प्रसंगों के मंचन को देखने की आतुरता और उनींदी आंखों से उस मंचनको देखने का आनन्द अविस्मरणीय है।कभी-कभी स्वत आंखें नम हो जाती हैं वो सब याद करके।वो दिन कभी नहीं लौटेंगे।हमारी पीढ़ी भाग्यशाली है जिन्होने उस आनन्द को जिया। अगर भावी पीढ़ी इस प्रयास को आगे बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही है तो ये बहुत सुखद है।हार्दिक आभार आपका इस सार्थक और भावपूर्ण लेख के लिए 🙏
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी इतनी सटीक है कि बार-बार पढ़ने को मन कर रहा है। जब 5जी दस्तक देने को तैयार है और मनोरंजन के सारे साधन एक छोटे से स्मार्टफोन में उपलब्ध है तभी रामलीला मंचन को लेकर कलाकारों और दर्शकों की उत्सुकता देखते ही बनती है। सुखद बात यह है कि नयी पीढ़ी भी रामलीला मंचन को लेकर उत्साहित रहती है। बाकी आपने बिल्कुल सही लिखा है। आपकी टिप्पणी मूल्यवान है। इसके लिए आपका बहुत-बहुत आभार।
Deleteसही लिखा आपने पदलते परिवेश में सब बदल-सा गया। रंग मंच के वे किरदार स्मृतियों में ही रह गए है। उत्साह की लहर समय के बहाव लुप्त हो गई है। पढ़वाने हेतु साधुवाद। बहुत बढ़िया लगा पढ़कर।
ReplyDeleteसादर
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय अनीता जी। सादर।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार यशोदा जी।सादर।
Deleteअभी भी, इस युग में भी जहाँ कई दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में चलचित्र की पहुँच नहीं हो पाई है, पारम्परिक उत्सव-आयोजन ही लोगों को पौराणिक व हमारी आस्था और विश्वास से जुड़े कथानकों से अवगत कराते हैं। यही नहीं, आधुनिकता की आड़ में जिन आस्थाओं को तोड़-मरोड़ दिया गया है, उन्हें उनके मूल सात्विक रूप में दर्शाने का कार्य भी यही आयोजन करा पाते हैं। आदि काल से चली आ रही हमारी संस्कृति को जीवित बनाये रखने वाले इन आयोजनों के आयोजकों का तथा इनके पात्रों को जीवन्त बनाने वाले कलाकारों का आभारी रहेगा हमारा समाज! आपकी इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई देना चाहूँगा प्रिय लेखक महोदय!
ReplyDeleteब्लॉग पर आपका स्वागत है।
Deleteबड़ी बढ़िया बात आपने कही है। बहुमूल्य टिप्पणी के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।
सादर धन्यवाद।
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