पिछली पोस्ट में मैंने अपने बचपन की 'रामलीला' की भी चर्चा की थी। उस दौर में होने वाली रामलीला का प्रस्तुतिकरण मुझे बहुत अच्छा लगता था। 'रामलीला मंचन' के दौरान एक पात्र चौपाई पढ़ता है। शोर की वजह से चौपाई ज्यादा समझ नहीं आती थी। लेकिन मुख्य घटनाओं के दौरान गाए जाने वाले गीतनुमा भजन आज भी थोड़े बहुत याद हैं। आजकल की हाईटेक रामलीलाओं में उस तरह के गीत अथवा भजन थोड़े कम ही सुनाई देते हैं। कभी-कभी यह भी जरूर लगता है कि आज के दौर के कलाकार शायद उतनी मेहनत नहीं करते! या फिर रामलीला का प्रस्तुतिकरण पूरी तरह ही बदल गया है। जो भी है। इस पोस्ट में अपने बचपन की रामलीला में गाए जाने वाले कुछ खास गीतों पर चर्चा करूंगा।
जब रामलीला शुरू होती तो एक कलाकार कुछ इस तरह माइक पर बोलता था
"सुने ध्यान से सभी नर नारी
हर मन हरण रसीला है,
सज्जन मत स्वांग समझ लेना
यह श्री राम की लीला है।"
आखिरी पंक्ति रोज बदल जाती थी।
जिस दिन दशरथ मरण की लीला दिखायी तो उस दिन बोला जाता कि "आज दशरथ-मरण की लीला" है। सीता हरण दिखाया गया तो "सीता हरण" की लीला है। जिस दिन लंका दहन हो तो "लंका दहन की लीला' है और जब रावण मरा तो 'रावण-मरण' की लीला है। पहले ही बता देते थे कि आज हम यह दिखाने वाले हैं। यह पंक्ति बोलने के साथ ही माहौल बन जाता था। फिर कुछ लड़के, लड़की बनकर आते और घंटा-डेढ़ घंटा फिल्मी गाने गाते और उन पर नाचते। बीच-बीच में पैसे देने वालों के नाम बोले जाते। उसकी बाद रामलीला का मंचन शुरू हो जाता।
सीताजी को खोजते हुए हनुमान जी जब लंका में अशोक वाटिका में पहुँचते हैं तो वो श्रीराम की अंगूठी को पेड़ के नीचे बैठी सीताजी के पास गिरा देते हैं। तब तक सीताजी को हनुमान के आने का पता नहीं था। रामजी की अंगूठी देखकर गीत गया जाता है। यह गीत आपमें से बहुत से लोगों ने सुना भी होगा।
'मेरे राम की अंगूठी
हे भगवान कहां से आई
मेरे राम की अंगूठी
न कोई दासी, न हरकारा
न कोई ब्राह्मण-नाई
रोते-रोते चारों ओर
सीता ने नज़र दोड़ाई
मेरे राम की अंगूठी
हे भगवान कहाँ से आई'
यह गीत लंबा है लेकिन मुझे इससे ज्यादा याद नहीं है।
वहीं अंगद जब रावण के पास जाते हैं तो श्रीराम का अभिनय कर रहा कलाकर गाकर उन्हें वह संदेश देता है जो रावण को देना है। गीत कुछ इस तरह होता है...
ऐसे कह देना
लंका में जाकर वीर
तुने प्यारी सिया चुराई रे
तुझे लाज-शरम नहीं आई रे
राजा से बना फकीर
ऐसे कह देना
लंका में जाकर वीर
कलाकार जब यह गीत गाते थे तो हर तरफ सन्नाटा छा जाता था। गीत बड़ा है लेकिन मुझे मुखड़ा ही याद है।
यह गीत इंटरनेट पर उपलब्ध है लेकिन इसे हनुमान जी के संदर्भ में बताया गया है। मैंने अंगद के संदर्भ में सुना है। जब रावण को समझाने के लिए अंगद को प्रभु राम, रावण के दरबार में भेजते हैं।
लंका को जीतने के लिए रावण का अति बलशाली पुत्र मेघनाद(मेघनाथ नहीं) जब लक्ष्मण जी को शक्ति से मूर्छित कर देता है तो राम विलाप के दृष्य को प्रभावशाली बनाने के लिए कलाकार बहुत प्रयास करते हैं। मुझे आज भी याद है कि कैसे राम, लक्ष्मण जी के लिए साधारण मनुष्य की भाँति रोते हैं। इस दौरान गाया जाने वाला एक गीत मुझे याद आता है।
भैया लक्ष्मण वीर
बोल तेरे कहाँ तीर
भैया लक्ष्मण वीर
बोल तेरे कहाँ लगा तीर
तुम सारे जग से न्यारे
हो सबकी आँखों के तारे
कोमल तेरो शरीर
बोल तेरे कहाँ लगा तीर
भैया लक्ष्मण वीर
बोल तेरे कहाँ लगा तीर
माता से अब क्या कहूँगा
तेरे बिना मैं नहीं जिउँगा
बहुत बड़ी है हृदय की पीर
बोल तेरे कहाँ लगा तीर
भैया लक्ष्मण वीर
बोल तेरे कहाँ लगा तीर
मेर लिए तुम सदा लड़े हो
आज क्यों ऐसे चुपचाप पड़े हो
तुमको यूँ देख-देखकर
आँखों से बहता नीर
बोल तेरे कहाँ लगा तीर
भैया लक्ष्मण वीर
बोल तेरे कहाँ लगा तीर
यह गीत इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं है।
इसके बाद सुषैन वैद्य को बुलाया जाता है। सुषैन वैद्य बताते हैं कि रात-रात में संजीवनी लायी जाए तो लक्ष्मण के प्राण बच सकते हैं। अब हनुमान जी तैयार होते हैं। तो इस स्थिति में भी एक गीत बनता है।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े हैं
जाओ जी हनुमत बूटी लेन को
भैया मूर्छित पड़े हैं
जाओ जी हनुमत बूटी लेन को
पहले भी हनुमत तुमने मेरे प्राण बचाए
सात समंदर पार गए तुम
सात समंदर पार गए तुम
सुध, सीता की लाए
अब किस सोच में पड़े हो
जाओ जी हनुमत बूटी लेन को
लक्ष्मण मूर्छित पड़े हैं
जाओ जी हनुमत बूटी लेन को
रात-रात में बूटी लाओ तो
भाई के प्राण बचेंगे
सूर्य उदय होते ही भैया
सूर्य उदय होते ही भैया
लक्ष्मण नहीं बचेंगे
लाले.. जान के पड़े हैं
जाओ जी हनुमत बूटी लेन को
लक्षमण मूर्छित पड़े हैं
जाओ जी हनुमत बूटी लेन को
ये गीत आज भी रामलीला मंचन के दौरान सुनने को मिल सकता है।
श्रीराम लीला के दौरान अपनी योग्यता और तैयारी के हिसाब से कलाकार दर्शकों का मन मोहने की पूरी तैयारी रखते थे। यह एक गीतों और भजनों से भरी प्रस्तुति होती थी। कुछ भजन जबान पर ऐसे बैठते थे कि भूलाए नहीं भूलते। ऐसे ही कुछ गीतों को मैंने यहां लिखा है। कम से कम मेरे बचपन की रामलीला में तो यही होता था।
रामलीला मंचन हमें इसलिए आकर्षित करता है क्योंकि इसमें मानव व्यवहार के सभी आदर्श हैं। इसमें त्याग और प्रेम के उच्चतम आदर्श दर्शाए गए हैं। भाईयों का आपस में प्रेम, पुत्र का पिता के प्रति प्रेम, पति-पत्नी का एक- दूसरे के प्रति प्रेम, राजा का प्रजा के प्रति कर्तव्य का आदर्श रूप हमें दिखाई देता है। इसमें तमाम बाधाओं के बावजूद बुराई पर अच्छाई की जीत इंसान को प्रेरित करती है। जाहिर है जब ऐसी अद्धभुत लीला का मंचन कहीं होगा तो ऐसा कौन मन होगा जो इसे देखना नहीं चाहेगा? यह रामलीला का आकर्षण ही है कि भारत के बाहर भी रामायण का मंचन होता है। प्रस्तुतिकरण विभिन्न हो सकता है लेकिन बाकी सब समान ही है। फिलहाल यही कहूँगा कि रामालीला मंचन सदियों से हो रहा है और अपने आकर्षण के चलते यह इसी तरह होता रहेगा।
- वीरेंद्र सिंह
प्रिय वीरेंद्र जी,आपके लेख का ये दूसरा भाग भी बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है। बचपन की रामलीला के गीतों को आपने याद कर यहां लिखा ये सुखद आश्चर्य है ।कभी-कभी अनायास यूँ ही स्मरण हो आते हैं ये भूले-बिसरे गीत पर आज कोई एक भी याद न आ सका ।हाँ जो दो वन्दना मंच पर गाई थी उनमें एक गणपति वन्दना होती थी तो दूसरी दुर्गा माँ की स्तुति जो हरियाणवी में होती थी।ढेरों गीत और संवाद बच्चों में खूब लोकप्रिय थे अब याद नहीं।हमारे यहाँ होने वाली रामलीला का मंचन यशवंत रामायण पर आधारित था।एक बार मैने किसी के घर ये रामायण देखी तो मैने माँग कर उसे पूरा पढ़ा (क्योकिं आम घरों में केवल रामचरित मानस ही होती है)
ReplyDeleteउस आनन्द की अनुभूति बचपन में निराली थी।आपके लेख में अपने गाँव की रामलीला की गणपति वन्दना के एक दो पद जोड़ना चाहूंगी--
जय जय शिवनंदन
हाथ जोड़ हम वन्दन करते हैं!
माथे पर तिलक विराजे
गल मुंड की माला साजे!
जो तेरी शरण में आया
सदाशिव रक्षा करते हैं!!
धन्य-धन्य पार्वती माई।
जिन जाये गणपत राई
भक्तो के आप सहाई
सदाशिव रक्षा करते हैं!!
शिव अपनी शरण में लीजो।
मोहे ज्ञान- ध्यान वर दीजो
भक्तों की रक्षा कीजो
ध्यान जो तुमरा करते हैं
जय जय शिवनंदन
हाथ जोड़ हम वन्दन करते हैं!///
फिर कहूँगी,आदर्श जीवन का आधार है राम कथा।युगों- युगों तक मानव अपने जीवन में आदर्श आचरण और मर्यादाओं के पालन के लिए इससे प्रेरणा लेता रहेगा!
आपके लेख के लिए आपको कोटि धन्यवाद जिसके कारण बीती यादों में झांकने का अवसर मिला 🙏
आपकी विस्तृत और अतिमूल्यवान टिप्पणी मेरी पोस्ट की अपूर्णता को पूर्णता प्रदान कर रही है। हमारे यहां भी रामलीला मंचन की शुरुआत गणपति वंदना और बाकी आरतियों से ही होती थी। यशवंत रामायण के विषय में जानकर बहुत अच्छा लगा। कोशिश करूंगा कि कहीं से मिल जाए। गणपति वंदना पढ़कर हृदय को शांति मिली।राम कथा के विषय में आपके विचारों से कौन सहमत नहीं होगा। अगर पढ़ने वाला इतने चाव से टिप्पणी करे तो लिखने वाले का हौंसला जरूर बढ़ता है। आपकी टिप्पणी प्रेरणा देने वाली है। टिप्पणी में झलक रही आपकी विनम्रता का भी मैं ऋणी रहूंगा। सादर।
Deleteबहुत उपयोगी और प्रेरक।
ReplyDeleteआभार सर जी। सादर प्रणाम।
Deleteसभ्य और शालीन प्रतिक्रियाओं का हमेशा स्वागत है। आलोचना करने का आपका अधिकार भी यहाँ सुरक्षित है। आपकी सलाह पर भी विचार किया जाएगा। इस वेबसाइट पर आपको क्या अच्छा या बुरा लगा और क्या पढ़ना चाहते हैं बता सकते हैं। इस वेबसाइट को और बेहतर बनाने के लिए बेहिचक अपने सुझाव दे सकते हैं। आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आपको अग्रिम धन्यवाद और शुभकामनाएँ।