सरकार और आंदोलनकारी किसान नेताओं को देने होंगे ज़वाब!
पिछले 10 महीनों से चल रहा किसान आंदोलन समाम्त होने का नाम नहीं ले रहा है। मुख्य वजह है कि सरकार और आंदोलनकारी किसान नेता अपनी-अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। आंदोलनकारी किसान नेताओं की जिद है कि सरकार तीन कृषि कानूनों(सितंबर 2020 में संसद से पारित) को वापस लेने का ऐलान करे इसके बाद सरकार से बात की जा सकती है। वहीं सरकार का कहना है कि किसान नेता जिद छोड़ें और 3 कृषि कानूनों के जिन प्रावधानों पर आंदोलनरत किसान नेताओं को आपत्ति है उन प्रावधानों पर बात करने के लिए सरकार तैयार है। दोनों ही पक्ष अपनी-2 मांगों से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि सरकार और आंदोलनकारी किसान नेताओं के बीच बातचीत हुई ही नहीं है। अब तक दोनों पक्षों के बीच 11 दौर की बातचीत हो चुकी है। लेकिन जबसे बातचीत टूटी है। तब से दोबारा शुरु नहीं हो सकी है। बता दें कि आख़िरी दौर की बातचीत 22 जनवरी 2021 को हुई थी।
3 कृषि क़ानूनों के बारे में यहाँ देख सकते हैं!
अब सवाल उठता है कि कौन सही है और कौन ग़लत?
टीवी न्यूज चैनलों पर किसान नेताओं ख़ासकर भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत और सरकार के लोग अपना पक्ष लगातार रख रहे हैं लेकिन कुछ सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब अभी तक नहीं मिला। उन सवालों के जवाब जानना देश की जनता के लिए ज़रूरी है। वक्त आ गया है कि दोनों पक्षाें से उन सवालों के जबाव मांगे जाए जिनके जवाब अभी तक नहीं मिले हैं। तभी यह तय किया जा सकता है कि कौन किस हद तक सही है और किस हद तक ग़लत। सवाल कुछ इस प्रकार हैं.....
1- 'आंदोलनकारी किसानों का भारत बंद बेअसर रहा' या 'महापंचायत फ्लॉप हो गई है' जैसे बयानों से सरकार कब तक काम चलाती रहेगी?
2- सरकार के प्रवक्ता अभी तक भी यह स्पष्ट नहीं कर पाए हैं कि MSP होने के बावजूद किसानों को गेहूँ और धान कम मूल्य पर बेचने को क्यों मजबूर होना पड़ता है?
3-आंदोलनकारी किसान नेता बताएँ कि वे देशभऱ के सभी किसानों के प्रतिनिधि होने का आभास क्यों दे रहे हैं
4- अभी तक भी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आंदोलनरत किसान नेताओं ने क़ृषि बिलों को ढंग से पढ़ा भी है या नहीं?
5- कांग्रेस कह रही है कि सरकार MSP की गारंटी दें। कांग्रेसी प्रवक्ताओं ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया कि जब केंद्र में उनकी सरकार थी तो उन्होंने MSP की गारंटी क्यों नहीं दी थी?
ऐसे ही कई चुभते सवाल हैं लेकिन टीवी न्यूज़ चैनलों के न्यूज़ एंकर अब तक ऐसे किसी भी सवाल का संतोषजनक उत्तर संबंधित पक्षों से नहीं ले पाए हैं। इसे मैं इन पत्रकारों की बौद्धिक हैसियत पर सवाल खड़े होते हैं! कुछ हद तक उनकी नौकरी संबंधित मज़बूरी को भी समझा जा सकता है!
सबसे पहले सरकार की ख़बर लेते हैं!
आंदोलनकारी किसान लगभग पिछले 10 महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान तीन बार भारत बंद किया। पहली बार 8 दिसंबर 2020, दूसरी बार 26 मार्च 2021 को और तीसरा भारत बंद 27 सितम्बर 2021 को किया गया। इसके अलावा 6 फरवरी 2021 को चक्का जाम किया तो 5 सितंबर 2021 को मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत आजोजित की। इसके अलावा देश के अन्य राज्यों में आंदोलनकारी किसान जा रहे हैं। हरियाणा में भी महापंचायत आयोजित की गई है। लेकिन सरकार हर बार यह आभास दिलाती रही कि उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। सरकार के लोग कभी कहते हैं भारत बंद बेअसर रहा! कभी कहते हैं कि चक्का जाम का कोई असर नहीं पड़ा। मुज़फ्फरनगर किसान महापंचायत को सरकार ने राजनीति से प्रेरित बता अपना पल्ला झाड़ लिया। अगर यह मान भी लिया जाय कि किसान आंदोलन और उनकी गतिविधियाँ राजनीति से प्रेरित हैं तब भी सरकार इस आंदोलन को समाप्त करने का प्रयास अपनी तरफ़ से क्यों नहीं करती। आम जनता की परेशानी को देखते हुए सरकार कोई एक्शन क्यों नहीं लेती या तो इनसे बात क्यों नहीं करती। या फिर इन कथित किसान नेताओं पर आवश्यक कार्रवाई क्यों नहीं करती? सरकार का दावा है कि आंदोलनकारी किसान नेता कृषि क़ानूनों पर किसानों में भ्रम फैला रहे हैं। अगर किसान नेता भ्रम फैला रहे हैं तो सरकार उस भ्रम को दूर करने का पर्याप्त प्रयास क्यों नहीं करती? अभी भी बहुत से किसान हैं जो कृषि बिलों को लेकर आशंकित हैं । इससे साफ़ पता चलता है कि सरकार किसानों की आशंकाओं को पूरी तरह ख़त्म नहीं कर सकी है। इसी का लाभ कथित किसान नेता उठा रहे हैं।
2- MSP होने के बावजूद भी किसान धान और गेहूँ को कम मूल्य पर बेचने को मजबूर हैं!
पता नहीं सरकार को इस बात का अहसास भी है या नहीं कि MSP के उसके तमाम दावों के बावजूद किसान अपनी उपज खासकर गेहूँ और धान को समर्थन मूल्य पर नहीं बेच पा रहा है। इसकी मुख्य वजह है कि सभी किसानों की पहुँच मंडी तक नहीं है। दूसरी बात जिनके पास मंडी तक अनाज ले जाने के साधन नहीं है वे किसान ले जाने के झंझट से बचने के लिए अपना अनाज -औने-पौने दामों पर गाँव में आने वाले व्यापारियों को ही बेच देते हैं। ये व्यापारी कम दाम देते हैं वो भी नगद पैसे भी नहीं देते। ये व्यापारी इतने चालाक होते हैं कि किसानों से सस्ता अनाज खरीद कर उसी अनाज को मंडी पर बेचकर लाखों रुपये कमाते हैं। मंडी दूर होने की वजह से बहुत से किसान राइस मिलों पर अपना धान बेचकर आते हैं। राइस मिल वाले थोड़ा बेहतर दाम तो देते हैं लेकिन वो भी MSP से कम ही होता है। कई बार तो अनाज देने के लिए मिल वालों से मिन्नते करनी पड़ती है। एक और बात यह है कि उनके पास दो रेट होते हैं। नगद में 50- रुपया कम देते हैं लेकिन 1-2 महीने के उधार को राजी हो जाआगे तो 50 रुपया ज्यादा देते हैं। लेकिन हर हाल में MSP से कम देते हैं। एक और मजे की बात मेरे क्षेत्र के राइस मिल वाले किसान का धान तोलकर एक काग़ज पर लिखकर दे देते हैं कि आपका धान 50 कुंतल हुआ है। तय रेट को लिखा जाता है। किसान उस हाथ से लिखी पर्ची को तब तक संभाले रखता है जब तक उसका पेमेंट नहीं मिल जाता। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर राइस मिल मालिक को कुछ हो जाए या उसके मन में बेइमानी आ जाए तो उससे पेमेंट पाना किसी भी किसान के लिए आसान नहीं होगा। लेकिन मजूबरी है। भरोसा करना पड़ता है।
यही वजह है कि आंदोलनरत किसान नेता MSP की गारंटी की मांग कर रहे हैं। हालाँकि कृषि विशेशषज्ञों का मानना है कि MSP की गारंटी देने के भी अपने नुक़सान और व्यवहारिक दिक्कतें भी हैं। वैसे भी एमएसपी का लाभ देश के मात्र 6 फीसदी किसानों का मिलता है। अब सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वो किसानों को समझाए कि MSP की गारंटी वाला कानू़न कैसे कुछ किसानों ख़ासकर छोटे किसानों के लिए नुक़सानदायक हो सकता है। सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय दबाव भी पड़ेगा जिसका सीधा असर देश के करदाताओं पर होगा क्योंकि फिर सरकार को ही सारा अनाज खरीदना होगा। वजह यह है कि कोई जरूरी नहीं कि प्राइवेट अनाज व्यापारी एमएसपी पर अनाज खरीदने में रुचि दिखाएँ। अगर वे खरीद भी लें तो उन्हें उस अनाज को बेचने में मुश्किल हो सकती है। छोटे किसानों को ये नुकसान होगा कि जरूरत पड़ने पर फिर उन्हें भी महंगा ही अनाज खरीदना पड़ेगा।
3- सभी किसानों के प्रतिनिधि नहीं है आंदोलनकारी किसान नेता
एक सवाल आंदोलनकारी किसान नेताओं से यह है कि आप किस बिना पर देश के सभी किसानो के प्रतिनिधि बनने का दम भर रहे हैं। डिजिटल जमाना है। यूट्यूब पर हजारों वीडियो ऐसे मिल जाएँगे जिसमें तमाम किसान कृषि बिलों का समर्थन कर रहे हैं। और न केवल समर्थन कर रहे हैं बल्कि राकेश टिकैत जैसे नेताओं की ईमानदारी पर तमाम तरह के सवाल खड़े रहे हैं। इसका मतलब यह भी हुआ कि राकेश टिकैत या गुरनाम सिंह चढूनी भले भी अपने आप को जो समझ रहे हो लेकिन इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और किसानोॆ के प्रति इनकी निष्ठा पर तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं।
आंदोलनकारी किसान नेताओं ने 5 सितम्बर 2021 को मुजफ्फरनगर किसान महापंचायत आयोजित कि लेकिन कृषि बिल के समर्थक किसान नेताओं का आरोप है कि इस महापंचायत में किसानों की परेशानियों से जुड़ी कोई बात नहीं हुई लेकिन राजनीतिक रोटियाँ खूब सेंकी गई। इसलिए हिंद मज़दूर किसान समिति ने मुजफ्फरनगर के उसी इंटर कॉलेज में , जहां पर संयुक्त किसान मोर्चा (आंदोलनकारी किसानों का संगठन) ने महापंचायत आयोजित की थी, राष्ट्रप्रेमी मजूदर किसान महापंचायत का ऐलान किया था। इस महापंचायत में बड़ी संख्या में किसान जुटे थे। इस महापंचायत में आयोजकों ने एक तरफ जहाँ योग सरकार के कुछ कार्यों की प्रशंसा की तो बढ़ती महंगाई , बढ़ी हुई बिजली दरों और आवारा पशुओं की समस्या के लिए योगी सरकार को कठघरे में खड़ा किया।
इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि आंदोलनकारी किसान देशभर के सभी किसानों के प्रतिनिधि नहीं हैं जैसा कि वे आभास दिलाते रहते हैं! लिहाजा सरकार को जरूर इस बात का डर होगा कि यदि आंदोलनकारी किसानों की बात में आकर बिल वापसी हो भी जाए तो इस बात कि क्या गारंटी है कि कृषि बिलों के समर्थक किसानों का गुट बिल वापसी का विरोध नहीं करेगा?
4- किसान नेताओं ने कृषि बिल पढ़े हैं या नहीं?
सरकार ने कई बार यह कहा है कि आंदोलनकारी किसानों ने 3 कृषि बिलों को सही से पढ़ा ही नहीं है। टीवी न्यूज़ चैनलों जब न्यूज़ एंकरों ने जब राकेश टिकैत से यह जानना चाहा कि क्या आपने कृषि बिलों को पढ़ा है। तो उनका दावा रहता है कि पढ़ा है लेकिन जब कृषि क़ानूनों के प्रावधान को लेकर एंकरों ने सवाल किया तो राकेश टिकैत ने कभी सीधा जवाब नहीं दिया। राकेश टिकैत बहुत सी बातें करते हैं। दावे करते हैं लेकिन कृषि बिलों के किसी प्रावधान पर आज तक चर्चा नहीं की। गुरनाम चढूनी को भी बिल के किसी प्रावधान पर बहस करते हुए देखा है। हाँ सरकार पर दूसरे आरोप बहुत लगाते हैं। जानकारों का मानना है कि कृषि बिलों से कृषकों की जमीन छीन ली जाएगी , यह बात गलत है। जबकि आंदोलनकारी किसान नेता लगातार इस बात को दोहरा रहे हैं।
ऐसे में आंदोलनकारी किसान नेताओं के बहुत से समर्थक भी अब यह मानने लगे हैं कि उनके नेताओं ने कृषि बिलों को ठीक से पढ़ा ही नहीं है। अब किसान नेताओं की ज़िम्मेदारी है कि वो जल्द से जल्द यह साबित करें कि उन्होंने पूरे कृषि क़ानूनों का सही से अध्ययन किया है।
5- कांग्रेस ने MSP की गारंटी कभी क्यों नहीं दी?
मज़ेदार बात यह है क एमएसपी के जटिल गणित और इसके फायदे-नुक़सान से कांग्रेस पार्टी भी अंजान नहीं है। इसलिए कांग्रेस ने केंद्र में सत्ता में रहते हुए कभी एमएसपी की गारंटी का कानून नहीं बनाया। जिस सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह जैसा अर्थशास्त्री रहा हो उस सरकार ने अगर एमएसपी की गारंटी देने वाला कानून नहीं बनाया तो जरूर कोई न कोई बात तो होगी। लेकिन आज राजनीतिक मजबूरी के चलते कांग्रेस किसानों को उकसा रही है कि वो सरकार से एमएसपी पर गारंटी की माँग पर अड़े रहे। अगर कांग्रेस ने अपने अनुभव का लाभ उठाते हुए कोई अलग विचार दिया होता जिससे सरकार भी मान जाती और किसान भी संतुष्ट हो जाते तो कांग्रेस को इसका लाभ जरूर मिलता। कांग्रेस के प्रवक्ताओं से जब भी यह सवाल किया जाता है तो वो बड़ी चतुराई से बच निकलते हैं। कांग्रेस को जवाब देना चाहिए कि अगर एमएसपी की गारंटी का कानून इतना ही जरूरी है तो उसने केंद्र की सत्ता में रहते हुए ऐसा क्यों नहीं किया?
सरकार ने कही थी 18 माह तक कानूनों पर अमल नहीं करने की बात!
सुप्रीम कोर्ट ने कृषि क़ानून कर रखे हैं निलंबित
बहुत सारे लोगों को यह जानकर हैरानी हो सकती है कि सुप्रीम कोर्ट ने तीनों नये कृषि क़ानूनों को सस्पेंड कर ऱका है। सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी 2021 को कृषि क़ानूनों के लिए एक कमेटी का गठन भी किया था। 19 मार्च 2021 को कमेटी ने अपनी रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट को सौंप भी दिया। लेकिन अभी तक भी उस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है। यह भी एक आश्चर्यजनक बात है कि रिपोर्ट का लाभ इस आंदोलन को खत्म करने के लिए नहीं किया जा सका।
क्या हैं किसानों की असल समस्याएँ?
26 सिंतंबर 2021 को मुजफ्फरनगर में आयोजित राष्ट्रप्रेमी मजूदर किसान महापंचायत में वक्ताओं ने बताया कि बढ़ती महंगाई खासकर डीजल के दामों में बढ़ोतरी, आवारा पशुओं की समस्या, गन्ने का कम दाम, और बिजली की बढ़ी हुई दरों से किसान बहुत परेशान हैं। वे योगी सरकार से उम्मीद करते हैं कि गन्ने का दाम हरियाणा और पंजाब से ज्यादा दिलाए, बिजली सस्ती करें और आवारा पशुओं की समस्या से निजात दिलाएँ। एमएसपी पर किसी भी छेड़छाड़ को बर्दाश्त न करने की चेतावनी भी दी। किसानों को उपज बेचने में होने वाली दिक्कतें भी मह्त्वपूर्ण हैं।
चूक गई योगी सरकार?
26 सितंबर 2021 की शाम को ही योगी सरकार ने गन्ने का भाव रुपये 25 प्रति कुंतल बढ़ाने का ऐलान कर दिया। सरकार के कट्टर समर्थकों ने जहां इस बढ़ोतरी का स्वागत किया तो वहीं ज्यादातर किसानों ने इस बढ़ोतरी को बहुत संतुष्ट नहीं दिखे। किसानों का मानना है कि जब हरियाणा में गन्ना का रेट 362 रुपये और पंजाब में 360 रुपये प्रति कुंतल हैं तो यूपी में बढ़ोतरी के बाद भी केवल 350 रुपये क्यों? बीजेपी के पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी ने बाकायदा चिट्ठी लिखकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से गन्ने का दाम रुपये 400 प्रति कुंतल करने की मांग की है। वरुण गांधी के मुताबिक बिजली, पानी और खाद की बढ़ी हुई कीमतों के मददेनज़र यह बढ़ोतरी नाकाफी है। जानकारों का मानना है कि अगर गन्ने का भाव रुपये 400 प्रति कुंतल न भी किया जाता तो कम से कम 365 रुपये प्रति कुंतल तो किया जा सकता था। इससे योगी सरकार आसानी से यह दावा कर सकती थी कि सारे देश में गन्ने के दाम यूपी में सबसे ज्यादा हैं। इससे यूपी के किसानों में सरकार के प्रति विश्वास और बढ़ता जिसका लाभ आंंदोलनकारी किसानों को समझाने में किया जा सकता था। लेकिन योगी सरकार यहाँ पर चूक कर गई!
-वीरेंद सिंह
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