आंदोलनकारी किसान नेताओं की लगातार ग़लतियों ने किसान आंदोलन की धार को किया कम!
कृषि क़ानूनों (यहाँ पढ़ें) के ख़िलाफ़ नवंबर 2020 में जब किसान आंदोलन गति पकड़़ रहा था तो ऐसा लगा था कि आंदोलनकारी किसान शायद सरकार से अपनी बात मनवाकर ही दम लेंगे। लेकिन अभी तक तो ऐसा हुआ नहीं। आंदोलन शुरु हुए लगभग 10 महीने हो चुके हैं । आंदोलनकारी किसान अपने इरादों में कामयाब होंगे ऐसा लगता नहीं। दरअसल आंदोलनकारी किसान नेताओं ने लगातार ग़लतियाँ की हैं। कुछ ग़लतियाँ तो ऐसी भी की हैं जिनसे वे आसानी से बच सकते थे। लेकिन नहीं बचे। या उन्होंने बचना जरूरी नहीं समझा। जो भी हो। तथ्य यह है कि किसान आंदोलन अपने मकान तक पहुँचेगा या नहीं पहुँचेगा..कुछ कहा नहीं जा सकता। सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है। ऐसे यह लगता जरूर है कि अगर किसान नेता बड़ी-बड़ी ग़लितयों से बचते तो शायद बात बन जाती। फिलहाल बात करते हैं आंदोलनकारी किसानों की 5 बड़ी ग़लतियों के बारे में;-
1- मोदीजी के बारे में ऊट-पटाँग बोलना
2- कथित तौर पर खालिस्तानियों की मदद लेना
3- 26 जनवरी को लाल किले पर उपद्रव करना
4- राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को जगजाहिर करना
5- राकेश टिकैत का अमेरिकी प्रेजीडेंट को ट्वीट करना
अब इन ग़लतियों पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
1- मोदीजी के बारे में ऊट-पटाँग बोलना
जरा सोचिये कि जो व्यक्ति देश का पीएम है , जो हमारी मांगों को पूरा कर सकता है उसे ही गाली देंगे तो क्या वो व्यक्ति हमारी माँगों को पूरा करेगा? अगर किसी से अपनी बात मनवानी हो तो क्या उसे गाली देते हैं। राकेश टिकैत ने भी एक बार कहा था जो किसान मंच से मोदी जी को गाली देते हैं उनसे हमारा कोई संबंध नहीं। ऐसे लोग मंच से चले जाए। राकेश टिकैत जी सही हो सकते हैं लेकिन आंदोलन के अग्रणी नेता होने के चलते उन्हें पहले ही यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि कम से कम पीएम मोदी के बारे में अमर्यादित बातें न की जाएं। जिस दिन से किसान आंदोलन शुरु हुआ है उसके कुछ समय बाद से ही किसान आंदोलनकारियों के ऐसे-ऐसे वीडियों सामने आने लगे जिनमें पीएम मोदी के मरने तक की दुआ की गई है। एक वीडियों तो ऐसा वायरल हुआ जिसमें कुछ लोग (जिनमें आंदोलनकारी महिलाएँ भी शामिल थीं) मोदी मर जा तू मोदी मर जा तू.को भजन के रूप में गा रहे थे। इसके अलावा समय-समय पर तमाम तरह की अनाप-शनाप बातें की गईं जिन्होंने किसान आंदोलन के उद्देश्यों को प्राप्त करना कठिन बना दिया।
2-कथित तौर पर खालिस्तानियों की मदद लेना
नवंबर में जब किसान आंदोलन शुरु हुआ था तब से ही यह आरोप लगने शुरु हो गए थे कि किसान आंदोलन को अलगावादी सोच रखने वाले खालिस्तानियों का भी समर्थन हासिल है। दिसम्बर 2020 में ब्रिटेन के लंदन में भारतीय दूतावास के सामने किसान आंदोलन के समर्थन में नारे लगाए गए। भी़ड़ ने खालिस्तानी झंडे भी लहराए। मोदी हाय-हाय के नारे भी लगाए। 13 दिसंबर 2020 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में महात्मा गाँधी की प्रतिमा के खिलाफ अमेरिकी सिखों ने किसान आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन किया। इस भीड़ ने खालिस्तानियों के समर्थन में नारे लगाए। कुछ युवकों ने महात्मा गाँधी की प्रतिमा को तोड़ डाला। इस घटना ने अधिकतर भारतीयों के मन में यह बात बैठा दी कि किसान आंदोलन को खालिस्तानी ही वित्तीय मदद दे रहे हैं। हालाँकि किसान नेताओं ने अपने आंदोलन में खालिस्तानी ऐंगल को सिरे से नकार दिया लेकिन एक बड़े वर्ग के मन में यह बात बैठ गई कि किसान आंदोलन को अलगावादी ताकतें मदद कर रही हैं।
3- 26 जनवरी को लाल किले पर उपद्रव करना
26 जनवरी 2021 को कुछ भी लालकिले पर जो हिंसा हुई उसकी जितनी निंदा की जाए कम है। किसान आंदोलन के नाम पर कथित आंदोलनकारियों ने जमकर हिंसा की। सुरक्षाकर्मियों पर जानलेवा हमला किया। तिरंगे को हटाकर एक धर्मविशेष से संबंधित झंडा लगाकर तिरंगे का अपमान हुआ। इस घटना के बाद देशवासियों में रोष उत्पन्न हो गया। किसान आंदोलन को भी झटका लगा। हालाँकि राकेश टिकैत ने जब एक भावुक अपील की जिसने किसान आंदोलन को ऑक्सीजन देने का काम किया। लेकिन इस घटना के बाद किसान आंदोलन के प्रति आम जन के मन वो सम्मान नहीं रहा जो पहले था।
4- राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को जगजाहिर करना
लाख चाहकर भी आंदोलनकारी किसान नेता अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को छुपा नहीं पाए हैं। वैसे तो आंदोलन शुरु होने के कुछ समय बाद ही यह स्पष्ट हो गया था कि विपक्षी दल इस आंदोलन का समर्थन कर रह ेहैं। जुलाई में राजनीतिक बयानबाजी करने के चलते संयुक्त किसान मोर्चा ने हरियाणा भाकियू के अध्यक्ष, गुरनाम सिंह चढूनी को सप्ताह भर के निलंबित किया था। 5 सिंतबर को मुजफ्फरनगर में जब किसान महापंचायत हुई थी उस महापंचायत में किसानों के मुद्दों पर बहुत कम बात हुई लेकिन राजनीतिक बयानबाजियां खूब हुईं। राकेश िटकैत ने खुलकर भले ही न कहा हो कि वे चुनाव नहीं लड़ेगे लेकिन उनके बयानों से साफ़ पता चलता है कि हालात अनुकूल होने पर वे भी राजनीति में उतर सकते हैं। हालाँकि आंदोलनकारी किसान नेता मीडिया में यह दावा जरूर करते हैं कि उनका आंदोलन गैर-राजनीतिक है। क्या योगी सरकार इस चुनौती से निपट पाएगी?
5- राकेश टिकैत का अमेरिकी प्रेजीडेंट को ट्वीट करना
हाल ही में जब पीएम मोदी अमेरिकी दौरे पर थे तो उन्होंने अमरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और उपराष्ट्रपति, कमला हैरिस से भी मुलाकात की। आश्चर्चय की बात यह रही है कि पीएम मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडन की मुलाक़ात से पहले किसान आंदोलन के अग्रणी नेता राकेश टिकैट के ट्वीटर हैंडल से एक ट्ववीट किया जिसमें उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को टैग करते हुए लिखा कि पीएम मोदी के साथ आप हमारे मुद्दों को भी उठाए। ट्टवीट में लिखा गया कि पीएम मोदी द्वारा लाए गए कानून से देश में अब तक 700 से अधिक किसान अपनी जान गवाँ चुके हैं। टिकैत, अपने इस ट्वीट के बचाव जो चाहे दलील दें लेकिन इससे उनकी फजीहत के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ। सोशल मीडिया में उनकी आलोचना हुई। एक यूजर ने लिखा कि क्या आप जानते हैं कि बाइडेन प्रशासन भारत के नये कृषि बिलों का समर्थन करता है। दुनिया जानती है कि हम अपने आंतरिक मामलों में किसी अन्य देश की दखलअंदाजी बिल्कुल बर्दाश्त करते। आंदोलनकारी किसान नेताओं को यह पता होना चाहिए था कि भारत एक संप्रभु राष्ट है और इसके आंतरिक मामलों में किसी भी देश को दखलअंदाज़ी करने की अनुमति नहीं है।
राकेट टिकैत का ट्वीट |
इन ग़लतियों के अलावा एक और ग़लती यह कि किसान नेता पूछे जाने पर बिल में काला क्या है उसको स्पष्ट नहीं कर पाते। कुछ नेता तो यह भी स्पष्ट नहीं कर पाते कि बिल में है क्या? यहाँ तक कि टीवी न्यूज़ चैनलों पर जब कभी राकेश टिकैत से बिलों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कभी भी सीधा जवाब नहीं दिया। बिलों के प्रावधानों पर चर्चा करने की बजाय वो हवा-हवाई दावे करते दिखें। उनके इस रवैया का असर यह हुआ है कि आम जन में यह बात घर कर गई है कि उन्होंने बिल को ठीक से पढ़ा ही नहीं है। अगर उन्होंने बिल को ठीक से पढ़ा होता तो कम से कम कुछ जवाब तो देते। सरकार का भी यही कहना है कि आंदोलनकारी किसानों ने बिल को ठीक से पढ़ा ही नहीं है। किसान आंदोलनकारियों का इसका नुकसान भी हुआ है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आंदोलनकारी किसानों से कुछ ऐसी ग़लतियाँ जरूर हुई हैं जिनके चलते उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि ये ग़लतियाँ आंदोलनकारी किसानों को कहाँ तक नुक़सान पहुंचाएंगी? हम तो यही उम्मीद करेंगे कि कोई ऐसा रास्ता निकले आए जिससे किसानों को भी यह न लगे कि उनकी हार हो गई और सरकार को भी न लगे कि वो हार गई।
- वीरेंद्र सिंह
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