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सौजन्य से: संसद टीवी |
संसद के मॉनसून सत्र में गतिरोध जारी है! कईं दिन गुजर गए लेकिन काम-धंधा शुरू होने की कोई ख़ुशखबरी अभी तक नहीं मिली है। मगर कोई बात नहीं! संसद- सत्र तो आगे भी आते रहेंगे! काम-धाम की तब देखी जाएगी! संसद में हंगामा करने का टाइम फिर मिले न मिले! इसलिए पहले हंगामा फिर काम! इसलिए हैरान-परेशान होने की जरूरत नही है! बस नज़रिया बदलने की जरूरत है! संसद में हो रहे हंगामे को हंगामा कतई नहीं समझा जाना चाहिए! इसे 'ढोल बजाना' कहते हैं! समय-समय पर यह ढोल सभी नेताओं को बजाना पड़ता है! जिस पर जनता को भांगड़ा करना होता है! यह हमारा सौभाग्य है कि हमको ऐसे नेता मिले हैं जो हमें बजाने के साथ-साथ ढोल भी बजा लेते हैं! बेसुरा है तो क्या हुआ? है तो ढोल ही! जनता के पास इस ढोल पर भांगड़ा करने के अलावा और कोई चारा नहीं?
मौजूदा समय में ये ढोल विपक्ष बजा रहा है! इस ढोल की आवाज सनिए! ये ढोल इसलिए बजाया जाता है ताकि जनता जान सके कि जिस तरह महंगाई आपकी कमर तोड़ रही है उसी तरह विपक्षी दल सरकार की अकड़ तोड़ रहे हैं! इसमें कोई बुराई नहीं है। जनता को समझाना होता है कि आपको और हमें यानि प्रतिपक्ष को परेशान करने वाला दुश्मन एक ही है। लिहाजा आप हमारे साथ आ जाये। हंगामे का ढोल बजाना जानते हैं तो ढोल बजाए नहीं तो हमारा ढोल सुनें! जिसने हमें परेशान किया है उसे सबक सिखाने के लिए आपका हमारे साथ आना बहुत जरूरी है! मतलब अब गेंद जनता यानि आपके पाले में है। अब आप सोच रहे होंगे कि आप गेंद का क्या करेंगे! जिस गेंद का इस्तेमाल काफी बाद में होना हो उस गेंद की अभी क्या जरूरत! आपकी बात में दम है लेकिन परेशान होने की जरूरत नहीं है। बस नजरिया बदलने की आवश्यकता है! ढोल बजाने वाले नेताओं की योग्यता और क्षमता पर भरोसा बनाए रखो! अपनी परेशानियां उनके हवाले कर दो! वे आपकी परेशानियों का सही इस्तेमाल करेंगे! आपकी परेशानियों को सीढ़ी बनाकर टॉप पर पहुंचेंगे! आपकी परेशानियों का इससे अच्छा उपयोग नहीं हो सकता है! जनता तो अपनी परेशानियों का अचार तक नहीं बना सकती! इसलिए अपनी परेशानियों को विपक्ष के हवाले करने में ही भलाई है!
वैसे संसद में भले ही तोई काम-धंधा नहीं हो रहा हो लेकिन बाकी तो सब चल रहा है! और जो चल रहा है वो भी कम अभूतपूर्व नहीं है! इसे समझना पड़ेगा! वहीं यह भी सोचिए कि संसद चलने से देश का भला हो जाता है और सत्ता पक्ष की धाक जम जाती है! लेकिन प्रतिपक्ष को सांत्वना पुरस्कार के अलावा कुछ हासिल नहीं होता! अब भला इस बात को कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है? जब संसद चलने के लिए पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों ही बराबर के जिम्मेदार होते हैं तो फायदा भी तो दोनों को बराबर ही होना चाहिए न! मतलब महज संसद चलने से ही तो काम नहीं चलने वाला है न। इसलिए संसद चलने से जरूरी है सबकी राजनीति चले। लिहाजा राजनीति चल रही है। राजनीति घटिया हो तभी चलनी चाहिए! घटिया राजनीति से एक दिन घटिया नेता भी चले निकलेंगे! फिर उनको भी सत्ता मिलेंगी और जब वे सत्ता में आएंगे तब उन्हें इस तरह ढोल बजाने की आवश्यकता नहीं रहेगी! लेकिन इसे बजाने की जिम्मेदारी उन लोगों पर होगी जो उस वक्त विपक्ष में होंगे!
बात साफ़ है कि हंगामे, धरना-प्रदर्शन आदि का जो ढोल बजाया जाता है वो तो हम पहले भी सुनते थे, आज भी सुनते हैं और आने वाले समय में सुनना पड़ेगा। जन्म-जंमांतर का रिश्ता है यह है। इसलिए कर सकते हैं तो भांगड़ा करिए! बस!
-वीरेंद्र सिंह
घटिया नेता चल निकालें मतलब ? ...... घटिया ही तो चल रहे हैं । एक बार संसद में आ गए तो जीवन भर कुछ करने की ज़रूरत नहीं । वैसे संसद में भी कुछ करते तो हैं नहीं । अच्छा व्यंग्य लिखा है ।
ReplyDeleteघटिया नेता के संबंध में आपकी राय से सहमत हूँ। संसद में घटिया राजनीति से प्रेरित व्यवहार के अतिरिक्त ये लोग कुछ नहीं करते। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।सादर।
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