गांव के पनघट पर उल्लसित सजी युवतियां अपने अपने घड़े भरकर जा चुकी थी। एक अलबेली छबीली अभी घड़े में फंदा डाल रही थी कि एक बटोही आ खड़ा हुआ। युवती ने कनखियों से देखा। गर्दन झुकाई, फिर तनिक गर्वित मुस्कान के साथ घूंघट कि ओट से बोली, 'के काम से छोरा?,
युवक दो पग और बढ़ा। बोला, ' प्यास घणी से।'
युवती चुप रही।
'दो-एक घूंट पाणी पिलावेगी कामणी नार?'
तुनक कर युवती ने नैन नचाते हुए कहा, 'दीखे नी से मैं कोमल नार हूं। कुएं से घघरी भरने में म्हारी कम्मर बल खा जागी। भरी घाघरी उठाने से दूखेगा। पाणी किस तरह पिलाऊं बटोही।'
'थारा गाम की बढ़ाई सुण आया से। ना पिलावेगी तो प्यासा रैलूंगा। युवक लौटने को हुआ।
युवती उसे रोकती हुई बोली, 'रुक जा बटोही।
दो क्षण रुक कर बोली, 'ये तो बता बांका छोरा तू के गांव का पावणा से? किस का भरतार से?'
युवक मुस्कराया।
बोला, 'मैं थारा गाम का पावणा हूं...तेरे पिता की बेटी का भर्तारा (पति) हूं। आंख्या उठा देखेगी कोनी?'
युवती की नज़रें युवक की ओर उठ गईं। एकदम लजा मुहं ढक लिया उसने।
कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद युवक फिर बोला, 'प्यासा जाऊं?'
युवती ने एकदम कुएं में घड़ा डाला और शीघ्रता से कमर लचकाते पानी खींच लिया। युवक को बिना देखे ही हाथों से घड़ा उसकी ओर झुका दिया।
घड़ा युवती के हाथों से लेता युवक बोला, 'इब तेरी कम्मर कैसे नवे से? कामणी, इब तेरा घड़ा कैसे भरे से नीर?'
दोनों की हंसी से पनघट गूंज उठा।
लेखक- उर्मि कृष्ण, अम्बाला, हरियाणा
बहुत अच्छी चुटीली नोक झोंक
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