2021 से पहले भी कई मौक़ों पर भारतीय महिला खिलाड़ियों ने भारत का मान बढ़ाया है।
टोक्यो ओलिम्पिक 2020 (जी हाँ भले ही खेलों का आयोजन 2021 में हो रहा है लेकिन आधिकारिक तौर पर इसे टोक्यो ओलिंपिक 2020 के रूप में ही जाना जाएगा।) में भारत की महिला खिलाड़ियों ने एक बार फिर से अपने देश का मान बढ़ाया है। ऐसे समय जबकि भारत के पुरुष खिलाड़ी आशानुरूप प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं तो वहीं महिला खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन से न केवल भारत की लाज रखी बल्कि लोगों के दिल भी जीत लिए। हालाँकि ये चमत्कार कोई पहली बार नहीं हुआ है। पहले भी ऐसे मौके आए हैं जब महिला खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन के दम पर देश का नाम रोशन किया है।
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साइखोम मीराबाई चानू के इंस्टा से स्क्रीनशॉट |
जब सायना नेहवाल ने भारत को पहुंचाया नंबर दो पर
सन 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन भारत की राजधानी नई दिल्ली में हुआ था। खेलों के अंतिम दौर में भारत तीसरे स्थान पर था। ऑस्ट्रेलिया सबसे अधिक स्वर्ण (70 से ज्यादा) पदक जीतकर पहले स्थान पर था। 37 स्वर्ण पदकों के साथ इंग्लैंड दूसरे और इतने ही स्वर्ण पदकों सहित कुल 99 पदकों के साथ भारत तीसरे स्थान पर था। भारत के रजत और कांस्य पदकों की संख्या इंग्लैंड के रजत और कांस्य पदकों की संख्या से कम थी इसलिए स्वर्ण पदकों की संख्या बराबर होने के बावजूद भी भारत तीसरे स्थान पर था। पदक तालिका में भारत पहले नंबर पर नहीं आ सकता था। इसलिए भारतीय खेल प्रेमी दिल ही दिल प्रार्थना कर रहे थे कि भारत पहले स्थान पर न सही कम से कम दूसरे स्थान पर तो आ जाए! पदक तालिका में भारत के दूसरे नंबर पर आने का सारा दारोमदार सायना नेहवाल और भारत की हॉकी टीम पर टिका था क्योंकि बैडमिंटन (महिला वर्ग) के एकल मुकाबले का फायनल और पुरुष हॉका का फायनल मैच अभी बाकी थे। खेल के आख़िरी दिन भारत की हॉकी टीम को रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा। लेकिन 20 वर्षीय सायना नेहवाल ने करोड़ों भारतीयों का सीना उस वक्त गर्व चौड़ा कर दिया जब उन्होंने बैडमिंटन के एकल मुकाबले में स्वर्ण पदक जीत कर भारत को पदक तालिका में दूसरे स्थान पर पहुँचा दिया। इन खेलों में 74 स्वर्ण, 55 रजत और 48 कांस्य सहित कुल 177 पदकों के साथ ऑस्ट्रेलिया पदक तालिका में पहले स्थान पर रहा। ऑस्ट्रेलिया के लिए सबसे ज्यादा पदक उसकी महिला खिलाड़ियों ने जीते थे। 38 स्वर्ण, 27 रजत और 36 कांस्य सहित कुल 101 पदकों के साथ भारत दूसरे स्थान पर रहा। राष्ट्रमंडल खेलों के दिग्गज इंग्लैंड को 37 स्वर्ण, 59 रजत और 46 कांस्य पदकों सहित कुल 122 पदक जीतकर तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा जबकि प्रतियोगिता की शुरूआत में कल्पना करना भी मुश्किल था कि भारत इंग्लैंड को पछाड़ पाएगा। लेकिन ऐसा हुआ और भारतीय खेलों के इतिहास में 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय खिलाड़ियों का प्रर्दशन सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया।
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सायना नेहवाल के इंस्टा से लिया गया स्क्रीन शॉट |
जब कर्णम मलेश्वरी ने जीता था कांस्य पदक
2000 के ओलिंपिक खेलों का आयोजन ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में हुआ था। पूरे देश की निगाहें भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर थी। हालाँकि भारतीय खेल प्रशंसकों को बहुत सारे पदकों की उम्मीदें तो नहीं थी लेकिन चाहते थे कि कोई न कोई भारतीय खिलाड़ी पदक जरूर जीतें! जितने भी बड़े -बड़े नाम थे एक के बाद एक निराश कर रहे थे। हालाँकि भारतीयों की उम्मीदों पर एक खिलाड़ी खरी उतरीं। उनका नाम था कर्णम मलेश्वरी। भारतीय भारोत्तलक कर्णम मलेश्वरी ने भारोत्तन में कांस्य पदक जीतकर भारत का नाम पदक तालिका में जुड़वाया था। ओलिंपिक पदक जीतने वाली वो पहली भारतीय महिला बनीं और पहली महिला वेटलिफ्टर भी बनीं। बाद में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कर्णम मल्लेश्वरी को बुलाकर उनसे मुलाक़ात की और उन्हें "भारत की बेटी" कहा। उनकी ऐसी उपलब्धियों के लिए भारत की जनता ने उनका नाम "द आयरन लेडी" रख दिया था।
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कर्णम मलेश्वरी के ट्वीट का स्क्रीन शॉट |
टोक्यो ओलिम्पिक में मीराबाई चानू, पीवी सिंधु और लवलीना का ऐतिहासिक प्रदर्शन
टोक्यो ओलिम्पिक 2020 शुरु होने से पहले बैडमिंटन, मुक्केबाजी, कुश्ती, भारोत्तोलन(वेट लिफ्टिंग), हॉकी, एथलेटिक्स, गोल्फ़, तीरंदाजी, नौकायन जैसे खेलों में भारत को पदक मिलने की पूरी संभावना थी। लेकिन ओलिंपिक के 7 वें दिन तक भी केवल एक ही पदक था। 8वें दिन शुक्रवार को भारत की एक और महिला खिलाड़ी लवलीन बोरगोहेन मुक्केबाजी के सेमीफायनल मे पहुँचकर भारत के लिए एक पदक भी पक्का कर दिया। लवलीना का कांस्य पदक पक्का है। लेकिन सिल्वर और गोल्ड की भी जीत सकती हैं। भारतीय मुक्केबाज बिजेंद्र और मैरी कॉम के बाद बॉक्सिंग में ओलिम्पिक पदक जीतने वाली वो तीसरी भारतीय होंगी। ओलिंपिक खेलों के 10 वें दिन बैडमिंटन के महिला एकल मुकाबले में भारत की पी.वी. सिंधु ने ब्रॉन्ज मेडल जीता है। सिंधु, दो ओलिंपिक मेडल जीतने वाली पहली महिला एथलीट बन चुकी हैं। उन्होंने रियो ओलिंपिक में भी सिल्वर मेडल जीता था।भारत की झोली में अब तक दो मेडल आ चुके हैं। भारत को पहला पदक ओलिंपिक के पहले ही दिन मिल गया था जब मणिपुर की मीराबाई चानू ने वेट लिफ्टिंग में सिल्वर पदक जीता था और पदक तालिका में न केवल भारत का नाम जुड़ा बल्कि करोड़ों भारतीयों के चेहरे खुशी से चमक उठे थे।
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दो ओलिंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी |
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लवलीना बोरगोहन(DD koo Screenshot)
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इनके माता-पिता को भी जाता है श्रेय
जिस देश में महिलाओं की क्षमताओं पर कदम कदम पर सवाल उठाए जाते हों, पूरा का पूरा समाज ल़डकियों के मामले में पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो। शादी के बाद अधिकतर महिलाओं को घर संभालने के लायक ही समझा जाता हो। दहेज जैसी सामाजिक कुरीति और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिये कानून का सहारा लेना पढ़े उस देश की लड़कियां अगर इस तरह देश का नाम रोशन कर रही हैं तो यह हरगिज कोई मामूली बात नहीं है। ल़डकियों के प्रति भारतीय समाज की मानसिकता के बारे जितना कहा जाए उतना कम है। हम सब जानते हैं कि लड़कियों को लड़कों से कम समझने की दोयम दर्जे की सोच ने भारतीय समाज को कितनी जोर से जकड़ रखा है। ये जकड़ ढीली जरूर पड़ रही है लेकिन पूरी तरह से गई नहीं है।
कहते हैं न कि जैसे पाँचों उँगलिया बराबर नहीं होती। वैसे ही कुछ माँ-बाप ऐसे होते हैं जो न केवल बेटियों को जन्म देते बल्कि उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए जो कुछ भी बन पड़ता है वो करते हैं। इन महिला खिलाड़ियों के माँ-बाप भी ऐसे ही हैं जिन्होंने अपनी बेटियों को जीवन में आगे बढ़ने कीआज़ादी दी। उन पर अपनी उम्मीदों का बोझ नहीं डाला। उल्टे उनके सपनों को पूरा करने में हर संभव मदद की। मुझे याद है कि कैसे सायना नेहवाल के पिता जी हर टूर्नामंट में अपनी बेटी के साथ होते थे। बिना माँ-बाप के सपोर्ट और त्याग के इन खिलाड़ियों की राह इतनी आसान नहीं होती। इस बात को कम से कम हम भारतीय तो अच्छी तरह से समझ सकते हैं।
2010 राष्ट्रमंडल खेलों के समाप्त होने के बाद अपनी एक ब्लॉगपोस्ट( पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान उस वक्त मैंने ब्लॉग लिखना शुरू ही किया था) में लिखा था: -
एक महत्वपूर्ण तथ्य पर मैं कुछ कहना चाहता हूँ । बात कुछ इस तरह से है कि इन खेलों में पहले स्थान पर रहने वाले ऑस्ट्रेलिया के लिए सबसे ज़्यादा पदक ऑस्ट्रेलिया की महिला खिलाड़ियों ने जीते हैं । चाहे वो सोने-चाँदी के पदक हों या कांस्य पदक. तीनो ही वर्गों में महिलाओं ने बाज़ी मारी है। जिसका मुख्य कारण ऑस्ट्रेलिया में महिला और पुरुषों के बीच किसी भी स्तर पर कोई भी भेदभाव का न पाया जाना है। पदकों के मामले में ऑस्ट्रेलियन महिलाएँ वहाँ के पुरुषों पर भारी पड़ी हैं। वहीं भारत के लिए महिला खिलाड़ियों ने भले ही पुरुष खिलाड़ियों से कम पदक जीते हों लेकिन पदक तालिका में भारत को दूसरे स्थान पर लाने का श्रेय महिला खिलाड़ियों को ही जाता है। ये बात जग जाहिर है। अगर भारत में भी सभी माता-पिता अपने बच्चों के साथ लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न करें...ख़ासकर उनकी परवरिश में, और हर क्षेत्र में दोनों को बराबर का मौक़ा दें तो वो दिन दूर नहीं जब भारतीय महिलाएँ भी जीवन के हर क्षेत्र में भारतीय पुरुषों को बराबर की टक्कर देंगी। उम्मीद है वो दिन ज़ल्द ही आएगा। October 27, 2010. मैंने इस संदर्भ मे एक पोस्ट लिखी थी। वक्त और इच्छा हो तो
पूरी पोस्ट को आप यहां देख-पढ़ सकते हैं- पापा.... मैं भैया से कम नहीं!
आज आप देख सकते हैं कि भारतीय महिलाएँ पुरुषों को टक्कर ही नहीं दे रही हैं बल्कि उनसे आगे निकल जा रही हैं और एक नया इतिहास रच रही हैं। एक ऐसा इतिहास जिसे आने वाली पीढ़ियाँ गर्व से सुनेंगी भी और सुनाएँगी भी। जय हिंद।
समय और इच्छा हो तो ये भी पढ़ सकते हैं!
-वीरेंद्र सिंह
वीरेंद्र भाई,आज महिलाएं पुरुषों को टक्कर ही नहीं दे रहीं बल्कि उनसे आगे निकल रही हैं। महिलाएं और भी आगे जा सकती है। सिर्फ जरूरत है उन्हें थोड़ी सी आजादी और थोड़ा सा प्रोत्साहन देने की।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी पोस्ट है आपकी वीरेंद्र जी। आपने जो कहा, वह तथ्यपरक भी है एवं प्रेरणास्पद भी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और यथार्थ से परिपूर्ण सृजन वीरेन्द्र जी ! ओलम्पिक में महिलाओं का योगदान अभूतपूर्व है । शेष प्रतियोगिताओं में हमारे खिलाड़ी देश का नाम रोशन करें यही उम्मीद है ।
ReplyDeleteवीरेन्द्र भाई आपके इस समसामयिक आलेख से महिला खिलाड़ियों के साथ साथ अन्य खिलाड़ियों तथा देश के तमाम नागरिकों को जानकारी तथा सम्बल मिलेगा।
ReplyDeleteविरेन्द्र भाई आज महिलाएं हर छेत्र में अपना नाम रोशन कर रही है ।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर लेख
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणास्पद सामयिक लेख...सही कहा भारतीय महिलाएं पुरुषों से आगे निकल रही हैं।
ReplyDeleteसुन्दर आलेख ... नारी शक्ति सदैव परिचय देती है अपने होने का ...
ReplyDeleteसभी खिलाड़ियों को बधाई ...
बहुत ही सुंदर सराहनीय आलेख ऐसे आलेख बहुत कम पढ़ने को मिलते हैं।
ReplyDeleteभारतीय खिलाड़ियों के जज़्बे को नमन।
बधाई आपको पढ़वाने हेतु।
सादर
बहुत बढ़िया लेख।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख , विस्तृत विवरण और जानकारी के साथ।
ReplyDeleteसुंदर।
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