28 जून 2015 को 'मन की बात' कार्यक्रम के जरिए पीएम मोदी ने लोगों से
अपील की थी कि वो अपनी बेटियों के साथ सेल्फी लें और शेयर करें। पीएम मोदी ने ये अपील हरियाणा के एक गांव की पंचायत के ‘सेल्फी विद डॉटर’ अभियान से प्रेरित होकर की थी। हमारे समाज
में कुछ लोग आज भी बेटियों के साथ भेदभाव करते हैं। भेदभाव कितने बड़े स्तर पर
होता है इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि देश के कई राज्यों में लड़कों के
मुकाबले लड़कियों की संख्या बेहद कम है जिसके चलते सामाजिक तानाबाना बिगड़ने की
आशंका होने लगी है। इसकी एक बहुत बड़ी वजह ये है कि बेटे की चाह में, बेटी को जन्म
लेने से पहले कोख में ही मार दिया जाता है अर्थात कन्या भ्रूण हत्या जैसा अमानवीय
अपराध किया जाता है। चिंता इस बात की है कि अगर इसी तरह कोख में कन्याओं की हत्या
होती रही तो वो दिन दूर नहीं जब शादी के लिए दुल्हनें ढूंढने से भी नहीं मिलेगी? इसलिए बड़ा सवाल ये है कि कन्या भ्रण
हत्या जैसी अमानवीय कुरीति को कैसे समाप्त किया जाए? जबकि क़ानून बन जाने के बाद भी स्तिथि में कोई ख़ास सुधार
नहीं आया है।
इससे
इंकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान सरकार लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव और
कन्या भ्रूण हत्या को रोकने को लेकर बेहद गंभीर है। सरकार ने लड़कियों को आगे
बढ़ने में मदद करने और उनके उज्जवल भविष्य के लिए कई कार्यक्रमों की शुरूआत की है। लेकिन केवल सरकार
के गंभीर होने से बात नहीं बनेगी। हर जागरुक नागरिक को आगे आना होगा। लड़कियों के
प्रति भेदभाव करने वाले लोगों की मानसिकता बदलने के प्रयास करने होंगे। जाहिर है
कि रातोंरात ये संभव नहीं है इसलिए लगातार प्रयास जरूरी है। इसे समझते हुए हरियाणा
के बीबीपुर गांव की पंचायत ने सेल्फी विद डॉटर प्रतियोगिता
शुरु की है ।
गांव के सरपंच सुनील जगलन के मुताबिक प्रतियोगिता का उद्देश्य लड़कियों के महत्व
को बताना है। करना ये है कि बेटी के साथ अपनी सेल्फी लेकर व्हाट्सअप से सरपंच
सुनील जगलन के पास भेजना है। सबसे अच्छी सेल्फी को कैश प्राइज और ट्राफी दी जाएगी।
‘मन की
बात’
कार्यक्रम में पीएम मोदी ने भी सुनील जगलन की तारीफ करते हुए लोगों से अपील की थी कि वो ‘सेल्फी विद डॉटर’ लें और शेयर करें। कई हस्तियों ने पीएम की
अपील का महत्व समझते हुए सेल्फी विद डॉटर शेयर करनी शुरु कर दी हैं। सचिन तेंदुलकर
भी इनमें शामिल हैं।
हालांकि कुछ लोगों ने ये कहते हुए सेल्फी
विद डॉटर पर ऐतराज जताया कि बदलाव सुधारों से आता है सेल्फी विद डॉटर से नहीं। हालांकि
अपना मानना है कि 'सेल्फी बिद डॉटर' से बदलाव भले ही न आए लेकिन ऐसी छोटी-2 पहल में नुकसान भी तो कुछ नहीं है। ऐतराज करने वाले चाहे तो सेल्फी न ले। कोई
जबरदस्ती तो है नहीं। लेकिन क्या ये सच नहीं है लड़कियों के साथ भेदभाव, कन्या
भ्रूण हत्या सामाजिक समस्या है और सामाजिक समस्या को दूर करने सेल्फी विद डॉटर
जैसी पहल कहीं से अनुचित नहीं है। दूसरी बात हर सुधार के लिए हम हमेशा सरकार की
तरफ ही क्यों देखते हैं? क्या सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए
समाज में रहने वाले हर जागरुक इंसान की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? सेल्फी विद डॉटर की आलोचना करने से पहले
अपने अंदर झांककर देखिए कि हमने इस समाज में व्याप्त किसी बुराई को दूर करने के
लिए अपनी तरफ से क्या प्रयास किया? अगर नहीं किया है तो दूसरे जो प्रयास कर रहे हैं उनकी नृशंस आलोचना करने से
पहले थोड़ी हिचक जरूर दिखाएं!
विरोध करने वाले सिर्फ विरोध के लिए विरोध कर रहे हैं ... उनके खून में बस आलोचना ही है ...
ReplyDeleteऐसे लोग खुद कुछ नहीं करते किसी के लिए भी बस बाएँ बनाते हैं ...
Sahmat Hun...
Deleteविरोध करने वाले सिर्फ विरोध के लिए विरोध कर रहे हैं ...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपका कहना दुरुस्त है कि 'सेल्फी बिद डॉटर' से बदलाव भले ही न आए लेकिन ऐसी छोटी-छोटी पहल में नुकसान भी तो कुछ नहीं है।'
ReplyDelete..बिडम्बना यह है विरोध करने वाले विरोध दिल खोल कर कर लेते हैं लेकिन अगर उन्हें उसके बदले क्या अच्छा करना चाहिए करने को कहोगे तो, कोई जवाब नहीं होता! ..सार्थक चिंतनशील लेख..
वीरेंद्र भाई मौज़ू मुद्दा उठाया है आपने। हर पहल एक प्रतीक होती है। मोदी जी ने एक प्रतीक उठाया है कांग्रेस बुद्धि के लोगों को ये बात समझ नहीं आएगी।
ReplyDeleteलड़के अक्सर अपनी बीवियों से संचालित रहते हैं। ऐसे हैन -पैक हस्बेंड सिर्फ हस्बेंड बनके रह जाते है हर मास्टर्स वॉइस में। जब तक लड़कों के गिर्द खड़ा ये मिथक नहीं टूटेगा कि पितृ ऋण से बेटा ही मुक्ति दिलवाता है यहां कुछ बदलाव मुश्किल से ही हो पायेगा।
आधी आबादी की उपेक्षा करने वाला समाज बड़ा बदनसीब समाज होता है। बढ़िया संतुलित पोस्ट लिखी है आपने मर्यादित रहते।
वीरेंद्र भाई मौज़ू मुद्दा उठाया है आपने। हर पहल एक प्रतीक होती है। मोदी जी ने एक प्रतीक उठाया है कांग्रेस बुद्धि के लोगों को ये बात समझ नहीं आएगी।
ReplyDeleteलड़के अक्सर अपनी बीवियों से संचालित रहते हैं। ऐसे हैन -पैक हस्बेंड सिर्फ हस्बेंड बनके रह जाते है हर मास्टर्स वॉइस में। जब तक लड़कों के गिर्द खड़ा ये मिथक नहीं टूटेगा कि पितृ ऋण से बेटा ही मुक्ति दिलवाता है यहां कुछ बदलाव मुश्किल से ही हो पायेगा।
आधी आबादी की उपेक्षा करने वाला समाज बड़ा बदनसीब समाज होता है। बढ़िया संतुलित पोस्ट लिखी है आपने मर्यादित रहते।
बेटियों के प्रति समाज की सोच बदलने के लिए जो भी कदम उठाया जाय वह प्रशंशनीय है...बहुत सारगर्भित आलेख
ReplyDeleteयह सवाल बड़ा हैं लेकिन यह पहल कितनी आगे जाएँगी और इसके परिणाम क्या होंगे यह वक्त तय करेगा।
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
सभ्य और शालीन प्रतिक्रियाओं का हमेशा स्वागत है। आलोचना करने का आपका अधिकार भी यहाँ सुरक्षित है। आपकी सलाह पर भी विचार किया जाएगा। इस वेबसाइट पर आपको क्या अच्छा या बुरा लगा और क्या पढ़ना चाहते हैं बता सकते हैं। इस वेबसाइट को और बेहतर बनाने के लिए बेहिचक अपने सुझाव दे सकते हैं। आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आपको अग्रिम धन्यवाद और शुभकामनाएँ।