सांकेतिक चित्र |
पुराने जमाने के लोग भी क्या लोग थे? एकदम मस्त! एक तरह से फुरसतिया टाइप के थे। लेकिन मजाल है कि जरूरी काम में देरी हो जाए! शादी की उम्र 21-22 साल है। ये पट्ठे उससे भी पहले कर लेते थे। बच्चे भी समय पर और बच्चों की शादियाँ और उनके बच्चे भी समय पर इसलिए इनके पास फुरसत ही फुरसत होती थी। शोले फिल्म के ठाकुर साहब कहते थे कि शादी जल्द हो गई थी। इस वजह से बच्चे भी जल्दी हो गए। बच्चों की शादी भी जल्दी हो गई तो पोती-पोते भी जल्द हो गए। रियल लाइफ में भी यही होता था पुराने जमाने में। अपने- पोते-पोतियों को खिलाते अधेड़ उम्र के लोगों की प्रजाति आने वाले टाइम में शायद ही देखने को मिले! शादियाँ ही इतनी देर से होती हैं कि कुछ के तो अपने ही बच्चे न हो पाते! अगर बच्चे हो भी गए तो बच्चों के बच्चे यानी पोते-पोतियों का मुँह देखने तक बात पहुँचने की उपलब्धि किसी ओलंपिक पदक जीतने से कम नहीं होगी!
अब तो छोरे-छोरियाँ के सारे बाल जब तक बर्फ की तरह सफेद न हो जायें तब तक तो उनके मन में शादी का ख्याल तक न आता! माँ-बाप अपने विवाह योग्य संतानों से शादी के लिए ऐसे मिन्नते करते हैं जैसे कोई बहुत बड़ा अपराध कर रहे हों! 35 से पहले माँ-बाप अगर अपनी संतानों के सामने शादी का जिक्र कर दें तो कहते हैं कि अभी तो मुझे बहुत कुछ करना है! शादी के लिए ऐसी भी क्या जल्दी है? उनकी यह मासूमियत माँ-बाप के अरमानों के साथ उनकी स्वयं की संभावनाओं का दम ऐसी ही निकाल देती है जैसे राहुल गाँधी ने अपना और कांग्रेस के अरमानों का निकाल रखा है! 4 बजे सोने, दिन में 2 बजे उठने और लंच के वक्त ब्रेकफस्ट करने वाली आज की पीढ़ी 'चिंता काहे की जब जीना है बरसों' की बीन पर नागिन डांस कर रही है! 'का बरखा जब कृषि सुखानी' मुहावरे की ऐसी अनदेखी इतिहास में पहले कभी नहीं हुई!
और यही नहीं! अभी तो रुकिए! विवाह नामक संस्कार की तबीयत की पूरी जाँच होना अभी बाकी है!पहले शादी-ब्याह टेस्ट मैच की तरह होता था जो लंबा चलता था। फुल मौज-मस्ती के साथ सारे संस्कारों को पूरा किया जाता था! उन्हें पाला-पोसा जाता था! इससे इन संस्कारों की उम्र बढ़ती थी! दशरथ जी जब बारात लेकर जनक जी के यहाँ गए तो कईं दिनों तक जनक जी के यहाँ ठहरे! 60-70 साल पहले हमारे यहाँ भी जब लड़का बारात लेकर जाता था तो तीन दिन से पहले नहीं आता था। आजकल तो विवाह को वनडे मैच की तरह एक दिन में निपटा दिया जाता। आने वाले टाइम में टी-20 की तर्ज पर सब काम होगा! और कुछ तो आज भी विवाह के लिए 20 मिनट भी निकालने को तैयार नहीं। 'बिन फेरे हम तेरे' का चलन अपने बचपन को छोड़कर जवानी की तरफ बढ़ रहा है! विवाह संस्कार की सेहत के लिए यह चलन ऐसे ही नुकसानदायक है जैसे भारत की सुख-समृद्धि के लिए पाकिस्तान है! इसलिए मैं इस चलन को सौ-सौ लानतें भेजता हूँ! इस चलन को पीपल के पेड़ से बाँध कर इसकी नंगी पीठ पर सुबह-शाम कोड़े बरसाने की सिफारिश करता हूँ! साथ ही विवाह संस्कार को उसका पुराना रुतबा, सम्मान और महत्व देने का पुरज़ोर समर्थन करता हूँ! जय हिंद!
-वीरेंद्र सिंह
आपकी लिखी रचना सोमवार 25 जुलाई 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
आदरणीय संगीता स्वरूप जी आपका बहुत-बहुत आभार।सादर धन्यवाद।
Deleteवीरेंद्र भाई, मैं आपकी बात से पूरी तरह अहमत हु कि आजकल के युवा 'चिंता काहे की जब जीना है बरसों' की बीन पर नागिन डांस कर रही है!
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार।सादर धन्यवाद।
Deleteसुविधा भोगी पीढ़ी तैयार है,पर सर सभी को एक वर्ग में रखना सही नहीं होगा न.. वर्गीकृत कर सकते हैं शायद आपने जिस वर्ग का जीवंत विश्लेषण किया है इनका भविष्य भी राम राखा।
ReplyDeleteसादर।
जी..यह सभी पर लागू नहीं होता।ब्लॉग पर आने और बहुमूल्य विचार रखने के लिए आपका बहुत-बहुत-बहुत आभार।
Deleteबहुत सटीक खाका खींचा आपने आजकल की विवाह प्रणाली का ...।
ReplyDeleteआजकल विवाह रह ही कहां गए हैं ... सब कुछ जैसे गुम हो रहा है।
ReplyDeleteजी..कभी-कभी ऐसी फीलिंग भी आती है। अब पहले जैसी बात रह ही नहीं गई। ब्लॉग परआने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। सादर।
Deleteआजकल टी 20 की दूसरी पारी भी होती है एक में शादी दूसरे में तलाक
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट 🙏
ब्लॉग पर आपका स्वागत है आदरणीय रचना जी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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