सांकेतिक चित्र |
नेताओं के बारे में कोई कुछ भी कहे लेकिन सत्ता पाने के लिए उनके चले कुछ तीर इतने अचूक होते हैं कि विरोधी नेता शिकार होने के अलावा कुछ नहीं कर सकता! सत्ता के लिए नेताओं को ऐसे तीर चलाने ही पड़ते हैं! बिना सत्ता के एक नेता की हैसियत कागजी शेर से ज्यादा नहीं होती! आम आदमी अपना काम कराने के लिए अगर किसी को पैसा या उपहार दे तो उसे रिश्वत कहा जाता है जो एक अपराध है! वहीं नेता लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए जब जनता को पैसा, उपहार या मुफ्त सुविधाएँ देने का वादा करते हैं तो उसे 'मुफ्त की रेवड़ियां' कहा जाता है।और यह अपराध भी नहीं है बल्कि इसे एक पैंतरा या एक चाल या तीर कहा जाता है! 'फ्री की रेवड़ियां' वाले तीर से विरोधियों के अरमानों पर गंदा पानी फेरने के बाद फ्री के रसगुल्ले, रसमलाई, राजभोग, लड्डू वगैरा वगैरा खाने का जो सुख और पद का रसूख मिलता है वो कमाल का है! इस तरह के सुख और रसूख को हासिल के करने का प्रयास किया जाना चाहिए। और अपने जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए जाने चाहिए।
अब सवाल उठता है कि क्या एक लेखक भी कुछ ऐसा ही तीर चल सकता है क्या? बोले तो जैसे नेता मतदाताओं को रिझाते हैं वैसे ही तरीके से क्या कोई लेखक भी पाठकों को रिझा सकते हैं क्या? आख़िरकार कम पाठकों वाले लेखक की हालत भी कुछ-कुछ नेता जैसी ही होती है। जिस नेता के समर्थक न हो वो बिना जहर वाले साँप की तरह होता है जो फुफकार तो सकता है लेकिन किसी का कुछ बिगाड़ नहीं सकता! वहीं जिस लेखक के पाठक नहीं होते उसकी हालत उस दुकनदार की तरह होती जो अपनी दुकान में घटिया सामान रखने से बाज नहीं आता इसलिए कोई उसकी दुकान पर नहीं आता! तो आज की चर्चा का विषय यह है कि नेताओं के 'फ्री की रेवड़ियाँ' बाँटने वाले तीर जैसा ही कुछ क्या एक लेखक भी कर सकता है? माने कोई लेखक भी फ्री की रेवड़िया बाँटने जैसा कुछ करे तो उस लेखक का भी कल्याण हो सकता है क्या? बात आगे बढ़ें इससे पहले ही स्पष्ट हो जाना चाहिए कि लेखक को बढ़िया लिखना चाहिए जैसे फालतू के सुझाव आजकल किसी को पसंद नहीं आते इसलिए इस तरह के बेहूदा और बासी सुझावों पर विचार करना अव्यावहारिक भी है और आउटडेटेड भी।
तो पहले चर्चा करते हैं कि लेखक द्वारा यह तीर या पैंतरा चला कैसा जाएगा? लेखक महोदय कुछ ऐसा कर सकते हैं! मसलन घोषणा की जा सकती है कि जो पाठक भी मेरे लिखा पढ़ेंगे और अपने दोस्तों-रिश्तेदारों के साथ मेरी कविताएँ वगैरा शेयर करेंगे उन पाठको का नाम एक लकी ड्रा में शामिल किया जाएगा। लकी ड्रॉ के माध्यम से चुने गए चुनिंदा पाठकों को अच्छे से होटल में मेरे साथ लंच करने का मौक़ा मिलेगा। कुछ पाठकों को उनके मनपसंद ओटीटी प्लेटफॉर्म का सब्सक्रिप्शन तब तक मुफ़्त मिलेगा जब तक वे मेरे पाठक बने रहेंगे! ऑनलाइन पोल कराया जा सकता है! टॉप के लेखकों के नाम के साथ अपना नाम डालकर पाठकों से पूछा जाए कि आपकी नज़र में नंबर वन का लेखक कौन है? पोल के साथ विशेष टिप्पणी के माध्यम से सूचना दी जा सकती है कि अगर मैं नंबर वन का लेखक घोषित हुआ तो मुझे वोट करने वाला हर पाठक मेरी तरफ से विशेष इनाम का हकदार होगा। अगर तीर निशाने पर लगा तो ऑनलाइन पोल में नंबर -1 लेखक आप ही घोषित होंगे। विशेष इनाम देने के चक्कर में बिल्कुल न पड़े। इलेक्शन जीतने के बाद जैसे नेता जी अपने तीर के बारे में भूल जाते हैं वैसा ही कुछ लेखक महोदय भी कर सकते हैं! ऐसा करने से आपकी चर्चा होगी। लोग आपके बारे में जानने को उत्सुक होंगे। आपका काम बन जाएगा। आप और भी दूसरे तरह के तीर चल सकते हैं! यह आपकी कल्पनाशक्ति पर निर्भर करता है!
अब बात करते हैं कि लेखक का कल्याण कैसे हो सकता है? कल्पना के घोड़े दोड़ाने पर मनमाफिक तस्वीर उभरती है! अगर एक लेखक नेता की तरह तमीज के साथ अपना पैंतरा या तीर चल दे तो उसके वारे-न्यारे हो जाएंगे! मसलन वो अपने आपको सबसे लोकप्रिय लेखक साबित कर सकता है! हर तरह के मीडिया में बाकी लेखकों को छोड़कर वही छा सकता है! या कम से कम वो न्यूज़ चैनलों में होने वाली प्राइम टाइम की डिबेट का हिस्सा तो हो ही सकता है! अपने से हर तरह से बेहतर लेखकों को कूड़ा साबित करा सकता है! बड़े लेखकों को पुरस्कार लेने के लिए सम्मान समारोह में जाना पड़ता है। लेकिन नेताओं वाले पैंतरे चलकर आगे बड़ रहा लेखक सम्मान समारोह को अपने घर बुलाकर उसे मिलने वाले पुरस्कार को सरसरी तौर से देखने मात्र से ही यह घोषणा करा सकता है कि उसने फलाँ पुरस्कार पर नज़र डाल दी है! अब इस पुरस्कार का महत्व पहले से सौ गुना ज्यादा हो गया है! हालाँकि मैं इस पुरस्कार के लायक़ हूँ लेकिन यह पुरस्कार मेरे लायक बिल्कुल भी नहीं है। लिहाजा इसे यहाँ से ले जाया जाए और पूरी दुनिया से ऐसे टॉप के लेखकों की तलाश की जाए जिन्हें यह पुरस्कार दिया जा सके। ऐसा करके दुनिया भर में उस लेखक की चर्चा होगी! न्यूज चैनलों की ओवी वैन दिन-रात उसके घर के बाहर लोगों को उसकी तरोताजा तस्वीर दिखाने के लिए तैनात होगी। दुनिया के बाकी लेखकों के बारे में उसकी एक बाइट के लिए रिपोर्टर उसके पीछे-पीछे भागेंगे। विभिन्न सियासी दलों के नेता अपनी पार्टी की विचारधारा के पक्ष में उसका एक बयान दिलाने के लिए आतुर होंगे! पीएम-सीएम उससे एक मुलाकात के लिए उसके एजेंटों से बात करने के लिए अपने अफसरों को दौड़ाया करेंगे!
कुलमिलाकर निष्कर्ष यह निकलता है कि नेताओं की तरह के पैंतरे आजमाने या तीर छोड़ने में लेखक बंधुओं को शर्म नहीं करनी चाहिए! बल्कि नेताओं से बेहतर पैंतरे चलने चाहिए! तभी जाकर पाठकों के अकाल को खत्म किया जा सकता है!
विशेष: आदरणीय और सम्मानित ब्लॉग पाठकों यह व्यंग्य लिखने का प्रयास मात्र है! ऐसे लेखन में हक़ीक़त के ज्यादा रंग नहीं होते। इसे बिल्कुल भी गंभीरता से न लें। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार। -वीरेंद्र सिंह
आज लेखकों पर क्यों तीर चल रहे हैं ? अच्छा बुरा लेखन तो पता नहीं बस जो मन में भाव होता है लिख देते हैं । मुफ्त की रेवड़ियाँ भला कब रिश्वत हुईं , लेकिन होनी चाहिए
ReplyDeleteकरारा व्यंग्य ।
जी..लेखकों पर नहीं बल्कि लेखकों को तीर चलाने मतलब पाठकों को आकर्षित करने की अलग-अलग तरकीब निकालने जैसे विचार पर व्यंग्य करने का प्रयास किया गया है। यह मेरे जैसे ब्लॉगरों के लिए सौभाग्य की बात है कि हमें आप का लिखा पढ़ने को मिलता है! अगर कोई सीखना चाहे तो वो आप का लिखा पढ़कर बहुत कुछ सीख भी सकता है। अच्छी बात यह है लोग सीखते भी हैं।
Deleteपरम आदरणीय संगीता स्वरूप जी.. अपनी ब्लॉग पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया देखकर जो संतुष्टि मिलती है उसे शब्द देना बहुत मुश्किल है। आपका हृदय से कोटि-कोटि आभार।
Deleteसभ्य और शालीन प्रतिक्रियाओं का हमेशा स्वागत है। आलोचना करने का आपका अधिकार भी यहाँ सुरक्षित है। आपकी सलाह पर भी विचार किया जाएगा। इस वेबसाइट पर आपको क्या अच्छा या बुरा लगा और क्या पढ़ना चाहते हैं बता सकते हैं। इस वेबसाइट को और बेहतर बनाने के लिए बेहिचक अपने सुझाव दे सकते हैं। आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आपको अग्रिम धन्यवाद और शुभकामनाएँ।