कलाओं में कला, ढोंग कला
विधाता ने इंसान पर बहुत सी ऐसी कलाओं की भी बारिश की है जिनका प्रदर्शन नैतिक रूप से सही नहीं माना जाता। जैसे झूठ बोलने की कला! चोरी करने या चुगली करने की कला, जिसका खाओ उसी का बैंड बजाने की कला। ऐसी और भी बहुत सी कलाएँ हैं। ये सभी कलाएँ बड़े काम की हैं। ऐसी ही एक कला है.. 'ढोंग कला' मतलब ढोंग करना (नाट्य कला मेरी नज़र सम्मानित कला है)'! ऊपर जिन कलाओं की चर्चा की गई है यह उनकी ही रिश्तेदार है। यह बड़ी अद्भुत कला है! व्यवहारिक जीवन में इसका प्रयोग भाँति-भाँति से किया जा सकता है। स्थिति चाहे जैसी हो आप इसे काम पर लगा सकते हैं। इस कला का फायदा अगर कायदे से उठा लिया तो बंदे को जीवन भर कुछ और करने का कष्ट नहीं उठाना पड़ेगा। हर स्थिति में इस कला का लाभ लिया जा सकता है।
कोई काम बिगड़ जाए तो इस कला की मदद से वह काम फिर से बन सकता है। हाँ.. पूरी तरह बनेगा या नहीं ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितने बड़े कलाकार हैं। देखिए कला में माहिर होना बहुत ज़रूरी है। तभी पूरा फायदा मिलता है। अगर कोई जेबकतरा जेब काटने में सफ़ाई न बरते तो जेब तो हाथ से जाएगी ही, साथ में कुटाई भी हो जायेगी। लेकिन ...लेकिन..ये 'लेकिन' बहुत कमाल की चीज़ है! अगर किसी बंदे को जेब कतरना निहायत ही ज़रूरी हो तो क्या करे? इसका उपाय ये है कि जेब काटने की कला को तो बाद में धार दे पहले ढोंग कला को उभार ले। फिर देखिए तस्वीर बदलती है या नहीं! किसी की जेब पर हाथ साफ़ करते वक्त अगर जेबकतरे का हाथ जेब मालिक के हाथ में आ भी जाए तो फौरन ढोंग शुरू कर दें। बीमार, पागल या गूंगे -बहरे होने का ढोंग आराम से किया जा सकता है। एकदम नीचे गिरकर कुछ ऐसी हरकतें कर सकते हैं कि आप पर दौरा पड़ा है। जेब मालिक के पैरो को मजबूती से पकड़-जकड़ कर, रो-रोकर अपनी बेचारगी प्रदर्शित कर सकते हैं। ढोंग जितना बढ़िया होगा बचने के चांस उतने ही बेहतर होंगे। अगर थोड़ी बहुत गाली खाकर ही बच निकले तो समझो मेहनत वसूल हो गयी! पिटने से तो बचे।
किसी बड़े आंदोलन में व्यवस्था बनाये रखने की ज़िम्मेदारी संभाल रहा कोई पुलिसवाला अगर भीड़ के हत्थे, निहत्था चढ़ जाए तो कैसे बचेगा? वक़्त बिल्कुल नहीं होता। इससे पहले कि कोई उसे बचाए भीड़ उसे धुन देगी। तत्काल ढोंग करना होगा। सबसे पहले बेहोश होने का ढोंग करे। अगर अच्छे से कर लिया तो बहुत ख़ूब। नहीं तो फौरन हाथ जोड़ कर भीड़ से क्षमायाचना करें और उन्हें कायदे से समझाए कि भैया मैं तो तुम्हारे ही साथ हूं। नौकरी के चक्कर में उधर खड़ा हूं वरना तुम्हारे आंदोलन के लिए तो मेरी जान भी हाजिर है। घर बैठे चार छोटे-छोटे बच्चों की कसम अगर मेरे कंधों पर उनकी ज़िम्मेदारी न होती तो अपने हाथ का यह डंडा अभी अपने साथी पुलिसवालों वालों पर बजा रहा होता। आप लोगों के बीच में आया ही इसलिए हूं। अपने साथियों के साथ तो मेरा दम घुट रहा था। अब जब आपके बीच में आ ही गया हूं तो भैया गले मिले बिना तो ना जाऊंगा। मेरी आँख से बहते हुए आँसुओं को आपके कंधों का सहारा मिल जाए तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा। एक सेल्फी भी लूंगा। इसे अपने बच्चों को दिखाऊँगा कि कैसे मैंने अपने साथियों की आँखों में धूल झोंककर आप जैसे क्रांतिकारियों के इतने करीब से दर्शन का सौभाग्य पाया था।
मैंने एक मनचले को अपनी ढोंग कला के अद्भुत प्रदर्शन के दम पर एकदम पिटने, कुटने, ठुकने वाली सिचुएशन से कुशलतापूर्वक बाहर आते देखा है। बंदे ने जिस लड़की को छेड़ दिया था उसने वहीं उसका गला पकड़ उसका भविष्य तय कर दिया था! नीच..अधम.. आज तो तु गया! इतने सैंडल मारूंगी कि अपनी बीबी को भी नहीं छेड़ेगा। जैसे ही उसने सैंडल निकाला मनचले ने अपनी दोनों आंखों से आँसुओं का सैलाव बहाते हुए लड़की के पैरों में लौटम-लौट ऐसा ढोंग किया कि लड़की को मनचले की खातिरदारी का प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ा।
राजनीतिक नेताओं के ढोंग से आप सभी परिचित होंगे। सच तो ये है कि नेता लोग ढोंग ही ज्यादा करते हैं, काम कम करते हैं। किसी बड़े नेता की पोल खुलने वाली हो या खुल जाए तो उसे तो हर हाल में ढोंग कला की शरण में जाना ही होगा। बिना ढोंग के उसकी नेतागीरी गंदे नाले में डूब जाएगी। इसलिए जब भी कोई नेता ढोंग करता है तो उसका आनंद लिया जाना चाहिए। ऐसे नेता बहुत अच्छे लगते हैं जो टॉप ढोंगियों में अपना नाम दर्ज कराने को आतुर रहते हैं। लेकिन बहुत से नेता ऐसी भी हैं जिन्हें ढोंग कला अच्छे से नहीं आती लेकिन मजबूरी में इस कला की शरण में जाना पड़ता है। ऐसे नेताओ की नेतागिरी तो बची रहती है लेकिन गालियों का स्वाद भी लेना पड़ता है।
इसलिए ढोंग करते हुए सावधानी बरतनी चाहिए। मतलब कि ढोंग कला को ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हो तो ढोंग ज़बरदस्त होना चाहिए ताकि परिणाम आशानुरूप आए। ध्यान रखना कि अगर ढोंग कला का प्रदर्शन प्रभावशाली नहीं तो आपका बैंड भी बज सकता है। बहुत से आधत्यात्मिक गुरु ढोंग कला में निपुण न होने की वजह से जेल में चक्की पीस रहे हैं। इसलिए अगर ढोंग कला की कृपा चाहिए तो पहले इसमें आप को थोड़ी मेहनत करनी होगी। इस सलाह को गांठ बाँध लीजिए कि.....
जम जाए उसका सिक्का!
ढोंग कला में जो है पक्का!
-वीरेंद्र सिंह
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माननीय वीरेंद्र जी आप एक गूढ़ रचनाकार है। आपकी रचनाएं पढ़ने के साथ ही मन में कई भाव एक साथ प्रवाहित होना शुरू कर देते हैं। हम अनुभव कर सकते हैं उन सब स्थितियों को जिसे आपने शब्दों के माध्यम से उकेरा है। यथार्थपूर्ण रचनाओं के लिए आपको बधाई एवं शुभकामनाएँ तथा हमें इतनी यथार्थवादी रचना प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार।
ReplyDeleteसादर।
आपकी प्रतिक्रया हौंसला बढ़ाने वाली, विश्वास जगाने वाली, और भी बेहतर करने के लिए प्रेेरित करने वाली है। सच तो यह कि जब मैंने ब्लॉग लेखन की शुरूआत की थी उस वक्त एकदम स्तरहीन लिखता था लेकिन आप जैसे दूसरे सज्जन उस स्तरहीन को न केवल पढ़ते थे बल्कि उत्साह भी बढ़ाते थे। अगर आज कुछ ऐसा लिखा है जिसे स्तरीय भले ही न कहा जा सके लेकिन पढ़ने लायक़ समझा जा रहा है तो उसके लिए आप जैसी विद्धानों की उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाओं की भूमिका सबसे ज्यादा है। आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर मेरा दिन बन गया। सादर धन्यवाद।
Deleteकमाल का व्यंग्य रचा है वीरेन्द्र जी आपने । और व्यंग्य ही क्या, यह तो हक़ीक़त है । जिसने इस कला को अच्छी तरह साध लिया, वह जीवन भर के लिए अपने (अधिकतर) कष्टों से बचकर निकलता रहेगा ।
ReplyDeleteजितेंद्र जी धन्यवाद। आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया प्रेरणा देने वाली है। आपसे सहमत। सादर धन्यवाद।
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