शीत ऋतु में,
शहरों के कोलाहल से दूर,
बहुत दूर गांव-देहात में,
नीले आसमान से आ रहीं सूरज की किरणें
तन-मन को ऐसे ही सुख प्रदान करती हैं
जैसे भूख-प्यास से व्याकुल प्राणी को
भोजन और शीतल जल सुख प्रदान करते हैं!
मंद-मंद बहती शीतल हवा,
पक्षियों का कलरव,
दूर-दूर तक फैले गन्ने के खेत,
कोल्हू पर तैयार हो रहे
ताज़े गुड़ की सुगंध.
आंखों में ऐसे ही चमक पैदा करती हैं
जैसे विरह की अग्नि में झुलस रहे प्रेमी की आंखें
अपनी प्रेमिका की झलक मात्र से चमक जाती हैं!
गांव में जीवन है।
जीवन में हंसी है।
हंसी में प्रेम है।
और
प्रेम में है निश्छलता
जो ऐसे ही अपनी ओर खींचती है
जैसे चुंबक, लोहे को खींचता है।
-वीरेंद्र सिंह
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सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद सर। सादर प्रणाम।
Deleteसुन्दर चित्र। ..
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद ओंकारनाथ जी। सादर।
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