फरवरी-मार्च और अपैल में आमतौर पर बारिश ऐसे होती है जैसे चुनाव
जीतने पर कभी-कभार नेता जी जनता के बीच याद दिलाने आ जाते हैं कि भूल मत जाना,
अगले चुनावों में भी मुझे ही जिताना। लेकिन इस बार तो पीएम मोदी जी की हर महीने
होने वाली मन की बात की तर्ज पर पिछले दो महीनों से हर वीकेंड पर बरसात शुरु हो
जाती है। अब बेमौसम इतनी बारिश होगी तो साइड इफैक्ट होना लाज़मी है। किसानों की
फसलें बर्बाद हो गई। आलू खेत में ही गल गए। कुछ किसानों ने तो दुखी होकर अपने आप
ही अपना तबादला परलोक में कर लिया है। वैसे भी उनके लिए इस लोक में रखा ही क्या था? घर में खाने के लाले पड़ रहे हो तो हर
जिम्मेदारी ऐसा बोझ लगती है जिसे ढोना ऐवरेस्ट पर्वत पर चढ़ने से भी ज्यादा
मुश्किल होता है। हालांकि सरकार मदद का दिलासा दे रही है लेकिन मरने वाले किसानों को पूरा भरोसा था कि
रेगिस्तान में पानी मिल सकता है, कुछ एक गरीबों के घर में भी भूखे को पेट भर खाना मिल सकता है लेकिन सरकार से उन्हें खोखले
आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिल सकता और अगर मिला भी तो तब तक तो वैसे ही प्राण
पखेरू उड़ जाएंगे! ऐसे में
दो ही रास्ते बचते थे। पहला खुद ही स्वर्ग (पक्का नहीं कहा जा सकता) सिधारने का और दूसरा सरकारी मदद के आश्वसनों के
सहारे जिंदा रहने की कोशिश करना। बदनसीब किसानों ने दुनिया छोड़ना बेहतर समझा।
केंद्र और राज्य सरकारें किसानों की हरसंभव मदद का ऐसे दावा कर रही
हैं जैसे कांग्रेस राहुल के बारे में घोषणा करती है कि वो ज़ोरदार वापसी करेंगे, दिल्ली के सीएम केजरीवाल ताल ठोकते हैं कि वो
अगले पांच सालों में दिल्ली को विश्व के सबसे कम भ्रष्ट शहरों की सूची में टॉप के पांच
शहरों में ला खड़ा करेंगे! बीजेपी जाहिर करती है कि पार्टी आडवाणी जी से
समय-समय पर मार्गदर्शन प्राप्त करेगी! हालांकि सच्चाई सब
जानते हैं। आज तक सरकारी मदद ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित होती आई है। किसानों
पर मौसम की बैक टू बैक मार पड़ी है क्योंकि पिछले साल मॉनसून पर अननीनो प्रभाव ऐसे
ही हुआ था जैसे बीते लोकसभा चुनाव में मतदाताओं पर कांग्रेस सरकार में हुए घोटालों
का प्रभाव हो गया था। अलनीनो के चलते बारिश बेहद कम हुई थी जिस वजह से धान की फसल
प्रभावित हुई थी जबकि इस बार बेमौसम और अत्यधिक बारिश की चलते गेहूं की फसल बर्बाद
हो गई है। मौसम की दोहरी मार से अन्नदाता के सामने भूखो मरने की नौबत आ गई है। असर
दिख भी रहा है कई किसान दम तोड़ चुके हैं। बचे हुए किसानों में अधिकांश को अभी तक
कोई सहायता प्राप्त नहीं हुई है। कुछ समझदार किसानों का मानना है कि सरकारी राहत
पहुंचने की संभावना उतनी ही है जितनी विदेशों में जमा काला धन के भारत आने की है। इसलिए
सरकार से मदद की आस लगाए किसान भाईयों को अपन का सुझाव है कि वो सरकार की बजाए
सीधे भगवान से गुहार लगाए और मांगे कि हे भगवान! कुछ नहीं चाहिए! बस खाने के लिए तैयार (Ready to eat) कढ़ी-चावल की बारिश कर दे! बहुत बारिश हो गई। बहुत ओले पड़ गए। अब तैयार
राजमा-चावल डाल दे! जिन लोगों को ये आइडिया क्रेजी लगता हो तो भैया वही
लोग इस बेमौसम की ओलों वाली बारिश के सभी पीड़ित किसानों को, बिना किसी भेदभाव के
तत्काल (क्योंकि पहले ही बहुत देर हो चुकी है) सरकार से कुछ खाने का सामान और
थोड़े से रुपये दिला दे। भगवान आपका भला
करेगा।
जिगर चाहिए मदद के लिए ...पर कहाँ है बचे है जिगर वाले ...
जवाब देंहटाएंबहुत सही ..
क्या प्रस्तुति है वाह! आपका जवाब नहीं सर!
जवाब देंहटाएंहा..हा.., वाह क्या बात है। बहुत ही शानदार और जानदार लेख। मैं तो चाहूंगी कि अबकी मानसून में कढ़ी चावल की ही बरसात हो। कम से कम भूखों को भरपेट खाना तो नसीब होगा।
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