बचपन से ही हमें सच बोलने की सीख दी जाती है। झूठ बोलना पाप है, जैसी बातें नित्य सुनाई जाती हैं। सदा सत्य बोलें क्योंकि सच बोलने से ही आप एक अच्छे इंसान बन सकते हैं। यह रिवाज़ आज भी उसी तरह जारी है। बिना इस बात की परवाह किए कि आज ज़माना कितना बदल गया है और आधुनिक जीवन में सफलता के लिए झूठ बोलना कितना ज़रूरी है! चूँकि इस मुद्दे पर बच्चें अपने बड़ों से ज़्यादा सवाल जवाब नहीं करते वरना पलटकर एक बार यह ज़रूर पूछते कि क्या आपने कभी झूठ नहीं बोला? क्या आप बिना झूठ बोले ही इतने आराम से ज़िन्दगी बसर कर रहें हैं? बड़े आए सच बोलने की सीख देने वाले! मज़े की बात तो यह है कि घर के सभी सदस्य भी इस बात से भली प्रकार परिचित होते हैं कि झूठ बोले बगैर सामान्य ज़िन्दगी जीना कितना मुश्किल है!
ज़रा ग़ौर फ़रमाए.... अगर सत्ता में बैठे नेता और बड़े-बड़े अफ़सर सच बोल दें कि हमने इतना माल डकार लिया! हमारा इतना माल स्विट्ज़रलैंड के बैंकों में जमा है, चूँकि हम अव्वल नंबर के शातिर चोर हैं इसीलिए दफ़्तर का बहुत सा सामान ( जिसे ले जाने में कोई बहुत बड़ी दिक्कत न हो, भले ही सामान काम आए या न आए) अब हमारे घर की शोभा बन गया है! हमने इतनी मासूम लड़कियों से बलात्कार किया है! इतने लोगों को ठगा है! हमारे कारण देश का इतना नुक़सान हुआ है! हम राजनीति और नौकरी में देश की सेवा के लिए नहीं बल्कि मेवा खाने तथा सत्ता और कुर्सी की अपनी भूख के कारण आए हैं! इसीलिए हम वोट पाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं! वगैरह-वगैरह .....तो क्या होगा? होगा क्या! ऐसा नेता और अफ़सर जेल में चक्की पीस रहे होंगे! बहुत से मंत्री-संत्री भी वहीं होंगे.......यह भी हो सकता है कि जेलों में नेताओं की संख्या दूसरे अपराधियों से ज़्यादा हो जाए! जेल के बाहर नेताओं का अकाल हो जाएगा तो फ़िर देश कौन चलाएगा क्योंकि मुठ्ठीभर ईमानदार लोग(इससे ज़्यादा होंगे भी नहीं) राजनीति को दूर से ही नमस्कार करते हैं। बेहतर यही होगा कि नेताओं और अफ़सरों को यहीं छोड़ते हैं।
चलिए हम अपने आप को ही परखते हैं .....क्या बिना झूठ के बगैर रहना इतना आसान है? क्या ज़रुरत के वक़्त हम भी झूठ पर झूठ नहीं बोलते हैं? बोलते हैं...लगभग सभी बोलते हैं साब! और जिस दिन सच बोलना शुरू कर दिया तो भयानक मुसीबतें काले साए की तरह पीछे पड़ जाएंगी! आपके दोस्त आपको छोड़कर चले जाएँगे! , क्षणभर में ही अपने, पराए हो जाएँगे! ऐसी अवस्था में आपका कोई साथ दे न दे, दुर्भाग्य ज़रूर देगा! लोग आपको पागल, हटा हुआ, खिसकी हुई बुद्धि का, और न जाने क्या-क्या समझेगें! भगवान भी आप का भला नहीं कर सकता! समझे ज़नाब!
इसीलिए अगर आप सभ्य समाज का हिस्सा बनकर इज्ज़त से जीना चाहते हैं तो आज से ही यानी कि नए साल में झूठ को कोसना बंद कीजिए और झूठ बोलने के तौर-तरीकों पर ख़ासा अनुसंधान कीजिए! झूठ बोलने के उचित शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था पर ज़ोर दीजिए! अपने बच्चों को सच बोलने के घातक खतरों के बारे में बताने के साथ-2 झूठ बोलने का महत्त्व भी ज़रूर बताएँ! बल्कि मैं तो ये कहूँगा कि वाकायदा प्रैक्टिकल करके दिखाएँ. 'ख़ुद ही झूठ बोलना सीख जाएगा' वाली धारणा को छोड़ दीजिए क्योंकि नया ज़माना है कहीं बहुत देर न हो जाए और आपका बच्चा पीछे रह जाए! यक़ीन मानिए ऐसा करके आप उनको भविष्य में आने वाली तमाम मुश्किलों से बचा देगें! मैंने अधिकांश लोगों को झूठ की सहायता से अपनी नैया पार लगाते हुए देखा है! बाकी तो आप सब जानते ही हैं! ग़र फ़िर भी कोई शक़ या दुविधा हो तो टिप्पड़ी करके ज़रूर बताएँ क्योंकि आप इस विषय पर क्या सोचते हैं ज़ाहिर है मैं भी ज़रूर जानना चाहूँगा!
वीरेंद्र सिंह
bahut accha lekh..pr ye such h ki juth ke bina kaam nhi chalta
ReplyDeleteझूठ का सिक्का कितना दिन चलेगा? बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDelete‘देसिल बयना सब जन मिट्ठा’ का प्रथम पाठ पढाने वाले महाकवि विद्यापति
हाँ होता तो यही है...... झूठ हर कहीं है.....
ReplyDeleteभैया सच्चाई अभी भी जिन्दा है, बहुत से लोग हैं जिन्होंने सच्चाई का दामन नहीं छोड़ा है और बहुत सुखी भी हैं!
ReplyDeleteदिखो सत्यवादी रहो मिथ्याचारी
ReplyDeleteप्रतिष्ठा उन्हीं की जौ हैं भ्रस्टाचारी
..यही ज़माना है।
अभी तक तो मैंने सच का दामन नहीं छोड़ा। उम्मीद है आगे भी सफ़र कायम रहेगा।
ReplyDeleteसत्य मेव जयते ।
ReplyDeletewhat shud i say...we all are practically helpless,isn't it?
ReplyDeleteपर....सत्य हमेशा ही जीतता है..
ReplyDeleteमैं तो हमेशा सच बोलती हूँ. आपकी पोस्ट अच्छी लगी.
ReplyDelete___________________________________
"पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
झूठ बोलना कोई आसान काम नहीं :) झूठ बोलने के बाद बहुत कुछ याद रखना पड़ता है...
ReplyDeleteप्रिय बंधुवर विरेन्द्र सिंह चौहान जी
ReplyDeleteनमस्कार !
झूठ के बिना तो भैया काम ना चले! आलेख बहुत सच्चाई से लिखा गया है … साधुवाद और बधाई ! आपका श्रम अवश्य रंग लाएगा … … …
मैं कहता हूं -
मत ज़्यादा सच बोल क़लम !
झूठों का है मोल क़लम !
होता है सतवादी का
जल्दी बिस्तर गोल क़लम !
चारों ओर जिधर देखो
पोल पोल बस पोल क़लम !
चट्टानें कमजोर यहां
जंगी थर्माकोल क़लम !
यहां थियेटर चालू है
सब का अपना रोल क़लम !
अवश्य ही नव वर्ष की शुभकामनओं का आदान-प्रदान हो चुका , एक बार और नव वर्ष २०११ के लिए मंगलकामनाएं !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
"झूठ कितना भी सुंदर क्यों ना हो झूठ तो आखिर झूठ ही ना" , एक ना एक दिन तो उसे जाना ही होगा - सुंदर रचना ,
ReplyDeleteमेरी भावनाएं मेरे लिखे हुए निम्न दोहे में:-
ReplyDeleteसच पर चलने की हमें ,हिम्मत दे अल्लाह.
काटों से भरपूर है , सच्चाई की राह.
सक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें......
ReplyDeleteझूठ तो आखिर झूठ ही ना ,प्रसंशनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति |
ReplyDeleteकलम को तो सच के साथ ही रहना होगा |
सच्चाई को सामने लाती प्रस्तुति .....कलम को सच अभिव्यक्त करने का पूरा अधिकार है ..और आप उस अधिकार का पूरा उपयोग कर रहे हैं कलम के साथ मिलकर ......शुक्रिया
ReplyDelete,प्रसंशनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
chauhan saheb ...ab nayya paar lage ya doobe ,hum to jhooth bolenge nahi .
ReplyDeleteaccha lekh raha
झूठ की भी अलग-अलग डिग्रियाँ होती हैं-कौन कितनी निभा जाए.सामर्थ्य है अपनीअपनी.
ReplyDeleteसभ्य और शालीन प्रतिक्रियाओं का हमेशा स्वागत है। आलोचना करने का आपका अधिकार भी यहाँ सुरक्षित है। आपकी सलाह पर भी विचार किया जाएगा। इस वेबसाइट पर आपको क्या अच्छा या बुरा लगा और क्या पढ़ना चाहते हैं बता सकते हैं। इस वेबसाइट को और बेहतर बनाने के लिए बेहिचक अपने सुझाव दे सकते हैं। आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आपको अग्रिम धन्यवाद और शुभकामनाएँ।