पिछले दिनों अख़बारों में छपी कुछ ख़बरों ने मुझे आज की ये पोस्ट लिखने के लिए विवश कर दिया. इन ख़बरों में 'मुन्नी' और 'शीला' नाम की महिलाओं और लड़कियों की परेशानियों का ज़िक्र था. पूरा माज़रा कुछ इस तरह से है कि आजकल 'मुन्नी बदनाम हुई' और 'शीला की जवानी' वाले गाने लोगों की जुबां पर चढ़े हुए हैं. पिछले काफ़ी समय से लगभग हर जगह ये गाने बज रहे हैं.
ऐसे में 'शीला' और 'मुन्नी' नाम की महिलाएँ और लड़कियों को कई बार भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है. स्कूल, कॉलेज और जहाँ कहीं भी 'शीला और मुन्नी' नाम की कोई लड़की या महिला होती है, उन्हें देखकर कभी उनकी सहेलियाँ तो कभी शरारती लड़के और कुछ पुरुष इन गानों को गाना शुरू कर देते हैं. ऐसा करने से उनपर क्या गुज़रती होगी इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं. पकिस्तान में एक 'मुन्नी' नाम की महिला को इसी वजह से कई दिन तक अपनी दुकान बंद रखनी पड़ी. और बाद में भी उसे अपनी दुकान में अपने स्थान पर मज़बूरन किसी दूसरे को बैठाना पढ़ रहा है. मेरे एक परिचित की बहन जिसका नाम शीला है पिछले कई दिनों से कॉलेज नहीं जा रही है. उसका कहना है की उसकी क्लास के लड़के और लड़की उसे बार-२ "शीला का ज़वानी" का गाना सुनकर चिढ़ाते है. आजकल वो किसी से फ़ोन पर बात तक नहीं करती है. दिल्ली के पास बसे
नोएडा शहर में बात यहाँ तक आ पहुँची कि कुछ महिला संगठनों ने इन गानों को रुकवाने के लिए ज़ोरदार प्रदर्शन किया. लेकिन उनको वांछित सफलता न हीं मिली और नहीं बड़े-2 मीडिया घरानों ने उनकी इस मांग को प्रमुखता से अपने समाचार माध्यमों में जगह दी. मुझे पूरा यक़ीन है कि ऐसे प्रदर्शन कुछ और शहरों में भी ज़रूर हुए होंगे.
ऐसे गाने लिखे जाने चाहिए या नहीं ये एक विवाद का विषय हो सकता है लेकिन जब ऐसे गानों से किसी को परेशानी हो तो ऐसे गानों के बजने पर सवाल उठना लाज़मी है. मेरा अपना ये मानना है कि फिल्मकारों और गीतकारों को और भी ज़्यादा संवेदनशील होना चाहिए. मनुष्य की प्रकृति को हम सब भली भाँति जानते हैं. ऐसे में इस तरह के गानों को लिखते वक़्त, उन गानों के संभावित दुष्परिणामों को भी अपने ध्यान में रखना चाहिए.
@ऐसे में इस तरह के गानों को लिखते वक़्त, उन गानों के संभावित दुष्परिणामों को भी अपने ध्यान में रखना चाहिए.
जवाब देंहटाएं-- विरेन्द्र जी,
आज गीतकार हो या फ़िल्मकार वे अपने अर्थोपार्जन से उपर उठ कर सोचना भी नहिं चाहते। उनके पास एक ही तर्क है लोग जब फ़ूहडता पसन्द करते है तभी यह सब हीट होता है न? बस उनका मक़सद है हीट हो ताकि धन बटोरा जा सके।
और जब लोगों को ऐसी फ़ूहडता पर जागरूक करने का प्रयास कहीं से होता है तो स्वतंत्रतावादी, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का राग अलापने लगते है।
सभ्यता की सुरक्षा आखिर कहां से प्रारम्भ की जाय?
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जवाब देंहटाएंमैंने अभी तक इतने फूहड़ गाने नहीं सुने थे। भोंडेपन की हदें तोड़ दी हैं गीतकारों ने। लोगों की पसंद भी देखिये - इतने सस्ते टाइप के गाने नंबर एक पर हैं।
अत्यंत दुखद एवं खेदपूर्ण स्थिति है हमारे समाज की।
A very thoughtful post !
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आपसे सहमत। अब गीतों में मानवीय संवेदना, लोकाचार का नहीं, गुल्लक तोड़कर टनटनाने का प्रतीक ज्यादा है। कान-फाड़ संगीत, नृत्य के नाम पर मस्ती करती भीड़, ऐसा पागलपन कहां ले जाएगा हमारी संस्कृति पंरपराओं को।
जवाब देंहटाएंफ़िल्मी गाने संवेदना के धरातल पर नहीं बल्कि .situation और director की डिमांड के अनुरूप लिखे जाते हैं. ये दिक्कतें उसी का परिणाम हैं.
जवाब देंहटाएंमनोरंजन के नाम पर फूहड़ता नहीं परोशी जानी चाहिए.हमारे गीतकार जो इनको लिखते हैं और हमारे फ़िल्मकार जो इसको प्रदर्शित कर रहे हैं को समाज की मर्यादाओं को ध्यान में रखना चाहिए,इन गानों की वजह से अगर लड़कियां स्कूल नहीं जा प् रही हैं या उनको शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है तो ये बहुत ही दुखद है.आपने
जवाब देंहटाएंइसकी तरफ सबका ध्यान खीचा है,इसके लिए धन्यवाद.
PAR KYA KARE YAHI PASAND AATA HAI AAJ KE NAI PIDHI KO
जवाब देंहटाएंआपका आलेख सचमुच विचारणीय है. अश्लील गाने लिखने ,उन्हें संगीत देने और गाने वाले भाड़े के गीतकारों . किराए के संगीतकारों और भाड़े के गायकों के चाल , चरित्र और चिंतन के हल्केपन को समझा जा सकता है . ऐसी फिल्मों के निर्माता-निदेशकों के चरित्र को भी घटिया दर्जे का माना जा सकता है. इन तथा-कथित गीतकारों, तथा-कथित संगीतकारों, गायकों और फिल्म-निर्माताओं को ऐसी बेहूदा फिल्मों और ऐसे ऐसे फूहड़ गानों के जरिए दूसरों की माँ ,बहन और बेटियों को अप्रत्यक्ष रूप से ज़लील करने में मज़ा आता है ,लेकिन अगर उनके घरों की बहू-बेटियों और माँ-बहनों के साथ भी ऐसे गंदे गानों गंदी फिल्मों के असर से कोई अपमानजनक घटना हो , तब वे क्या करेंगे ? शायद उन्हें इससे कोई मतलब नहीं .उनको सिर्फ नोटों से मतलब है.ऐसे लोगों की निंदा होनी चाहिए . अश्लील गानों के जिम्मेदार ऐसे लोगों पर भी छेड़छाड़ का जुर्म दर्ज होना चाहिए .
जवाब देंहटाएंis bhondepan par kyaa tippanee kee jaa saktee hai?
जवाब देंहटाएंsiwaay iske ki ki yae hamaarey geetkaaro.n ke khokhalepan kaa hee aainaa hai.
विचारणीय है ...दुःख तब ज्यादा होता है की ऐसे गानों ने हर जगह धूम भी मचा रखी है ..न चाहते हुए भी सुनने पड़ जाते हैं ..
जवाब देंहटाएंफिल्मकारों और गीतकारों को और भी ज़्यादा संवेदनशील होना चाहिए.
जवाब देंहटाएं..सहमत।
क्या करें आज हालत बदल रहे हैं ..और अपने को आधुनिक कहलाते हैं ...बहुत गंभीर स्तिथि है यह संभल कर चलने की आवश्यकता है ...सार्थक बहस के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंऐसे गाने लिखने वाले कवि नहीं कपि हैं।
जवाब देंहटाएंसचमुच, बेहद फूहड़ गाने हैं।
सेंसर बोर्ड को ऐसे गाने काट देने चाहिए।
आपको एवं आपके परिवार को नव वर्ष की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष 2011
जवाब देंहटाएंआपके एवं आपके परिवार के लिए
सुखकर, समृद्धिशाली एवं
मंगलकारी हो...
।।शुभकामनाएं।।
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जवाब देंहटाएंफिल्मों की कथाओं से प्रेरणा लेने वाले और उनके गीतों से आंदोलित रहने वाले
आज उचित-अनुचित को भुलाकर अपनी मानसिकता का निर्माण कर रहे हैं.
कौन-सी फिल्म है जिसे आज के समय में स्वस्थ-मनोरंजन का ठहराया जा सके?
मुझे तो उन गीतों के बोल या करेक्टर नाम तक लिखने से परहेज है जिसे आपने शीर्षक बनाया है.
सच में इन नाम वालों के लिये यह बेहद शर्मनाक स्थिति है जो आज के गीतकार यह कर रहे हैं. यदि उनमें कुछ संवेदना बची है या फिर वह इस स्थिति से पैदा होने वाले परिणामों को जानना चाहते हैं तब वे अब कुछ ऐसे गंदे गीत लिखें जिनमें उनकी माता या बहन का नाम आता हो. तब शायद समझ सकें.
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jab kuch hota nahi to kyu soye hue sher bante ho ,,, geet mai koi kami nahi hai logo ki nazre kharab hai
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