ज़रा सोचिये ....यदि कॉग्रेस, बीजेपी या फ़िर किसी और राजनीतिक पार्टी के नेता अगर लोगों से भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए अपील करें तो क्या कोई उनकी इस अपील को गंभीरता से लेगा? पल-२ में रंग बदलने वाले लोग यदि आपसे से देश में शान्ति बनाए रखने की अपील करें, आपस में प्रेम से रहने को कहे, तो क्या आप उनका विश्वास करोगे? दूसरी तरफ़ यदि बाबा रामदेव आपसे योग के फ़ायदे, क़ायदे से बताएँ तो क्या आप में से अधिकाँश लोग उनकी बात को नहीं मानेगें ? अगर सचिन तेंदुलकर ये कहें कि कड़ी मेहनत और अनुशासन से आप अपने सपनों को जी सकते हों तो क्या आप उनपर विश्वास नहीं करोगे?
मुझे पूरा यक़ीन है कि आपके पहले दो सवालों के जबाव "नहीं" में और बाद के दो सवालों के "हाँ"में होंगे! कारण बताने की आवश्यकता नहीं!
हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग और संगठन हैं जो सोचते और करते तो कुछ और हैं लेकिन वो हक़ीक़त में होते कुछ और हैं और जब ऐसे लोग किसी अच्छे काम को भी करते हैं तो उनको अपेक्षित सफलता कभी नहीं मिलती क्योंकि लोग उनकी असलियत जानते हैं और उनपर जल्दी से विश्वास नहीं करते.
इस बात का जीता -जागता उदारण हैं वो लोग जो हमेशा देश में लोगों से प्रेम व भाईचारे से रहने की अपील करते रहते हैं, आपसी भाईचारे के फ़ायदों के बारे में सीख देते हैं. भगवान और ख़ुदा को पाने के बारे में ज़ोर देते हैं. हालाँकि ये ख़ुद अपनी तमाम बुराईयों पर कभी कोई लगाम नहीं लगा सके. इसीलिए कोई भी उन पर जल्दी से भरोसा नहीं करता. तथाकथित स्वघोषित भगवान और अनगिनत गुरु महाराज और इस प्रकार के कई दूसरे लोग और संगठन इसी श्रेणी में आतें हैं. उन्हें लगता हैं की वो शांति के सबसे बड़े पैरोकार हैं. मैं ये नहीं कहूँगा कि उनका ऐसा करना ग़लत है. लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा कि ऐसा करने का कोई लाभ नहीं होता. लोग उनपर विश्वाश नहीं करते क्योंकि उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं करके दिखाया जिसके दम पर ये कहा जा सके कि ये इंसान, वास्तव में वो इंसान हैं जिस पर हम आँख मूंदकर भरोसा कर सकते हैं. इनके अन्दर ऐसी कोई कमी नहीं है जिससे इनकी नीयत पर शक़ किया जा सके.
यदि हम वास्तव में समाज में शांति लाना चाहते हैं, प्रेम व भाईचारे के साथ जीना चाहते हैं, भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हैं, देश में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे पहले हमें अपने आपको बदलना होगा. जिस परिवर्तन की अपेक्षा हम लोगों से करते हैं वो परिवर्तन पहले हमें अपने आप में लाने होंगे. हमें लोगों को यक़ीन दिलाना होगा कि हम अच्छे इंसान हैं इसीलिए आप भी अच्छे बनिए. हमारे अन्दर ऐसी कोई कमी नहीं है जिससे किसी को कोई भी नुकसान हो. ठीक वैसे ही जैसे गाँधी जी ने किया था अपवादस्वरूप लोगों को छोड़कर बाकी सभी लोगों ने आँख बंदकर उनका अनुशरण किया. क्योंकि गाँधी जी की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था.
अब सवाल उठता है कि अच्छा कौन है क्योंकि कोई भी व्यक्ति ये नहीं कहेगा कि वो अच्छा इंसान नहीं है. मेरे हिसाब एक अच्छा इंसान वो होता है जिसमें दया और इमानदारी हो. जिसे प्यार की ताक़त का अहसास हो. जो लालच से रहित हो. दूसरों की निंदा न करता हो. और जिसे अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास हो.
जिस इंसान में दया होती है वो जानबूझकर दूसरों को कभी कोई कष्ट नहीं देता है. अपने हित के लिए दयावान कभी भी दूसरों को कोई पीड़ा नहीं देते. वो दूसरों के दुःख को भी अपना दुःख समझते हैं. स्वाभाविक है कि दया वो गुण है जिसके बगैर अच्छा इंसान बनना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. इसीलिए इसे मैंने पहले स्थान पर रखा है.
ईमानदार व्यक्ति कभी किसी का हक़ नहीं मारेगा. जैसे कि यदि हमारे सभी नेता ईमानदार बन जाएँ तो हमारी आधी से ज़्यादा समस्याएँ एकदम ख़त्म हो जायेंगी. ईमानदारी के बिना कोई भी अच्छा इंसान नहीं बन सकता। नफ़रत से कभी छोटी सी समस्या का भी समाधान नहीं होता. हाँ ! प्यार से बहुत सी बड़ी -बड़ी समस्याएँ आसानी से सुलझ जाती है . इसलिए अच्छा इंसान वही है जो प्यार को अपनी ताक़त बनाएँ.
लालच इंसान से बहुत से ग़लत काम कराता है. ये इंसान का बहुत बड़ा शत्रु है. तमाम बुराइयों की जड़ है. इसीलिए लालच को त्यागे बिना भी आप अच्छे इंसान नहीं बन सकते.
निंदा करने वाले व्यक्ति अच्छे नहीं होते. अनावश्यक दूसरों की बुराई या निंदा करने वाले लोग बड़ी -२ परेशानियों का कारण बनते हैं. निंदक बहुत ही चालाक भी होते हैं. अच्छे इंसानों को निंदा से बचना चाहिये.
एक अच्छे इंसान का अपनी ज़िम्मेदारी को समझना भी बहुत ज़रूरी है. अगर आप में सभी अच्छे गुण हो लेकिन जिम्मेदारी का अहसास बिल्कुल भी न हो तब आपको अच्छा इंसान कभी नहीं माना जाएगा. जब हमें अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास होता है तो हम बड़ा से बड़ा काम आसानी से कर गुजरते हैं. जिससे दूसरों को बहुत लाभ होता है.
मैंने कोई भी नई बात नहीं कही. ये सब बातें हम सब पहले से ही जानते हैं लेकिन हममें से अधिकांश ने शायद ही इन बुनयादी बातों को अपने जीवन में उतारने की कोशिश की हो. हाँ! थोड़े से लोग ज़रूर ऐसी बातों का ध्यान रखते हैं और जीवन में उतारते हैं लेकिन अधिकांश लोग नहीं. अगर सभी इन बातों को अपने जीवन में उतारते तो हमारे देश में न तो इतना भ्रष्टाचार होता और न ही हमारे दिलों में इतनी नफ़रत होती, वास्तव में सच्चे और अच्छे लोगों ने हमारी बातों को कभी अनसुना न किया होता और न ही कभी हम ये कहने की ज़रुरत होती की आओ चलो अमन और शांति का पैगाम दें! भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़े! या फ़िर कुछ और .....
इन मूलभूत बातों को अमल में न लाने के परिणाम हम अपने समाज में तमाम बुराईयों के रूप में देख रहे हैं. न तो भ्रष्टाचार ही कम हो रहा है और न ही तमाम दूसरी बड़ी समस्याएँ. अथक प्रयासों के बावजूद लोगों के बीच दूरियाँ बढ़ रही हैं. लोगों का एक दूसरे पर भरोसा नहीं रहा. ऐसा भी नहीं कि इन बुराईयों से हम बच नहीं सकते. हम बच सकते हैं. ज़रूर बच सकते हैं. बात बन सकती है और इन इन बुराईयों का खात्मा भी हो सकता है बशर्ते हम उपर्युक्त बातों को ईमानदारी से अपने जीवन में उतार लें.
वरना तो आप कितने ही प्रयास कर लें या करते रहें कुछ भी नहीं होने वाला जैसे कि अब तक कुछ भी नहीं हुआ और आगे होगा इसकी उम्मीद भी बहुत कम है.
यदि हम वास्तव में समाज में शांति लाना चाहते हैं, प्रेम व भाईचारे के साथ जीना चाहते हैं, भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हैं, देश में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे पहले हमें अपने आपको बदलना होगा. जिस परिवर्तन की अपेक्षा हम लोगों से करते हैं वो परिवर्तन पहले हमें अपने आप में लाने होंगे.
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हर शब्द से सहमत हूँ वीरेन्द्र...... एक सार्थक और सच्ची पोस्ट के लिए बधाई...... काश हम सब यह समझ जाएँ.....
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जवाब देंहटाएंविजेंद्र जी
आपने चार उदाहरणों से उस बात को बड़ी सरलता से समझा दिया जिसे समझदार लोग समझना नहीं चाहते.
वर्तमान में प्रवचनकर्ताओं और उपदेशकों को भी दिशा-निर्देश करने की जरूरत हो गयी है. उस दायित्व को आप बाखूबी निभा सकते हैं.
आपकी कलम में क्षमता दिखती है. आप दूध का दूध, पानी का पानी कर देते हैं.
मुझे आपके लेख बेहद पसंद आते हैं.
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बहुत सुन्दर और गंभीर लेख है ... आपने बहुत साफ़ और असरदार धब्ग से लिखा है ...
जवाब देंहटाएंये भौतिकवादी युग आ गया है भाई.यहाँ पैसा भगवान बन गया है.अब बेईमान चुटकी बजाते साबित कर लेते हैं कि वो ईमानदार हैं मगर ईमानदार आदमी को अपने को ईमानदार साबित करने में लोहे के चने चबाने पड़ते हैं.
जवाब देंहटाएंअल्लाह मालिक है...........
सार्थका चिंतन है आपका ... पर जब बात व्यक्तिगत स्वार्थ की आती है सब लोग भूल जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंआपकी ज्ञानवर्धक बातें बहुत अच्छी लगी भाई वीरेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंबातों में जीवन का सार है, और अगर हम इसे जीवन में उतiर सके तो शायद क्या, सचमुच ही समाज बदल सकता है, संसार बदल सकता है.............. अच्छा प्रयास है यह. सुन्दर आलेख के लिए आभार.
विरेंदर जी
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सच्चाई से अपने विचारों को सामने लाने का प्रयास किया है ...सच में आपका चिंतन बहुत गहरा है ...और स्पष्ट भी .....बहुत - बहुत बधाई
सहमत, और क्या?!
जवाब देंहटाएंआशीष
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नौकरी इज़ नौकरी!
bhut steek prstuti .
जवाब देंहटाएंdhnywaad .
sahi baat...
जवाब देंहटाएंham sudharenge jag sudharega.
लालच बुरी बला है । जब तक मन में किसी भी प्रकार की लालच रहेगी , हम अपने दायित्वों का भली प्रकार से वहन नहीं कर सकेंगे। एक सार्थक आलेख के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना , बधाई आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ......
जवाब देंहटाएंकभी हमारे ब्लॉग पर भी आए //shiva12877.blogspot.com
झकझोर देने वाला लेख !
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना , बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ......
जवाब देंहटाएंवीरेन्द्र भाई आपकी सूक्तियोंनुमा बातें पढकर अच्छा लगा, बधाई स्वीकारें।
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