"वैसे तो कमोवेश सभी सियासी दल मौक़ा मिलते ही अपने वादों से पलट जाते हैं लेकिन जिस तरह केजरीवाल पलटते हैं उसकी मिसाल नहीं मिलती। अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में केजरीवाल जी ने कसम खायी थी कि वो बीजेपी और कांग्रेस से कभी गठबंधन नहीं करेंगे। लेकिन केजरीवाल जी पलट गए। जनलोकपाल के लिए सारी लड़ाई लड़ी लेकिन सत्ता में आते ही भूल गए। चुने जाने के बाद न गाड़ी लेंगे न बंगला लेंगे का वादा करने वाले केजरीवाल ने इस वादे को भी तोड़ दिया। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन और अनशन कर सत्ता में आए केजरीवाल सत्ता में आने के बाद बीजेपी को हराने के नाम पर उन्हीं लोगों के साथ हो लिए जिनके खिलाफ वो कभी बोलते थे।"
दिल्ली की नयी शराब नीति में हुए कथित घोटाले को लेकर केंद्र की बीजेपी और दिल्ली में सत्तारूढ़ आमआदमी पार्टी के बीच आजकल तलवारें खिंची हुई हैं। बीजेपी का आरोप है कि भ्रष्टाचार को खत्म करने का वादा कर सत्ता में आई 'आप' आज स्वयं ही भ्रष्टाचार में लिप्त है। इसके जवाब में 'आप' ने आरोप लगाया है कि बीजेपी, आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता से डर गयी है। दोनों ही दल एक दूसरे पर जो भी आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं वे सब पब्लिक डोमेन में है लिहाजा उन आरोपों-प्रत्यारोपों पर चर्चा करने की बजाय मैं आम आदमी पार्टी के एक आरोप पर बात करूंगा जिस पर शायद उतना ध्यान नहीं दिया जा रहा है जितना दिया जाना चाहिए था।
इस पूरे विवाद में जो आरोप लगाए जा रहे हैं उनमें आम आदमी पार्टी पर लगाए जा रहे आरोप(विशेषकर कांग्रेस और बीजेपी) केजरीवाल की कथनी और करनी में अंतर पर आधारित हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे बहुत से वीडियो तैर रहे हैं जिनमें केजरीवाल की कथनी और करनी में अंतर साफ दिखायी दे रहा है। वहीं आम आदमी पार्टी अपने जाने-पहचाने पैटर्न पर आरोप मढ़ रही है। आम आदमी पार्टी अपने आरोपों के सपोर्ट में ऐसे सबूत नहीं दे पा रही जिनके आधार पर कोई निष्कर्ष निकाला जा सके। मेरी नज़र में आमतौर पर सभी सियासी दल अपनी कमियों को छुपाना और अपनी उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना चाहते हैं। सभी राजनीतिक दल अपने विपक्षी दलों के संबंध में एकदम उलट रवैया रखते हैं। विपक्षियों की उपलब्धियों को कम कर के आँकना और उनकी कमियों को अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। 'आप' आरोप यह लगती है कि तुम्हारी पार्टी मेरी पार्टी की लोकप्रियता से घबरा गयी है। मोदी जी, केजरीवाल की लोकप्रियता से घबरा गए हैं। लेकिन जवाब में बीजेपी यह कह कर पल्ला झाड़ लेती है कि हमें किस बात का डर? हम ऐसी पार्टी से क्यों डरें जो दिल्ली तक को संभाल नहीं पा रही है। तो आज मैं आम आदमी पार्टी के उस दावे पर बात करूंगा कि क्या वाकई बीजेपी को अरविंद केजरीवाल से नहीं डरना चाहिए? या फिर बीजेपी ही नहीं इस देश की जनता को भी को भी केजरीवाल से डरना चाहिए! मेरा मानना यह है कि केजरीवाल जिस तरह की सियासत कर रहे हैं उससे बीजेपी या बाकी सियासी दलों का तो पता नहीं लेकिन देश की जनता को जरूर सतर्क रहना चाहिए।
मैं एक-एक कर उन कारणों पर चर्चा करूँगा जिनकी वजह से केजरीवाल से जनता को सतर्क रहना चाहिए।
1- जनता को भरमाने में माहिर हैं केजरीवाल
वैसे तो सभी सियासी दल मौक़ा मिलते ही अपने वादों से पलट जाते हैं लेकिन जिस तरह केजरीवाल पलटते हैं उसकी मिसाल नहीं मिलती। अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में केजरीवाल जी ने कसम खायी थी कि वो बीजेपी और कांग्रेस से कभी गठबंधन नहीं करेंगे। लेकिन केजरीवाल जी पलट गए। जनलोकपाल के लिए सारी लड़ाई लड़ी लेकिन सत्ता में आते ही भूल गए। चुने जाने के बाद न गाड़ी लेंगे न बंगला लेंगे का वादा करने वाले केजरीवाल ने इस वादे को भी तोड़ दिया। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर , अनशन कर सत्ता में आए लेकिन सत्ता में आने के बाद उन लोगों के साथ हो लिए जिनके खिलाफ वो कभी बोलते थे। आम आदमी पार्टी ने जितेंद्र तोमर को कानून मंत्री बनाया। उनकी फर्जी डिग्री का मामला जब उठा तो केजरीवाल ने जमकर उनका बचाव किया लेकिन बाद में उनकी डिग्री फर्जी पायी गयी। आम लोगों ने केजरीवाल को इसलिए वोट नहीं दिया था कि वो एक फर्जी डिग्री वाले व्यक्ति को कानून मंत्री बनाएँ। केजरीवाल ने कभी इसके लिए माफी भी नहीं मांगी। हाल ही में केजरीवाल अपने स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का अब तक समर्थन करते रहे हैं जबकि भ्रष्टाचार के मामले में सत्येंद्र जैन को जमानत भी नहीं मिल पा रही है। केजरीवाल चाहते तो सत्येंद्र जैन को मंत्री पद से हटा भी सकते थे। लेकिन अभी तक भी उन्होंने ऐसा नहीं किया है। फिलहाल वो मनीष सिसोदिया का जमकर बचाव कर रहे हैं जबकि नयी आबकारी नीति को वापस लेना इस संदेह को पुख्ता करता है कि कहीं तो कोई गड़बड़ है। अन्ना आंदोलन के वक्त वो जोर-शोर से आरोपी मंत्री को पद से हटाने की वकालत किया करते थे। केजरीवाल की राजनीति का गहराई से अध्ययन किया जाए तो यह आसानी से कहा जा सकता है कि वो अपने पहले के स्टैंड के एकदम उलटा कर रहे हैं। इतना सब कुछ होने के बाद भी वे चुनाव जीत रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि जनता को भरमाने में वो काफी हद तक सफल रहे हैं।एक बात और है कि केजरीवाल के पीछे बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और भगत सिंह की तस्वीरें लगी रहती हैं। लेकिन उन्होंने किसी बड़े दलित नेता को राज्य सभा भेजा हो या किसी दलित को अति महत्वपूर्ण पद पर बैठाया हो ऐसा अभी तक सामने नहीं आया है। इसके उलटे उनके राज्यसभा सांसद संजय सिंह पर दलित उत्पीड़न का आरोप जरूर है।
2- मीडिया को मैनेज करने में माहिर केजरीवाल
2013 में जब केजरीवाल पहली बार सीएम बने तो उन्होंने कांग्रेस का साथ लिया। जबकि ऐसा करने के लिए उन्हें अपने बच्चों की कसम तोड़नी पड़ी। तब से लेकर आजतक केजरीवाल जी ने न जाने कितने वादे किया और कितने वादे तोड़े लेकिन टीवी पर दिए इंटरव्यू में कभी कोई एंकर उनसे ढंग से सवाल-जवाब नहीं करते। सोशल मीडिया में सैकड़ों ऐसे वीडियो घूम रहे हैं जिनसे साफ पता चलता है कि केजरीवाल अपने कहे पर कायम नहीं रहे हैं लेकिन मजाल है किसी मीडिया वाले ने उनसे पूछा हो कि भैया आप 2015 में भी यमुना को पाँच साल में साफ करने की बात कर रहे थे और पाँच साल बाद भी यमुनी साफ करने के लिए समय मांग रहे हैं। इसकी क्या वजह है? दिल्ली में तमाम समस्याएं हैं लेकिन कोई मीडिया वाला उनसे यह पूछता ही नहीं कि पहले आप दिल्ली की कायपलट तो कर दो। वो कहते हैं कि फलां राज्य में चुनाव जीतने पर हर महिला को 1 हजार रूपये देंगे। कोई मीडिया वाला उनसे यही नहीं पूछता कि भैया गरीब महिलाओं को हर माह 1 हजार रूपये देने की बात तो सही है लेकिन अमीर महिलाओं को 1 हजार रुपये देने की क्या हासिल होगा या फिर आप ने पंजाब और दिल्ली की महिलाओं को 1 हजार रुपये महीने देने शुरू कर दिए हैं क्या? उन्होंने अब तक दिल्ली में कितने लोगों को रोजगार दिया है जिसके दम पर गुजरात में हर साल लाखों नौकरियां देने का वादा कर रहे हो? वगैरा-वगैरा।
3- दिल्ली की सेवा छोड़ अपनी ब्रैंडिंग में लगे केजरीवाल
केजरीवाल जी दिल्ली के सीएम है लिहाजा उनकी जिम्मेदारी थी कि वो दिल्ली की जनता की तन-मन से सेवा करते लेकिन इसके उलट उनका ज्यादातर समय अपनी ब्रैडिंग में जाता है। दूसरों पर अनाप-शनाप आरोप लगाने वाले केजरीवाल पर आज जब उनके मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो विधानसभा का विशेष सत्र बुला लिया। विशेष सत्र में भी जो आरोप लगाए गए उनके समर्थन में मीडिया को कोई सबूत नहीं दिखाया। लोग यह भी सवाल पूछ रहे हैं कि 70 में से 62 विधायकों के समर्थनवाली आमआदमी पार्टी को विधानसभा में विश्वास मत्र हासिल करने की क्या जरूरत थी? विपक्ष ने तो ऐसी कोई मांग नहीं रखी थी। जानकारों का कहना है कि विशेष सत्र बुलाने का एकमात्र कारण भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता का ध्यान भटकाना है। कोरोना महामारी के दौरान भी जब दिल्ली में हालात बुरे थे तब भी केजरीवाल पर अपनी ब्रेंडिंग करने के आरोप लगे। कोरोना की लहर से पहले केजरीवाल जी ने दिल्ली के लोगों को आश्वासन दिया था कि उनकी तैयारी पूरी है। लेकिन जब कोरोना से पीड़ितों की संख्या बेहताशा बढ़ने लगी तो उनके सारे दावे खोखले नजर आए। लेकिन उनकी अपनी ब्रैंडिंग जारी रही। जनसंचार के हर माध्यम में उनके एड जरूर आते। आज भी अरविंद केजरीवाल जोर-शोर से इस बात का प्रचार करते हैं कि उनकी सरकार ने दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में इतना बढ़िया काम किया है कि दिल्ली के शिक्षा मॉडल की तारीफ पूरी दुनिया कर रही है। इसी तरह वो अपने मोहल्ला क्लीनिक की जमकर तारीफ करते हैं। जबकि हकीकत यह है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिकों से कोई खास लाभ नहीं हुआ। शिक्षा में भी उतना काम नहं हुआ है जितना केजरीवाल और उनके शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया बताते हैं। कुछ काम अवश्य हुआ होगा लेकिन जितना प्रचार हो रहा है उतना नहीं।
4- मोदी को टक्कर देने के चक्कर में करते हैं अव्यावहारिक दावे
पंजाब विधानसभा चुनावों में मिली बड़ी सफलता ने केजरीवाल का आत्मविश्वास और बढ़ा दिया। अब वो सीधे-सीधे पीएम मोदी को चुनौती देते नजर आते हैं। उनके बयानों, भाषणों से यह साफ नजर आता है कि 2024 में पीएम मोदी को टक्कर देने की तैयारी कर रहे हैं। विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' के संबंध में विधानसभा में बोलते हुए केजरीवाल कहते हैं कि कोई प्रधानमंत्री यदि विवेकअग्निहोत्री की फिल्म का प्रचार कर रहा है तो इसका मतलब है कि उस पीएम ने आठ साल में कुछ नहीं किया। यह एक बेतुकी बात थी। केजरीवाल चाहते तो ऐसी भाषा से बच सकते थे। क्या ऐसा हो सकता है कि कोई पीएम 8 साल तक कुछ न करे और जनता उसे कुर्सी पर बैठे रहने दे। केजरीवाल जानते थे कि उनके इस दावे पर कोई विश्वास नहीं करेगा फिर भी उन्होंने ऐसा कहा। केजरीवाल के इस तरह के दावों के पीछे उनकी मंशा रहती है कि देश को पता चले कि मोदी से अगर कोई टक्कर ले सकता है तो वो केजरीवाल है।
5- बीजेपी का ही एजेंडा छीनकर लोगों को प्रभावित करने का प्रयास
आजकल केजरीवाल लोगों से कह रहे हैं कि देश को नंबर वन बनाना है। इसलिए आप मेरे साथ आएँ। दिल्ली जैसे केंद्रशासित प्रदेश का सीएम जब पूरे देश के लोगों से यह आह्वान करे कि देश को नंबर वन बनाने के लिए मेरे साथ आएँ तो उस सीएम की अतिमहत्वाकांक्षा साफ प्रकट होती है। फिर 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' की बात तो बीजेपी पहले से ही करती आई है। देश को उसका पुराना वैभव दिलाने का सपना वर्तमान की मोदी सरकार शुरू से ही दिखा रही है। जाहिर है देश को नंबर वन बनाने का अभियान चलाना बीजेपी के एक महत्वपूर्ण विचार को छीनने का प्रयास भर है।
दिल्ली में 2011 के प्रसिद्ध अन्ना हजारे के आंदोलन से निकले अरविंद केजरीवाल जब पहली बार कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली के सीएम बने तो तमाम लोगों की लगा कि शायद अब जनता के अच्छे दिन आएँगे। भ्रष्टाचारियों की खैर नहीं होगी। हालांकि जनता का एक वर्ग इस बात से निराश था कि जिस व्यक्ति ने अपने बच्चों की कसम खाई थी कि वो कांग्रेस से न समर्थन लेगा और न ही समर्थन देगा, उसने शुरुआत ही अपनी कसम तोड़कर की है। जो केजरीवाल अपने बच्चों की कसम खाकर कहते थे कि वो न तो बीजेपी- कांग्रेस से कभी गठबंधन नहीं करेंगे वो फटाक से कांग्रेस के समर्थन से सीएम बन गए थे। यह बात और है कि उन्होंने जल्दी ही इस्तीफा दे दिया था। हालाँकि दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को माफ कर दिया था। बाद के चुनावों में उन्हें भारी बहुमत से विजयी बनाया।
सच यह भी है कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में दो बार मिली सफलता से अरविंंद केजरीवाल का आत्मविश्वास बहुत ज्यादा बढ़ गया। उनकी महत्वाकाँक्षाओं को पंख लग गए। जानकारों के मुताबिक उनका रवैया बदल गया। कुमार विश्वास जैसे उनके बहुत से साथी उन्हें छोड़कर चले गए। अरविंद केजरावाल के राजनीतिक सफर पर नजर रखने वाला कोई भी व्यक्ति उनके भाषणों और बयानों के आधार परअनुमान लगा सकता है कि केजरीवाल अपनी महत्वाकांक्षाओं पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं। वो बहुत जल्दी में लगते हैं। राज्यों में चुनाव जीतने के लिए वो जो वादें करते हैं वे अव्यवहारिक होते हैं जिन्हें अमलीजामा पहनाना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर होता है। जरूरतमंद और गैर-जरूरतमंद को एक ही पैमान पर रखकर उनके लिए फ्री सुविधाओं का घोषणा करना कितना तार्किक है? वो इस पर ध्यान नहीं देते हैं। वैसे तो सभी नेता थोड़े-बहुत ऐसे वादे करते हैं जिनकी कोई तुक नही होती लेकिन केजरीवाल इस क्रम में सबसे आगे दिखाई देते हैं। केजरीवाल की सबसे खास बात यह है कि वो प्रचार बहुत करते हैं। एक समय था जब वो लोगों को बताया करते थे कि सियासी दलों के नेता प्रचार में पैसा बहाते हैं। आज हालत यह हो गई है कि वो खुद की ब्रैंडिग में पानी की तरह पैसा बहाते हैं। कभी दूसरे सियासी दलों पर यह आरोप लगाते थे कि वे दल केजरीवार की नकल कर रहे हैं। आज खुद केजरीवाल पर आरोप लगते हैं कि वो पीएम मोदी की नकल कर रहे हैं। केजरीवाल आतंकी हमले के लिए भी अपने ही देश के पीएम को जिम्मेदार ठहराते हैं। बहुत बार वे खुद ही आरोप लगाते हैं खुद ही वकील बन जाते हैं और खुद ही जज बनकर फैसला सुनाते हैं।
उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखते हुए यह कहना गलत नहीं है कि देश की जनता को केजरीवाल से सावधान रहना चाहिए।
-वीरेंद्र सिंह
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (31-08-2022) को "जय-जय गणपतिदेव" (चर्चा अंक 4538) पर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और हार्दिक आभार सर। आपकी विनम्रता को प्रणाम।
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 31 अगस्त 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
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आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और हार्दिक आभार। आपकी विनम्रता से अभिभूत हूँ।
Deleteबढ़िया कहा 👌
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय अनीता जी। सादर।
Deleteसही विश्लेषण
ReplyDeleteकेजरीवाल के उदय के समय से एक-दो वर्ष तक की अवधि में मैं उनका बहुत बड़ा समर्थक रहा था। उनकी मंशा और कार्यशैली की प्रशंसा को मैंने अपने ब्लॉग में भर-भर कर संजोया था, किन्तु शीघ्र ही उनकी कृत्रिम नेकनीयती का आवरण मेरे मनस्पटल से हट गया। उनकी दोगली नीति व छद्म धर्मनिरपेक्षिता ने उनके प्रति मेरी धारणा को बहुत आहत किया। आपके लेख में दिये गये तथ्यों से मेरी विचार-साम्यता होने से कारण आपके तथ्यपरक लेखन के लिए आपको साधुवाद देना चाहता हूँ।
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