सत्ता में बने रहने के लिए,
सत्तासीन!
और सत्ता पाने के लिए,
और सत्ता पाने के लिए,
सत्ताविहीन!
साथ में कुछ
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पत्रकार,
और थोड़े से लोग बुद्धिहीन!साथ में कुछ
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पत्रकार,
दिन-रात अपना मत्था फोड़ रहे हैं!
चंद वोटों की ख़ातिर,
राजनीति के ये शातिर!
कर रहे हैं अनर्गल प्रलाप !
और जप रहे हैं,
'भगवा' आतंकवाद का जाप!
असल मुद्दों से हटकर,
धर्म व आतंकवाद की राजनीति कर,
त्याग, तपस्या और शौर्य के प्रतीक,
देशभक्तों की गर्दन मरोड़ ,
और जप रहे हैं,
'भगवा' आतंकवाद का जाप!
असल मुद्दों से हटकर,
धर्म व आतंकवाद की राजनीति कर,
त्याग, तपस्या और शौर्य के प्रतीक,
'भगवा' रंग को-
आतंकवाद से जोड़ रहे हैं!
और इस क्रम में ये दुष्ट,
देशद्रोहियों को छोड़,आतंकवाद से जोड़ रहे हैं!
और इस क्रम में ये दुष्ट,
देशभक्तों की गर्दन मरोड़ ,
अपने प्यारे भारत को तोड़ रहे हैं!
क्या ये बेशर्म इतना भी नहीं जानते ?
कि हर बुराई की तरह,
कि हर बुराई की तरह,
आतंकवाद का भी कोई धर्म नहीं होता!
कोई 'रंग' आतंकवाद के संग नहीं होता!
इसीलिए इसका कोई 'रंग' भी नहीं होता!
क्या इनको इतनी भी नहीं तमीज़?
जो ये जान सकें!
कि इस दुनिया में-
'हिन्दू' या 'भगवा' आतंकवाद-
जैसी नहीं है कोई चीज़।
जो ये जान सकें!
कि इस दुनिया में-
'हिन्दू' या 'भगवा' आतंकवाद-
जैसी नहीं है कोई चीज़।
सटीक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआतंकवाद का भी कोई धर्म नहीं होता....
जवाब देंहटाएंकोई 'रंग' आतंकवाद के संग नहीं होता....
इसीलिए इसका कोई 'रंग' भी नहीं होता....
क्या इनको इतनी भी नहीं तमीज़?
hotii to aatank ko hathiyaar kyu banaate
ati sundar
vyngy agr sch ka sath liye huye ho to bhut hi prbhavshali hota hai our bhut ghre tk asr chhodta hai . aapki abhivykti is ksauti pr khri utrti hai . ye ek kism ka stsang hai our jn klyan ke liye aise stsang hone hi chahiye .
जवाब देंहटाएं... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
जवाब देंहटाएंहर बुराई की तरह..........................
जवाब देंहटाएंआतंकवाद का भी कोई धर्म नहीं होता....
100% katu satya keh diya virndra ji aapne...
आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता है और ना ही कोई धर्म ........अब क्या समझाएं ......प्रभावित करती रचना . बधाई
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ! उम्दा प्रस्तुती!
चौहान साब,
जवाब देंहटाएंनमस्कार.
बजा फरमाया है आपने. बस थोड़ी सी कसर छोड़ दी. आतंकवाद का सही मायनों में कोई रंग नहीं है. भगवा भी नहीं, हरा भी नहीं.
आतंकवादी ना भगवान के सैनिक हैं और ना अल्लाह के सिपाही.
आशा है आप अन्यथा ना लेंगे....
जय हिंद.
आशीष
--
अब मैं ट्विटर पे भी!
https://twitter.com/professorashish
दुनिया में जितने भी बड़े आतंकवादी संगठन हैं सब धर्म के नाम पर ही फले-फूले हैं। इसलिए यह कहना बेमानी है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। अनुभव से कह रहा हूं कि अभी तक बिना धर्म का कोई आतंकवाद मैंने नहीं देखा, चाहे वह जिहाद के नाम पर चलता हो या पंजाब का आतंकवाद हो या गाजा पट्टी का खून खराबा। मान्यताएं समाज में ऐसी ही समस्याएं खड़ी करती हैं और आतंकवाद भी रंगीन हो जाते हैं, जब रंग खुद किसी के प्रतीक नहीं होते उन्हें जैसे लोग इस्तेमाल करते हैं, वे उसीके प्रतीक लगने लगते हैं।
जवाब देंहटाएंसब राजनीति है
जवाब देंहटाएंअच्छा व्यंग है ..
जवाब देंहटाएं'हिन्दू' या 'भगवा' आतंकवाद.........
जवाब देंहटाएंजैसी नहीं है कोई चीज़................
sehmat hun
सच्चाई का जबरदस्त प्रकटीकरण।
जवाब देंहटाएंसच्चाई साहस के साथ रखने पर बधाई स्वीकार करें जी
आपका ब्लाग अच्छा लगा .ग्राम चौपाल मे आने के लिए धन्यवाद .आगे भी मिलते
जवाब देंहटाएंरहेंगें
वीरेंद्र जी,
जवाब देंहटाएंआपने तरुण विजय के लेख का लिंक दिया, जो उन लोगों के लिए लिखता है जो पहले एक मस्जिद गिराने के लिए आंदोलन चलाते हैं और जब वह गिरा दी जाती है तो अदालत में जाकर मुकर जाते हैं कि हमने नहीं गिराई। इस गिराने में बहुत सी जानें भी जाती हैं, मकसद के लिए जान देने वाले शहीद कहलाते हैं, मगर ये लोग अपने ही शहीदों को यह कहकर गाली देते हैं कि यह काम हमने नहीं किया (अर्थात यह काम गलत था और उन्हें इसका अपराधबोध है और दशक बीत जाने के बाद इनके नेता इसके लिए माफियां भी मांगते हैं।) भावनाओं को भड़काने वाले ऐसे लेख तालिबानों और लादेन के लिए भी खूब अफगानिस्तान में लिखे गए। वहां भी बहुत से तरुण विजय थे जो तालिबानों की धर्म बीट देखते रहे। आज नतीजा क्या है, तालिबानों की वह कथित देशभक्ति और धर्मभक्ती दुनिया में सबसे ज्यादा रक्तपात का कारण बनी और भारत कश्मीर से लेकर दक्षिण तक इस आतंक को भोग रहा है। वहां इस तरह के तरुण विजय भी अब यही लिख रहे हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।
अगर आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता तो धर्म के नाम पर आ रहे चढ़ावे से हथियार क्यों खरीदे जाते हैं। अगर धर्म के नेताओं को यह साबित करना है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता तो उन्हें उन लोगों के नुकसान की भरपायी करनी चाहिए, जिन्हें धर्म का नाम लेकर निशाना बनाया गया। अगर धर्म के नाम पर रक्तपात हो रहा है और धर्मस्थलों का पैसा हथियारों में लगता है तो उस धर्म के आगुओं को इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेनी ही चाहिए। अगर संन्यासी दूसरे धर्म के लोगों पर जाकर बम फोड़ते हैं या मदरसों से सीख कर तालिबानी अन्य धर्म के लोगों को सताते हैं तो क्या इनके नैताओं की कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती है? सिर्फ यह कहकर पल्ला झाड़ लेना कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, सबको बेवकूफ बनाना है।
आपने कहा है कि आतंकवाद एक बुराई है, तो मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि कौनसा धर्म बुराइयों से अछूता रहा है, समय के साथ विसंगतियां हर धर्म में आई हैं और इन्हीं धर्मों में कुछ साहसी और महान संत हुए जिन्होंने सुधारवादी आंदोलन चलाए, सभी धर्मों में ये आंदोलन चले। इसी तरह धर्मों के साये में पल रही आतंकवाद रूपी बुराई को शब्दों के आंडबर से छुपा कर नहीं हटाया जा सकता, यह तभी दूर होगी जब धर्मों के बड़े नेता सुधार के लिए आगे आएँ। इसके लिए सबसे पहले तो उन्हें यह मानना होगा कि धर्म से जुडा़ आतंकवाद है और दूसरी कौशिश उसे दूर करने की होनी चाहिए।
जहां तक तुम्हारे ब्लॉग पर मेरी टिप्पणी कि रंग किसी के प्रतीक नहीं होते का तुमने अधूरा इस्तेमाल किया है, जिससे पूरा संदर्भ गलत लग रहा है, इसलिए उसी पंक्ति को मैं फिर से यहां रखकर स्पष्ट करता हूं
-मान्यताएं समाज में ऐसी ही समस्याएं खड़ी करती हैं और आतंकवाद भी रंगीन हो जाते हैं, जब रंग खुद किसी के प्रतीक नहीं होते उन्हें जैसे लोग इस्तेमाल करते हैं, वे उसीके प्रतीक लगने लगते हैं।-
इसमें स्पष्ट है कि जैसे लोग इस्तेमाल करते हैं रंग उसी के प्रतीक लगते हैं, जब आतंकवादी हरा, लाल या भगवा झंडा लहराएंगे तो ये रंग भी उसीके प्रतीक हो जाएंगे। अब यह आपको तय करना है कि पहले रंगों के प्रतीकों को बचाने की बात की जाए या इन्सानों को। मुझे लगता है कि मैं इन्सानों को बचाने की बात करूंगा, अगर इन्सानों को बचाने के लिए आतंकवाद छोड़ दिया जाएगा तो रंगों के प्रतीक अपने आप बच जाएंगे। जिनके मकसद खोटे होते हैं, वही बात घुमाकर करते हैं, तरुण विजय भी भावनाओं को भड़काने के लिए बातों को बहुत घुमा फिरा कर लिखते हैं, पांचजन्य.....
http://www.network6.in/2010/09/05/संघी-आतंकवाद-का-ढहता-किला/
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंसुधीर जी ....आप ने बहुत सारी बातें लिखीं .
जवाब देंहटाएंउन बातों के बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहता ....
मेरी बहस केवल आतंकवाद को रंग और धर्म से
जोड़ने पर है . मैं तो केवल ये सिद्ध करना चाहता हूँ
कि आतंकवाद का न तो कोई धर्म होता है न कोई रंग.
ऐसा मानने वालों में , मैं केवल अकेला हूँ, या
हिन्दू कट्टरपंथी हैं या केवल संघी हैं , ऐसा भी नहीं है.
मैंने कुछ मुस्लिम दोस्तों के ब्लॉग भी पढ़े
जिन्होंने आतंकवाद को धर्म से जोड़ने पर आपत्ति की.
कांग्रेस पार्टी ने भी इसकी आलोचना की है.
आपने भी ऐसे कई लोगों और संगठनों के वयान पढ़े होंगे
जिन्होंने आतंकवाद को किसी रंग या धर्म से
जोड़ने पर अपना ऐतराज जताया है.
जिन्होंने इसका समर्थन किया है वह एक
तो आप हैं दुसरे मुलायम सिंह यदाव ,लालू प्रसाद यादव और
रामविलास पासवान हैं , कुछ और भी ज़रूर होंगें .
शायद वामपंथी ऐसा ही मानते होंगे.
अपनी बात के समर्थन में, मैं आपको वरिष्ट पत्रकार
श्री मधुसुदन आनंद का पिछले दिनों सन्डे नई दुनिया में छपें
उनके एक आलेख की कुछ पंक्तियाँ यहाँ आपके लिए लिख रहा हूँ ---
"ऐसा नहीं की हमारे गृह मत्री श्री पी० चिदंबरम इस बात को न जानते हों कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता | मगर जब दक्षिण पंथी हिन्दू संगठनों और तत्वों के आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के पैटर्न के लिए 'भगवा आतंकवाद ' जैसे शब्द का
प्रयोग किया तो वे भूल गए कि भगवा भारतीय जीवन का एक प्रतिनिधि रंग है |यह भारतीय संस्कृति की पहचान का रंग है | वे भूल गए कि भगवा रंग को हमारे स्वाधीनता आन्दोलन और
हमारे राष्ट्रिय ध्वज में भी जगह मिली है | भगवा रंग भौतिक त्याग और आधियात्मिक कामना का रंग है | वह सूर्योदय का रंग है, वह शौर्य और बलिदान का रंग है,वह आग और अंतिम सत्य यानी कि चिता का रंग है उसे आतंकवाद के साथ जोड़ा नहीं जा सकता."
ये तो कुछ पंक्तियाँ ही हैं. उनके सम्पूर्ण आलेख में अच्छी तरह से ये समझाया गया है कि आतंकवाद का कोई रंग या धर्म नहीं होता है
आपने तरुण विजय के लेख के सन्दर्भ में कई बातों का उल्लेख किया..मैंने आपसे ये अपेक्षा नहीं की थी आपने उन्हें संघी समझकर उनका लेख पढ़ा.अगर आपने उन्हें केवल एक लेखक समझकर उन्हें पढ़ा होता तो उसमे लिखी गई कुछ बातों को आपने ज़रूर माना होता . मैं जब भी किसी के लिखे को पढता हूँ तो वो मेरे लिए पहले एक लेखक होता है बाद में कुछ और, आज जिन लोगों को 'हिन्दू'आतंकवाद का प्रतीक मानकर 'भगवा' आतंकवाद का खौफ फैलाया जा रहा है उनकी संख्या इतनी है कि उन्हें उँगलियों पर गिना जा सकता है .(महत्वपूर्ण बात यह भी है कि उनके मामले में अदालत का निर्णय आना अभी बाकी है)लेकिन उनसे लाखों गुना लोग अच्छे और परोपकार के कामों में लगे हैं. पर उन लोगों के कामों
के आधार पर तो 'भगवा' परोपकारवाद, या 'भगवा' उपकारवाद की अवधारणा सामने नहीं आती. अच्छाई प्रत्यक्ष होने के बावजूद 'भगवा' आतंकवाद का जाप करने वाले उस अच्छाई का प्रचार नहीं करते. उसको मान नहीं देते. सुधीर जी हकीकत तो आप भी जानते हैं 'भगवा' आतंकवाद की अवधारणा वोटबैंक की नीति से ही प्रेरित है. क्या इससे 'भगवा' रंग का अपमान नहीं होता है ?
फिर भी अगर आप आतंकवाद को किसी रंग से जोड़ना ही चाहते है तो काला रंग इसके लिए सही रहेगा क्योंकि काले रंग को बुराई के साथ जोड़ने की परंपरा है. वैसे मूल रूप से मुझे बुराई को किसी रंग या धर्म से जोड़ने पर आपत्ति है.
वीरेंद्र जी और शिशिर जी,
जवाब देंहटाएंसवाल सिर्फ रंग का नहीं, सवाल यह है कि धर्म का नाम लेकर आतंकवाद रूपी बुराई तेजी से बढ़ रही है। हर धर्म में कुछ ऐसे लोग घुस आए हैं या घुस रहे हैं, जिनका विश्वास हिंसा में है और वे लोगों को इसके लिए भड़काते हैं। आपको क्या लगता है अफागनिस्तान और पाकिस्तान के लोग यू ही तालिबान बन गए होंगे उन्हें धर्म का नाम लेकर ही भड़काया गया। पंजाब के आतंकवाद में भी धर्म के नाम का इस्तेमाल हुआ। पिछले चालीस साल से धर्म में आतंकवाद रूपी बुराई घुस आई है। लोगों को इसके खिलाफ खुद जागरूक होना चाहिए। जहां तक तरुण विजय का सवाल है तो उसे मैं नब्बे के दशक से पढ़ रहा हूं, वह ऐसे ही लिखता है, वह उन लोगों का प्रिय है, जिन्हें यह लगता है कि धर्म पर खतरा मंडरा रहा है, उसका मकसद तो पता नहीं क्या है मगर भाषा भड़काने वाली ही है।
जहां तक राजनीतिक पार्टियों का सवाल है, उनका उद्देश्य सिर्फ खुद को सत्ता में बनाए रखना है। उन्हें लगता है कि भगवा आतंकवाद कहने से उन्हें फायदा मिलेगा तो वह यही कहेंगे, जब उन्हें लगेगा कि मस्जिद गिराने से फायदा मिलेगा तो वे मस्जिद गिरा देंगे। कल को इन्हें ही लगेगा कि देश बेचने से फायदा मिलेगा तो ये देश भी बेच देंगे। इनके भरोसे और बहकावे में मत आओ। धर्मों में आतंकवाद रूपी बुराई पैठ बनाए इसके खिलाफ जागो। जिन धर्मस्थलों में दूसरे धर्म या दूसरे धर्म के अनुयायियों की बुराई हो उनका बहिष्कार करो। धर्म का मतलब सिर्फ प्रेम और भाईचारा होना चाहिए। कोई धर्म संकट में नहीं होता, ऐसे आतंकवादी ही धर्म को संकट में डालते हैं। जहां तक वीरेंद्र जी आप कहते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता ऐसा मुसलिम लेखक भी लिख रहे हैं तो मैं कहता हूं कि यह तो सब लिखेंगे अगर यह लिखा कि फलां धर्म से जुड़ कर आतंकवाद नुकसान पहुंचा रहा है तो उसके लिए साहस चाहिए और उन आतंकवादियों द्वारा किए जा रहे नुकसान की भरपायी भी करनी होगी। यह टिप्पणी किसी एक धर्म के लिए नहीं है, यह सभी के लिए है और सभी को सोचना होगा। यह धर्म के अनुयायियों को तय करना होगा कि कोई उनके धर्म का नाम लेकर आतंकवादी संगठन न चलाए। उन्हें चढ़ावे और दान की रकम न जाए।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 7- 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंbeautiful written :)
जवाब देंहटाएंhttp://liberalflorence.blogspot.com/
सत्य कहा है .... यथार्थ कहा है ... पर ये वोट की राजनीति करने वाले जागेंगे नही ...
जवाब देंहटाएं