बसंत! |
बारिश बड़ी नादान तुम
बसंत के मौसम में
बिन बुलाई मेहमान तुम
बार-बार आ जाती हो
नहीं किसी को भाती हो
अब करो प्रस्थान तुम
बारिश बड़ी नादान तुम
बसंत के मौसम में
बिन बुलाई मेहमान तुम
बसंत को आने दो
कोयल को गाने दो
सुनने दो फाल्गुनी हवा का गान तुम
बारिश बड़ी नादान तुम
बसंत के मौसम में
बिन बुलाई मेहमान तुम
सावन में आना
झम झमाझम गाना
अभी करो विश्राम तुम
बारिश बड़ी नादान तुम
बसंत के मौसम में
बिन बुलाइ मेहमान तुम
खेतों में सरसों पीली-पीली
पानी से मिट्टी गीली-गीली
सबको कर रही हैरान तुम
बारिश बड़ी नादान तुम
बसंत के मौसम में
बिन बुलाई मेहमान तुम
- वीरेंद्र सिंह
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सच,ये बे मौसम की बारिश नादान ही है..
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
धन्यवाद
जी, धन्यवाद। इस ब्लॉग पर हमेशा आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंबिन बुलाये सही पर मेहमान तो है ... स्वागत भी करना ही होगा ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है वीरेंद्र जी ...
आपने अच्छा कह दिया, बस इतना बहुत है। सादर।
हटाएंआपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 13 मार्च 2019 को साझा की गई है..
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in/
पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।
जी, धन्यवाद। ये जानकर अति प्रसन्नता हुई।
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंविश्व मोहन जी, आपका धन्यवाद। स्वागत है ब्लॉग पर। आगे भी आते रहिएगा। सादर।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअनिता जी, धन्यवाद। स्वागत है ब्लॉग पर। आगे भी आती रहिएगा। सादर।
हटाएंवाह बहुत ही मनभावन रचना बेमौसम में सच कुछ भी नही अच्छा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, कुसुम कोठारी जी। स्वागत है ब्लॉग पर। आगे भी आती रहिएगा। सादर।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.... ,मनभावन रचना....
जवाब देंहटाएंजी, धन्यवाद। स्वागत है ब्लॉग पर। आगे भी आती रहिएगा। सादर।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय जी। आभार।
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